परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 227
चलें निराकुल पंथ ।
भक्तों के भगवन्त ।।
गुरु विद्या निर्ग्रन्थ ।
वन्दन तिन्हें अनन्त ।। स्थापना ।।
लाये उज्ज्वल नीर ।
पाने भौ-जल-तीर ।।
हम सबके भगवान् ।
दे दो इक मुस्कान ।। जलं ।।
लिये सुगंधित गंध ।
पाने नन्त सुगंध ।।
हम सबके भगवान् ।
दो इक मुस्कान ।।चंदनं ।।
लाये अछत परात ।
लगे अछत-पद हाथ ।।
हम सबके भगवान् ।
दे दो इक मुस्कान ।। अक्षतम् ।।
लिये सुवासित फूल ।
खोने काम समूल ।।
हम सबके भगवान् ।
दे दो इक मुस्कान ।। पुष्पं ।।
व्यञ्जन लिये नवीन ।
करने क्षुधा विलीन ।।
हम सबके भगवान् ।
दे दो इक मुस्कान ।। नैवेद्यं ।।
ले हाथों में दीप ।
आये आप समीप ।।
हम सबके भगवान् ।
दे दो इक मुस्कान ।। दीपं ।।
लिये हाथ में धूप ।
पाने आत्म स्वरूप ।।
हम सबके भगवान् ।
दे दो इक मुस्कान ।। धूपं ।।
लिये सरस फल थाल ।
खोने जग-जंजाल ।
हम सबके भगवान् ।
दे दो इक मुस्कान ।। फलं ।।
लाये अद्भुत अर्घ ।
पाने थान अनर्घ ।।
हम सबके भगवान् ।
दे दो इक मुस्कान ।। अर्घं ।।
**दोहा**
सुन, तव दर्शन मात्र से,
रोग-शोक हो दूर ।
आया छत्रच्छाँव दो,
ओ ! वसु-वसुधा नूर ।।
।। जयमाला ।।
गुरु बलिहारी !
बलिहारी !
गुरु बलिहारी ।
न्यारी महिमा तिहारी !
गुरु बलिहारी
तुम हो जान हमारी ।
तुम से शान हमारी ।।
तुम हो तो मुट्ठी में, जहान हमारी ।
गुरु बलिहारी !
बलिहारी !
गुरु बलिहारी ।
तुम हो धड़कन हमारी ।
नाड़ी फड़कन हमारी ।।
तुम हो तो डूबी घृत,
अंगुलि पन हमारी ।।
गुरु बलिहारी !
बलिहारी !
गुरु बलिहारी !
तुम हो मन्नत हमारी ।
तुम ही जन्नत हमारी ।।
तुम हो तो खुल ही गई,
किस्मत हमारी ।
गुरु बलिहारी !
बलिहारी !
गुरु बलिहारी !
न्यारी महिमा तिहारी,
गुरु बलिहारी ।
जयमाला पूर्णार्घं
**दोहा**
दे नहिं पाया ध्यान मैं,
भूलें हुई अटूट ।
कृपया श्री गुरुदेव जी,
हो जायें वो झूठ ॥
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