परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 211
नाराज किसी को कभी न करते हैं ।
जो राज सभी के दिल पे करते हैं |।
श्री सन्त शिरोमणी वे छोटे बाबा ।
दें लगा किनारे, भौ-जल बिच नावा ।। स्थापना।।
मुस्कान बनी पहचान अहा इनकी ।
न देख रही अँखिंयाँ मुड़-मुड़ इनकी ।।
घट स्वीकारो जल के छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे, भौ जल बिच नावा ।। जलं ।।
है इनकी छत्रच्छाया में जादू ।
हो आप-आप ही जाती माया छू ।।
घट स्वीकारो चन्दन छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे,भौ जल बिच नावा ।। चंदनं ।।
अजि इनका मिल आशीष जिन्हें जाता ।
दुख-दर्द सताने उन्हें नहीं आता ।।
कण स्वीकारो अक्षत छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे, भौ जल बिच नावा ।। अक्षतं ।।
है हृदय भले मुट्ठी भर ही इनका ।
नहिं शरण शरण्य रहा पे किन किन का ।।
चरु स्वीकारो सुरभित छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे, भौ जल बिच नावा ।। पुष्पं ।।
बस एक झलक क्या देख लिया इनने ।
अनुभूत किया स्वर्गों का सुख मन ने ।।
घृत स्वीकारो व्यञ्जन छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे, भौ जल बिच नावा ।। नैवेद्यं ।।
आशीष वचन दो मिल क्या जिन्हें गये ।
अवसर उन्नति के खुलने लगे नये ।।
घृत स्वीकारो दीवा छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे, भौ जल बिच नावा ।। दीपं ।।
की चरण-धूल इनकी जिनने माथे ।
कर लिये फूल, पथ के उनने काँटे ।।
कण स्वीकारो सुगंध छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे, भौ जल बिच नावा ।। धूपं ।।
है जोड़ लिया इनसे जिनने रिश्ता ।
हो भूल भुलैय्या भले, मिले रस्ता ।।
फल स्वीकारो मिसरी, छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे, भौ जल बिच नावा ।। फलं ।।
पग इनने बढ़ा दिये जिस घर तरफी ।
चाँदी-चाँदी उस घर की हर तरफी ।।
सब स्वीकारो वसु द्रव छोटे बाबा ।
दो लगा किनारे, भौ जल बिच नावा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
जादू गुरु वाणी अहो,
की जिनने भी कान ।
दुख में भी छाने लगी,
तिन मुख पे मुस्कान ।।
।। जयमाला ।।
टिका, पा कृपा गुरु संसार ।
गुरु की महिमा अगम अपार ।।
मिलता जा निर्झर दरिया ।
मिलती जा सागर नदिया ।।
कहो ? मिले सागर किससे ।
कुछ यूँ ही गुरु के किस्से ।।
गुरु की महिमा अपरम्पार ।
हुआ बीज से तरु तैयार ।
तरु से हुआ बीज अवतार ।।
कहो कौन पहले आया ।
कुछ यूँ ही गुरु की माया ।।
गुरु की महिमा का नहिं पार ।
प्रभु जग भेजें पाथर रूप ।
गुरु तराश के करें अनूप ।।
दुख भी दें प्रभु कहते लोग ।
पर जोड़ें गुरु सुख संजोग ।।
काज न होय किया करतार ।
गुरु की महिमा अपरम्पर ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
इक आश्रय दातार ।
त्राहि माम् ! पन छू रहा,
अमर बेल संसार ।।
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