परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 230
थाम पतवार लो ।
लगा उस पार दो ।।
गुरु खिवैय्या ।
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ स्थापना ॥
भेंटते जल कलश ।
भेंट दें सम-दरश ॥
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ जलं ॥
भेंटते रस-मलय ।
भेंट दें जश-विनय ॥
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ चंदनं ॥
भेंटते शालि धाँ ।
मेंट दें कालिमाँ ॥
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ अक्षतम् ॥
भेंटते सुमन चुन ।
भेंट दें सुमन-गुण ॥
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ पुष्पं ॥
भेंटते चरु सरस ।
मेंट दें गुरुर रस ।।
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ नैवेद्यं ॥
भेंटते दीप घृत ।
मेंट दें लत गलत ।।
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ दीपं ॥
भेंटते धूप कण ।
भेंट दें नूप पन ।।
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ धूपं ॥
भेंटते फल निकर ।
मेंट दें कल-फिकर ।
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ फलं ॥
भेंटते वसु दरब ।
मेंट दें रस गरब ।
गुरु खिवैय्या,
है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ अर्घं ॥
==दोहा==
गुरु-गुण कीर्ति में रही,
कोई बात विशेष ।
तभी नाम गुरुदेव का,
रटते देव-अशेष ॥
॥ जयमाला ॥
नहिं समान गुरु और,
खोजा जा चहु और ।
नहिं समान गुरु और,
नहिं समान गुरु और ।।
वन कब होते चन्दन के सब ।
क्षण कब होते सावन के सब ॥
विरला ही चित् चोर,
नहिं समान गुरु और ।
खोजा जा चहु और,
नहिं समान गुरु और ।।
कब संजीवन भाँत दवा सब ।
कब दे जीवन भ्रात दुआ सब ।।
कब सफेद सब मोर,
नहिं समान गुरु और ।
खोजा जा चहु और,
नहिं समान गुरु और ।
कब अहि-अहि मुक्ता युक्ता सब ।
सब गज गज मुक्ता युक्ता कब ।।
निरी सनेही डोर,
नहिं समान गुरु और ।
खोजा जा चहु ओर,
नहिं समान गुरु और ।
नहिं समान गुरु और ॥
जयमाला पूर्णार्घ्य
==दोहा==
और न बस गुरु से गुरु,
देखा जा तिहु लोक ।
सुर नर किन्नर मिल सभी,
तभी दे रहे ढ़ोक ॥
Sharing is caring!