परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 168
तुम्हीं सँजोये सपने हो ।
तुम्हीं हमारे अपने हो ।।
दया दया कर बरषाओ ।
पास बुला लो या आओ ।। स्थापना ।।
जल भर ले झारी आया ।
रह रह तड़फाये माया ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।। जलं ।।
लाया जल मलयज झारी ।
दुर्मति से परिणति हारी ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।। चन्दनं ।।
लाया भर अक्षत थाली ।
गई रूठ सी दीवाली ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।। अक्षतम् ।।
पुष्प परात लिये आये ।
मदन पल पलक सिरझाये ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।।पुष्पं ।।
व्यंजन सरस नवीने हैं ।
देती क्षुधा न जीने हैं ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।। नैवेद्यं ।।
दीवा लिये बड़े प्यारे ।
अघ अंधर बाजी मारे ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।। दीपं ।।
लिये धूप दश गंध अहा ।
विचर कर्म स्वच्छंद रहा ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।। धूपं ।।
लिये पिटारी फल वाली ।
मुरझाई जीवन क्यारी ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।। फलं ।।
लाया सब के सभी दरब ।
करें परेशाँ सभी गरब ।।
करुणा कर ! करुणा कर दो ।
करुणा भरी नजर धर दो ।। अर्घं।।
==दोहा==
गुरु का जिसने पा लिया,
आशीर्वाद विशेष ।
पाने को अब रह गया,
उसे कहो क्या शेष ।।
॥ जयमाला ॥
गुरु ने डोर थाम ली ।
फिकर न अब मुकाम की ।।
रात भी प्रात अब ।
आ गया हाथ सब ॥
आप निर्दाम ही ।
गुरु ने डोर थाम ली ।।
फिकर न अब मुकाम की ।
बाँस बाँसुरी बना ।
आश अब अधूरी ना ।।
‘आम’ शिव धाम भी ।
गुरु ने डोर थाम ली ।।
फिकर न अब मुकाम की ।
मृदा, अब बने घड़े ।
खुदा सामने खड़े ॥
महावीर, राम भी ।
गुरु ने डोर थाम ली ।।
फिकर न अब मुकाम की ।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
गुरुवर दो मेरा करा,
छोटा सा इक काम ।
करने जिह्वा पर लगे,
नर्तन तेरा नाम ॥
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