परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 214
सुना, सुना करते दुख हो ।
सुनते ही हरते दुख को ।।
है दुख मेरा भी कम ना ।
अजि कृपया कीजो करुणा ।। स्थापना।।
थी रोती गो हा ! हा !
पा गई खुशी आहा ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। जलं।।
हा ! थी कल फिकर विकल ।
हिन्दी पाई सम्बल ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। चंदनं ।।
करघा था मानो-मृत ।
हो गया पुनर्जीवित ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। अक्षतम् ।।
थे मन्दिर जर-जर से ।
पा नव स्वरूप हरषे ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। पुष्पं ।।
बाला थी बोझ बनी ।
जल भिन्न सरोज बनी ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। नैवेद्यं।।
था रोग-दौर छाया ।
धन भाग्योदय आया ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। दीपं ।।
दिव्यांग दुखी भारी ।
सर्वोदय दुखहारी ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। धूपं ।।
मातृ शक्ति अधूरी ।
वरदाँ मैत्री पूरी ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। फलं ।।
माहन ध्वज उलझा सा ।
शाका-हारिक आशा ।।
दुख मेरा भी कम ना ।
कृपया कीजो करुणा ।। अर्घं ।।
।। दोहा।।
गुरु जी की मुस्कान में,
जादू की सी बात ।
अद्भुत कुछ घटने लगे,
लगती जिसके हाथ ।।
।। जयमाला ।।
गुरु बलिहारी ।
दो मुस्कुरा एक बारी ।
गुरु बलिहारी ।।
आ दूर से रहे हम ।
कब दूर से तके गम ।।
पड़ जाय नजर तुम्हारी ।
तो जाऊँ मैं बलिहारी ।।
गुरु बलिहारी ।
दो मुस्कुरा एक बारी ।
गुरु बलिहारी ।।
रोनी सी बनी सूरत ।
गुरु आप शुभ मुहुरत ।।
हारी दो जिता पारी ।
तो जाऊँ मैं बलिहारी ।।
गुरु बलिहारी ।
दो मुस्कुरा एक बारी,
गुरु बलिहारी।।
हा ! हालत कुछ इस क्षण ।
तड़फे मछली जल बिन ।।
ले लो आ खबर हमारी ।
तो जाऊँ मैं बलिहारी ।।
गुरु बलिहारी ।
दो मुस्कुरा एक बारी,
गुरु बलिहारी ।।
।। जयमाला पूर्णार्घ्य ।।
==दोहा ==
सिर्फ यही इक प्रार्थना,
गुरुवर, सुबहो शाम ।
लगने भारी ना लगे,
जिह्वा को तव नाम ।।
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