परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 207
निहारिये जी गुरु जी ।
पधारिये जी गुरु जी ।।
सूना-सूना हृदयासन ।
करता सविनय आह्वानन ।।
‘जि पधारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरु जी ।
पधारिये जी गुरु जी ।। स्थापना ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरु जी ।
लाया जल से भर कलशे ।
माया छल से उर निवसे ।।
विहँसाहिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरु जी ।। जलं ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरुजी ।।
लाया चन्दन घट सुन्दर ।
माया पकड़े हट अन्दर ।।
हटकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरुजी ।। चंदनं ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरु जी ।।
आया शालि धाँ लाई ।
माया कालिमा छाई ।।
विघटाइये जी गुरुजी ।
निहारिये जी गुरुजी ।। अक्षतम् ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरुजी ।।
लाया गुल सुगन्ध वाले ।
माया मनसूबे काले ।
धुतकारिये जी गुरुजी ।
निहारिये जी गुरुजी ।। पुष्पं ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरुजी ।।
आया व्यञ्जन ले घी के ।
माया ले चाले नीचे ।।
फटकारिये जी गुरुजी ।
निहारिये जी गुरुजी ।। नैवेद्यं ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरुजी ।।
लाया घृत गो दीपाली ।
माया छीने दीवाली ।
ललकारिये जी गुरुजी ।
निहारिये जीगुरुजी ।। दीपं ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरुजी ।।
लाया सुगन्ध मन हारी ।
माया ढ़ाये दुश्वारी ।
विखराईये जी गुरुजी ।
निहारिये जी गुरुजी ।। धूपं ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरुजी ।।
लाया फल मन लुभावने ।।
माया ठगे जितना बने ।
विनशाईये जी गुरुजी ।
निहारिये जी गुरुजी ।। फलं ।।
स्वीकारिये जी गुरु जी ।
निहारिये जी गुरुजी ।।
लाया द्रव्य सभी मनहर ।
माया चढ़ती सिर ऊपर ।।
धमकाईये जी गुरुजी ।
निहारिये जी गुरुजी ।। अर्घं ।।
==दोहा==
जिन्होंने गुरुदेव से,
जोड़ी प्रीत अटूट ।
उन्होंने लीनी रिझा,
सन्तोषा ऽमृत घूँट ।
।। जयमाला ।।
अजनबी ये उठाकर जिगर रख लिया ।
आपने जो उठाकर नजर लख लिया ।।
शुक्रिया-शुक्रिया
‘जि गुरु जी शुक्रिया ।
था नसमझ दार मैं ।
और मझ धार में ।।
आपने जो उठा तट-उधर रख दिया ।
आपने जो उठाकर नजर लख लिया ।
शुक्रिया-शुक्रिया,
‘जि गुरु जी शुक्रिया ।
आपने जो उठाकर नजर लख लिया ।।
हा ! खड़ा पहाड़ था ।
थे न पंख हारता ।।
आपने जो उठा शिखर पर रख दिया ।
आपने जो उठाकर नजर लख लिया ।।
शुक्रिया-शुक्रिया,
‘जि गुरु जी शुक्रिया ।
आपने जो उठाकर नजर लख लिया ।।
काम का न हा ! जरा ।
भार था धरा-धरा ।।
आपने जो उठा पाँत अखर रख दिया
आपने जो उठाकर नजर लख लिया ।
शुक्रिया शुक्रिया, जि गुरु जी शुक्रिया ।
आपने जो उठाकर नजर लख लिया ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
नूर आसमानी अहो,
सिर्फ गुजारिश एक ।
नजर उठा इक बार तो,
हमें लीजिये देख ।।
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