परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 225
जहाँ, निराकुल और नहीं ।
यहाँ न गुरुकुल और कहीं ।।
वे गुरु ज्ञान चरण वसिया ।
लें कर हमें चरण रसिया ।। स्थापना ।।
गुरुकुल बड़ा निराला है ।
सुकूँ थमाने वाला है ।।
नीर भेंट करते विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। जलं ।।
गुरुकुल है प्यारा सबसे ।
भेंट करा देता रब से ।।
गन्ध भेंट करते विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। चंदनं ।।
गुरुकुल है जाना माना ।
सिखलाता नित मुस्काना ।।
अक्षत भेंट, करें विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। अक्षतम् ।।
गुरुकुल छुये आसमाँ है ।
करे पास प्रवचन माँ है ।।
पुष्प भेंट करते विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। पुष्पं ।।
गुरुकुल है जग से न्यारा ।
धरा धराये सिर-भारा ।।
व्यंजन भेंट करें विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। नैवेद्यं ।।
गुरुकुल परम पुनीत अहा ।
सिखला निस्पृह प्रीत रहा ।।
दीप भेंट करते विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। दीपं ।।
गुरुकुल एक अनोखा है ।
कलि प्रदत्त सत् तोहफा है ।।
धूप भेंट करते विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। धूपं ।।
गुरुकुल ख्यात दिशावन दश ।
माफिक पारस मणिन-परस ।।
श्रीफल भेंट करें विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। फलं ।।
गुरुकुल इक सम रस सानी ।
रीझे स्वयं मुक्ति रानी ।।
अर्घ भेंट करते विनती ।
शिष्यों में कर लो गिनती ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सुन, तव करुणा का नहीं,
ओर दूर तक छोर ।
बनी पहेली जिन्दगी,
पाने आया तोड़ ।।
॥ जयमाला ॥
जय जय, जय जय
भा संबोधी ।
माई गोदी ।।
सीपी मोती ।
दीवा ज्योति ।।
जय जय, जय जय ।।१।।
मन शिशु बाला ।
भोला भाला ।।
हृदय विशाला ।
जगत् उजाला ।।
जय जय, जय जय ।।२।।
भक्त खिवैय्या ।
रक्षक गैय्या ।।
धुरुव तरैय्या ।
लाज बचैय्या ।।
जय जय, जय जय ।।३।।
भूषण धरती ।
तट वैतरणी ।।
साख सुमरणी ।
छवि मन हरणी ।।
जय जय, जय जय ।।४।।
दृष्टि नासा ।
विनष्ट आशा ।।
समिष्ट वासा ।
मैं तिन दासा ।।
जय जय, जय जय ।।५।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
अन्त-अन्त में आपसे,
यही अरज गुरुदेव ।
धरा धरा दो आ जरा,
सिर-चढ़ रही कुटेव ।।
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