परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 192
पूजन करने शिशु आये ।
सँग-ढ़ोल मजीरा लाये ।।
चिर अखिंयाँ मेरी प्यासी ।
दे-दो मुस्कान जरा सी ।। स्थापना।।
भर नीर नयन लाये हैं ।
जल कलश न मिल पाये हैं ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो दीजो शरणा।।जलं ।।
ले पुण्य बन्ध आये हैं ।
घट-गन्ध न मिल पाये हैं ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो, दीजो शरणा ।। चंदनं ।।
ले आये सँग कर ताली ।
मिल सकी न अक्षत-थाली ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो, दीजो शरणा ।। अक्षतम् ।।
नहिं प्रसूँ पिटारी लाये ।
ले सुकूँ पुजारी आये ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो दीजो शरणा ।। पुष्पं ।।
व्यञ्जन परात नहिं दीखा ।
ये मुख-प्रसाद ही फीका ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो, दीजो शरणा ।। नैवेद्यं ।।
देखा, न दीव दिख पाया ।
लिख दीव हाथ में लाया ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो, दीजो शरणा ।। दीपं ।।
लाया सुगन्ध नहिं सँग मैं ।
लाया उमंग रग-रग में ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो, दीजो शरणा ।। धूपं ।।
मिल पाये फल नहिं मीठे ।
ले संस्तव माँ से सीखे ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो, दीजो शरणा ।। फलं ।।
वसु दूर, न इक भी द्रव है ।
बस जो ये वृद्ध अदब है ।।
स्वीकारो, कीजो करुणा ।
स्वीकारो, दीजो शरणा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
जादू गुरु के हाथ में,
मिला जिसे आशीष ।
राखी होली मन रही,
दीवाली निशि-दीश ॥
॥ जयमाला ॥
विद्यासागर सबसे प्यारे ।
विद्यासागर जग से न्यारे ।।
यही वो जो डाल आते,
भक्त झोली चाँद तारे ।
विद्यासागर सबसे प्यारे।
विद्यासागर सबसे न्यारे ।।
यही वो जो लगा आते,
भक्त नैय्या उस किनारे ।
विद्यासागर सबसे प्यारे ।
विद्यासागर सबसे न्यारे ।।
यही वो जो पास जिनके,
दीखते जन्नत नजारे ।
विद्यासागर सबसे प्यारे ।
विद्यासागर सबसे न्यारे ।।
यही वो जो वक्त आड़े,
भक्त के बनते सहारे ।
विद्यासागर सबसे प्यारे ।
विद्यासागर सबसे न्यारे ।।
यही वो जो जमीं पे कह,
जिन्हें सकते हम हमारे ।
विद्यासागर सबसे प्यारे ।
विद्यासागर जग से न्यारे ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
चलते, उठते बैठते,
आ लें गुरु का नाम ।
चिंता दुख तकलीफ का,
कर लें काम तमाम ॥
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