परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 223
जिन्हें लुभाती रहे निराकुलता ।
जिनके दर्शन से सुकून मिलता ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
अन्तरंग से नन्त तिन्हें वन्दन ।। स्थापना ।।
नाता कब बन्ध्या सुत सेहरे से ।
नजर न हटती जिनके चेहरे से ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
करूँ समर्पित जल कण तिन चरणन ।। जलं ।।
जाना चाहे मन करीब उड़ उड़ ।
जिन्हें देखना चाहे मन मुड़-मुड़ ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
करूँ समर्पित चन्दन तिन चरणन ।। चंदनं ।।
ना जाने क्या है जादू-टोना ।
कोना कोना चाह रहा होना ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
करूँ समर्पित अक्षत तिन चरणन ।। अक्षतम् ।।
लगे मुझे तो मोहन धूली सी ।
दृग् बिन जिनके गीली-गीली सी ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
करूँ समर्पित फुल्वा तिन चरणन ।। पुष्पं ।।
जिन्हें पुकारें मोहन कह सारे ।
फीके जिनके आगे शशि-तारे ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन।।
करूँ समर्पित व्यञ्जन तिन चरणन ।। नैवेद्यं ।।
रहा करिश्मा कोई ना कोई ।
देखे दुनिया जो खोई-खोई ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
करूँ समर्पित दीपक तिन चरणन ।। दीपं ।।
कभी बात न करते है फीकी ।
नहीं बात हाँ! करते हैं ‘फी’-की ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
करूँ समर्पित सुगन्ध तिन चरणन ।। धूपं ।।
छूट नजूमों से जाते, नाते ।
छूते पद-रज कारज बन जाते ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
करूँ समर्पित श्रीफल तिन चरणन ।। फलं ।।
काफी है मुस्काना ही जिनका ।
‘मन’-भी, जाये उतर भार मन का ।।
गुरु विद्या वे माँ श्री मति नन्दन ।
करूँ समर्पित सब द्रव तिन चरणन ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सुन, पर के दुख दर्द को,
सुनें आप दे ध्यान ।
सहमे-सहमे आ गये,
कर दीजो कल्याण ।।
।। जयमाला ।।
तुम बिना कहाँ हम ।
तुम जहाँ वहाँ हम ।।
देखा क्या कभी,
कहो तो सही,
किसी भी पलक-पल ।
रवि न अभी,
आया ‘जि जमीं,
‘कि हों खिल गये कमल ।।
है ना,
है ना,
ये बात गगन पुष्प सम ।
गुरुवर परम ।
तुम बिना कहाँ हम ।
तुम जहाँ वहाँ हम ।।
देखा क्या कभी,
कहो तो सही,
किसी भी, पलक-पल ।
जिसे कहें झष भी,
मछली वो निमिष भी,
हो जी सकी बिना जल ।।
है ना,
है ना,
ये बात गगन पुष्प सम,
गुरुवर परम ।
तुम बिना कहाँ हम ।
तुम जहाँ वहाँ हम ।।
देखा क्या कभी,
कहो तो सही,
किसी भी पलक-पल ।
शशि न अभी,
आया कि जमीं,
हों खिल गये कुमद दल ।।
है ना,
है ना,
ये बात गगन पुष्प सम,
गुरुवर परम ।
तुम बिना कहाँ हम ।
तुम जहाँ वहाँ हम |।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
अन्त अन्त में आपसे,
अरज यही गुरुदेव ।
मुख-तक भर दीजे मिरा,
सत्संगत-धन जेब ।।
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