परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 224
जिन्हें निरखने दृग् तरसें सब की ।
चलती फिरती जो मूरत रब की ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
उलझी, दें कृपया सुलझा उलझन।। स्थापना।।
चल चरखा पा रहा छत्र छाया ।
हत करघा कर नव जीवन आया ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें जल-कण लाये चरणन ।। जलं ।।
बन आदर्श रही पढ़ बालाएँ ।
विरच रही इतिहास गुशालाएँ ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें चन्दन लाये चरणन ।। चंदनं ।।
राज करे दिल आज मूकमाटी ।
उठा पा रही सिर ऋषि परिपाटी ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें अक्षत लाये चरणन ।। अक्षतम् ।।
नहीं पलायन कर अब रहे युवा ।
पाहन जिन-गृह ने लो गगन छुवा ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें प्रसून लाये चरणन ।। पुष्पं ।।
जुवाँ जुवाँ है जुवाँ हिन्दी थिरके ।
स्वाद पूरि मैत्री भेंटे घर के ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें व्यञ्जन लाये चरणन।। नैवेद्यं ।।
भाग्योदय है बूटी संजीवन ।
सिद्धोदय लाठी-सम अंतिम क्षण ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें दीपक लाये चरणन।। दीपं ।।
प्रतिभा-मण्डल भू-मण्डल तारा ।
छुये आसमाँ शान्ति दुग्ध धारा ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें सुगन्ध लाये चरणन ।। धूपं ।।
अनुशासन सा मोती ना सागर ।
धन्य प्रशासन शासन पथ पाकर ।।
गुरु विद्या हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें श्रीफल लाये चरणन ।। फलं ।।
कृषि जैविक आ गई सुर्खियों में ।
अब बेजुवाँ न आयें दुखियों में ।।
गुरु हम भक्तों के भगवन् ।
स्वीकारें सब-द्रव लाये चरणन ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सुन, बिगड़े कारज तुम्हें,
आय बनाना खूब ।
आया, कृपया दो हटा,
मग जीवन अघ-दूब ।।
।। जयमाला ।।
गुरुवर परम !
ओ शहंशाह अहिंसा धरम ।।
दर-दर की ठोकर खाया ।
आज आप द्वार आया ।।
मन के मिटा दो कृपया,सारे भरम ।
गुरुवर परम !
ओ शहंशाह अहिंसा धरम ।।
काँधे रखे सिर बोझा ।
रास्ता न पाया खोजा ।।
कृपया दो धरा, धरा करके रहम ।
गुरुवर परम !
ओ शहंशाह अहिंसा धरम ।।
देवता ! रब ! फरिश्ता ओ ।
दे बता अब, रास्ता दो ।।
थमा खेल-खेल में दो मंजिल चरम ।
गुरुवर परम !
ओ शहंशाह अहिंसा धरम ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
अन्त अन्त में आपसे,
यही विनय गुरुदेव ।
अजनबियों में रख सकूँ,
सहसा उठा फरेब ।।
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