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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 193

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 193

अच्छे सच्चे न्यारे हैं ।
बच्चे जिनको प्यारे हैं ।।
छोटे बाबा हम सबके ।
हम सबको तोहफे रब के ।। स्थापना ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
गुस्सा नहीं आता ।।
क्या करूँ मगर गुस्सा,
पीछे पड़ा मेरे ।
लिये नीर इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। जलं ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
आलस नहीं आता ।।
क्या करूँ मगर आलस,
पीछे पड़ा मेरे ।
चन्दन ले इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। चंदनं ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
छलना नहीं आता ।।
क्या करूँ मगर छलना,
पीछे पड़ा मेरे ।
अक्षत ले इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। अक्षतम् ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
अकड़ना नहीं आता ।।
क्या करूँ पर अकड़ना,
पीछे पड़ा मेरे ।
लिये पुष्प इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। पुष्पं ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
झगड़ना नहीं आता ।।
क्या करूँ पर झगड़ना,
पीछे पड़ा मेरे ।
पकवाँ ले इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। नैवेद्यं ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
सताना नहीं आता ।।
क्या करूँ पर सताना,
पीछे पड़ा मेरे ।
लिये दीप इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। दीपं ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
चिढ़ाना नहीं आता ।
क्या करूँ पर चिढ़ाना,
पीछे पड़ा मेरे ।
लिये धूप इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। धूपं ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
भगाना नहीं आता ।
क्या करूँ पर भगाना,
पीछे पड़ा मेरे ।
ऋतु फल ले इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। फलं ।।

मेरे छोटे बाबा को,
क्या क्या नहीं आता ।
सब कुछ आता लेकिन,
रुलाना नहीं आता ।
क्या करूँ पर रुलाना,
पीछे पड़ा मेरे ।
लिये अर्घ इसलिये,
दर पे खड़ा तेरे ।। अर्घं ।।

==दोहा==
जादू गुरु आहार में,
दिया एक भी ग्रास ।
बली, श्यामली भी बला,
पा जाती पन-ह्रास ।।

।। जयमाला ।।

और कुछ नहीं चाहिये ।
‘जि ! गिर न जायें सँभालिये ।।

हैं कदम-कदम पे धोके यहाँ ।
तके नजर-नजर है मौके यहाँ ।।
हंस सी मति भिंटाइये ।
और कुछ नहीं चाहिये ।

हा ! छोटी मीन परेशाँ बड़ी ।
कहाँ समीचीन हमेशा घड़ी ।।
सही रास्ता दिखाइये ।
और कुछ नहीं चाहिये ।।

माँ ही बनी आज हा ! नागिनें ।
कह रहे शिशु, न कम हमें गिनें ।।
हवा पश्चिमी, बचाईये ।
और कुछ नहीं चाहिये ।।

कत्ल खाने हहा, न पाय गिन ।
लो अँगुली पे, गुशालाएँ गिन ।
ध्वज अहिंसा, थमाइये ।
और कुछ न हीं चाहिये ।।
जि ! गिर न जाये सँभालिये ।।
और कुछ नहीं चाहिये ।
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥

==दोहा==
जिसने दिलो-दिमाग पे,
लिक्खा गुरु का नाम ।
भूल-भुलैय्या हो भले,
कभी न हो नाकाम ।।

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