परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 205
गुरुदेवा !
गुरुदेवा !
है पास ही क्या,
इन आँसुओं के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा,
गुरुदेवा !
गुरुदेवा ।। स्थापना ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा,
है पास की क्या,
इन जल कणों के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।। जलं ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा,
है पास की क्या,
इन गन्ध कण के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।। चंदनं ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा !
है की पास क्या,
इन तन्दुलों के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।।अक्षतम् ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा !
है पास की क्या,
इन पुष्पों के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।। पुष्पं ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा !
है पास की क्या,
इन व्यञ्जनों के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।। नैवेद्यं ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा !
है पास की क्या,
इन दीपकों के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।। दीपं ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा !
है पास की क्या,
इन धूप-कण के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।। धूपं ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा,
है पास की क्या,
इन कुछ-फलों के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।। फलं ।।
गुरुदेवा !
गुरुदेवा !
है पास की क्या,
इन वसु-द्रव्य के सिवा,
जो तुम्हें दूँ चढ़ा !
गुरुदेवा,
गुरुदेवा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
देखा, जा जा सब जहाँ,
मिला न गुरु के भाँत ।
अपने ही क्या भाँति ना,
भाई ! कहो ? प्रभात ।।
।। जयमाला ।।
गुरुवर !
गुरुवर !
गुरुवर !
लो उठा कभी इधर भी नजर ।
आ जाओ भी कभी मेरे भी घर ।।
गुरुवर !
गुरुवर !
गुरुवर !
पलकें बिछाये हूँ ।
रटना लगाये हूँ ।।
तेरे नाम की आठ ही पहर ।
आ जाओ भी कभी मेरे भी घर ।।
गुरुवर !
गुरुवर !
गुरुवर !
अखियाँ भिंजाये हूँ ।
टकटकी लगाये हूँ ।।
बढ़े, अब बढ़े, ‘कि पग तेरे इधर ।
आ जाओ भी कभी मेरे भी घर ।।
गुरुवर !
गुरुवर !
गुरुवर !
श्रद्धा जगाये हूँ ।
शबरी कहाये हूँ ।।
तुम भी कहाओ कभी राम रघुवर ।
आ जाओ भी कभी मेरे भी घर ।।
गुरुवर !
गुरुवर !
गुरुवर !
लो उठा कभी, इधर भी नजर ।
आ जाओ भी कभी मेरे भी घर ।।
गुरुवर !
गुरुवर !
गुरुवर !
।। जयमाला पूर्णार्घ्य ।।
==दोहा==
एक गुजारिश आपसे,
भो ! अपूर्व मुस्कान ।
पल अब-तब देना पिला,
कान मंत्र-कल्याण ।।
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