परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 228
मेरी सुन लो ।
मुझको चुन लो ।।
दास अपना ।
न और सपना ॥ स्थापना ॥
भेंटूँ जल घट ।
मेंटो संकट ।।
एक शरणा !
करके करुणा ॥ जलं ॥
भेंटूँ चन्दन ।
मेंटो क्रन्दन ।।
एक शरणा !
करके करुणा ॥ चंदनं ॥
भेंटूँ अक्षत ।
मेंटो गफलत ।।
एक शरणा !
करके करुणा ॥ अक्षतम् ॥
भेंटूँ पहुपन ।
मेंटो कटुपन ।।
एक शरणा !
करके करुणा ॥ पुष्पं ॥
भेंटूँ व्यञ्जन ।
मेंटो उलझन ।।
एक शरणा !
करके करुणा ॥ नैवेद्यं ॥
भेंटूँ दीपक ।
मेंटो धी-बक ।।
एक शरणा !
करके करुणा॥ दीपं ॥
भेंटूँ कपूर ।
मेंटो फितूर ।।
एक शरणा !
करके करुणा ॥ धूपं ॥
भेंटूँ फल-दल ।
मेंटो छल-पल ।।
एक शरणा !
करके करुणा ॥ फलं ॥
भेंटूँ वसु-द्रव ।
मेंटो गारव ।।
एक शरणा !
करके करुणा॥ अर्घं ॥
==दोहा==
सुन, मुँह माँगा दे रहे,
आये दोड़े भाग ।
मेरा भी दीजे जगा,
सोया चिर-से भाग ।
॥ जयमाला ॥
चाहता लखना,
मन बना सपना,
वो तुम्हीं हो ।
चाहता रखना,
मन बना अपना,
वो तुम्हीं हो ॥
दूज का चाँद कहो,
किसको न भाता है ।
चौदवीं का चाँद !
चित् किसका न चुराता है ॥
हैं मगर फीके दोनों ही, आपके आगे ।
सिर्फ रात से अकेले,
क्योंकि इनका नाता है ॥
चाहता लखना,
मन बना सपना,
वो तुम्हीं हो ।
चाहता रखना,
मन बना अपना,
वो तुम्हीं हो ॥
मुस्कुराना गुल का कहो,
किसको न भाता है ।
तराना कोकिल का,
चित् किसका न चुराता है |
सहम सी जाती है,
पल को तब बुल बुल भी ।
थिरकना आप होठों को,
जब रास आता है ।।
चाहता लखना,
मन बना सपना ,
वो तुम्हीं हो ।
चाहता रखना,
मन बना अपना,
वो तुम्हीं हो ॥
जयमाला पूर्णार्घं
==दोहा==
यही गुजारिश अन्त में,
दृग्-तारक गुरु ज्ञान ।
अपने सा कर लो मुझे,
धन सद्-गुण धनवान॥
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