पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 212
‘रे मगन निराकुलता में ।
माहनन पताका थामे ।।
गुरु कुन्द-कुन्द सारीखे ।
हैं किसके नहीं सभी के ।। स्थापना ।।
सिंह सी चर्या पाले हैं ।
इक निस्पृह रख-वाले हैं ।।
गुरु मानतुङ्ग सारीखे ।
स्वीकारो जल घट नीके ।। जलं ।।
जागृत रहते निशि दीसा ।
विगलित लत-गलत खबीसा ।।
गुरु भद्र-समन्त सरीखे ।
स्वीकारो चन्दन ‘जी ये ।। चंदनं ।।
दी विहँसा मनमानी है ।
की सिरसा जिनवाणी है ।
अकलङ्ग देव सारीखे ।
स्वीकारो, अक्षत पीले ।। अक्षतम् ।।
दृग् जमीं देखती रहतीं ।
पर पीर देखती बहतीं ।।
गुरु वट्ट-केर सारीखे
स्वीकारो पुष्प अजी ये ।। पुष्पं ।।
गुरु हाथ थाम चलते हैं ।
ठगते न स्व पर मिलते हैं ।।
गुरु नेमीचन्द्र सरीखे ।
स्वीकारो, व्यञ्जन घी के ।। नैवेद्यं ।।
पल-एक न व्यर्थ गवाते ।
रट ही नवकार लगाते ।।
धर-सेनाचार्य सरीखे,
स्वीकारो दीवा घी के ।। दीपं ।।
दृग् खोल तीसरा रखते ।
रस स्वानुभूति नित चखते ।।
शुभचन्द्राचार्य सरीखे ।
स्वीकारो धूप सुधी ये ।। धूपं ।।
नहिं करते टोका टाँकी ।
नहिं करते ताँका-झाँकी ।।
गुरु पूज्य-पाद सारीखे ।
स्वीकारो ऋतु-फल मीठे ।। फलं ।।
अपना नहिं काम कराते ।
कब किसके काम न आते ।।
आचार्य शिवार्य सरीखे ।
स्वीकारो, वसु द्रव नीके ।। अर्घं ।।
==दोहा==
आये जब कोई नहीं,
आयें तब गुरु काम ।
आ,पल दो पल के लिये,
लेते गुरु का नाम ।।
।। जयमाला ।।
।। जय जय जय, जय जय जय ।।
करुणा क्षमा निधान ।
गुरु पाछी पवमान ।।
चरित ज्ञान श्रद्धान ।
गुरु भवि भक्त गुमान ।।
जय जय जय, जय जय जय ।।१।।
दृग् तारक श्री-मन्त ।
पिता मलप्पा नन्द ।।
शरद पूर्णिमा चन्द ।
कलि गुपाल गोविन्द ।।
जय जय जय, जय जय जय ।।२।।
इक भव जलधि जहाज ।
नग्न श्रमण सरताज ।।
इक सक्षम जांबाज ।
अक्षर लग्न स्वराज ।।
जय जय जय, जय जय जय ।।३।।
बादल पाप समीर ।
आज वर्धमाँ वीर ।।
नाज वर्तमॉं धीर ।
परहित आंखन नीर ।।
जय जय जय, जय जय जय ।।४।।
दृष्टि नासिका श्वास ।
आश प्रथम विश्वास ।।
परमातम अहसास ।
इक सितार आकाश ।।
जय जय जय, जय जय जय ।।५।।
।। जयमाला पूर्णार्घ्य ।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
नासा-दृष्टि सुमीत ।
यूँ ही नित गाता रहूँ,
गुरुवर थारे गीत ।।
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