परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 221
बन्दर बाँट न तुम्हें सुहाये ।
जो भी आये, खुश हो जाये ।।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। स्थापना।।
समय-सार सब दिया किसी को ।
विनय द्वार शिव दिया किसी को |।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। जलं ।।
योग सार अर दिया किसी को ।
‘स्वोपकार-पर’ दिया किसी को ।।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। चंदनं।।
‘नियम सार बल’ दिया किसी को ।
प्रशम ‘हार गल’ दिया किसी को |।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। अक्षतम् ।।
रयण सार धन दिया किसी को ।
अर उदार मन दिया किसी को ।।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। पुष्पं ।।
क्षमा सिन्धु कर दिया किसी को ।
समाँ इन्दु कर दिया किसी को ।।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। नैवेद्यं ।।
सुधा सिन्धु कर लिया किसी को ।
क्षुधा बिन्दु वर दिया किसी को ।।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। दीपं ।।
साहस जी भर दिया किसी को ।
ढ़ाढ़स ही अर दिया किसी को ।।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। धूपं ।।
चैनो-मन दे दिया किसी को ।
‘जि मनो मन दे दिया किसी को ।।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। फलं ।।
महा मन्त्र ‘जी दिया किसी को ।
बना सन्त ही दिया किसी को ।।
दुखिया मैं भी करुणा कीजो ।
मुझे दया कर अपना लीजो ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सुन, दें छप्पर फाड़ के,
शरणागत को आप ।
आया, हर लीजे मेरे,
कृपया, दुख संताप ।।
।। जयमाला ।।
माँ-पिता समान हैं ।
गुरु ही भगवान हैं ।।
यूँ ही नहिं गुरु चरण में,
माथ आ झुका रहा ।
अश्रु पोंछना इन्हें,
माँ पिता भाँत भा रहा ।।
गम सकोचना इन्हें,
माँ-पिता भाँत आ रहा ।
इसलिये गुरु चरण में,
माथ आ झुका रहा ।।
माँ पिता समान हैं ।
गुरु ही भगवान हैं ।।
यूँ ही नहिं गुरु चरण में,
माथ आ झुका रहा ।
घाव मेंटना इन्हें,
माँ-पिता भाँत भा रहा है ।
छाँव भेंटना,
इन्हें माँ-पिता भाँत आ रहा है।
इसलिये गुरु चरण में,
माथ आ झुका रहा
माँ पिता समान हैं ।
गुरु ही भगवान हैं ।।
यूँ ही नहीं गुरु चरण में,
माथ आ झुका रहा ।
मुख न मोड़ना इन्हें,
माँ पिता भाँत भा रहा ।।
दुख मरोड़ना,
इन्हें माँ पिता भाँत आ रहा ।
इसलिये गुरु चरण में,
माथ आ झुका रहा
माँ पिता समान हैं
गुरु ही भगवान हैं ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
सविनय गुरु जी आपसे,
सिर्फ प्रार्थना एक ।
खींच हाथ में दीजिये,
मरण-समाधी रेख ।।
Sharing is caring!