परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमाक 209
ओ ! करने वाले करुणा ।
सुनते ! जो आता शरणा ।।
होता बेड़ा पार ।
‘कि गुरु की जय जयकार ।।
महिमा अपरम्पार,
‘कि गुरु की जय जयकार ।। स्थापना |।
मिल नहिं पाये जल कलशे ।
तरबतर नैना ये-जल से ।।
कर लीना स्वीकार,
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।।जलं ।।
ले आये जल्दी-जल्दी ।
चन्दन के बदले हल्दी ।।
कर लीना स्वीकार,
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।।चन्दनं ।।
अक्षत की मिली न थाली ।
आ गये बजाते ताली ।।
कर लीना स्वीकार
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।।अक्षतम् ।।
खोजे पर पुष्प न पाये ।
रुखसार अश्क ये छाये ।।
कर लीना स्वीकार,
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।। पुष्पं।।
थे निर्मित ही नहिं पकवाँ ।
आये निसंग सम पवमाँ ।।
कर लीना स्वीकार ।
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।।नैवेद्यं ।।
घृत ना दीवा ना बाती ।
पन मीर दिवाना थाती ।।
कर लीना स्वीकार ।
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।। दीपं।।
घट-धूप नहीं मिल पाये ।
चित् रूप साथ ले आये ।।
कर लीना स्वीकार ।
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।।धूपं ।।
खोजे फल नहीं मिल पाये ।
श्री फल जुग हाथ बनाये ।।
कर लीना स्वीकार,
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।।फलं ।।
खो गई द्रव्य की थाली ।
आ गये हाथ ले खाली ।।
कर लीना स्वीकार ।
‘कि गुरु की जय जयकार !
महिमा अपरम्पार ।।
‘कि गुरु की जय जयकार ।।अर्घं ।।
*दोहा*
मणि पारस बस लोह को,
देते कञ्चन रूप ।
धन ! धन गुरु खुद के समाँ,
कर लेते चिद्रूप ।।
।। जयमाला ।।
तुम ऽऽऽ
गुरु जी तुम ।
बड़े लाजबाब हो ।
सारे सवालों के, इक जबाब हो ।।
तुम,
हाँ ! हाँ तुम
‘जि गुरु जी तुम,
बड़े लाजबाब हो ।
थका-हारा जो भी आता ।
आपकी ज्यों मुस्कान पाता ।।
‘कि थकान होती गुम ।
तुम,
हाँ ! हाँ तुम ।
जि गुरु जी तुम ।।
बड़े लाजबाब हो ।
तुम sss
गुरु जी तुम ,
बड़े लाजबाब हो ।
सारे सवालों के, इक जबाब हो ।।
हहा ! उलझा जो भी आता ।
आपकी ज्यों पग धूल पाता ।।
‘कि भूल होती गुम ।
तुम ऽऽऽ
हाँ ! हाँ तुम,
‘जि गुरु जी तुम,
बड़े लजबाब हो ।
तुम
गुरु जी तुम,
बड़े लाजबाब हो ।
डरा-सहमा जो भी आता ।
आपकी ज्यों छत-छाँव पाता ।।
भटकाव हो ‘कि गुम
तुम,
हाँ ! हाँ तुम,
जि गुरु जी तुम,
बड़े लाजवाब हो ।
तुम ऽऽऽ
गुरु जी तुम,
बड़े लाजबाब हो ।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
गुरु के चरणों में मिले,
जिनको ‘सहज’ पनाह ।
मंजिल आती दीखती,
बिन नापे ही राह ।।
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