परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 160
गुरु चरण
गुरु चरण
गुरु चरण
शरद पूरण-अवतरण ।
शश-पूरण-शरद ‘वरण’ ।।
चल तीरथ विद्या श्रमण ।
इक शरण- इक शरण- इक शरण।। स्थापना।।
नीर कर, कर कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
इक अवर तारण तरण ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण ।।जलं ।।
गंध कर, कर-कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
हर विहर जामन मरण ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण।।चन्दनं ।।
अछत कर, कर-कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
इक अपर कलिजुग शरण ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण।। अक्षतम् ।।
पुष्प कर, कर-कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
कर्म-दल दल-दल, दमन ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण।।पुष्पं ।।
चरु कर, कर कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
तलक हद-क्षुध्-गद-हरण ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण ।। नैवेद्यं ।।
दीप कर, कर कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
इक सदन चेनो अमन ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण ।। दीपं ।।
धूप कर, कर कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
पीर पर कर अपहरण ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण।। धूपं ।।
फल कर, कर कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
जागर आवीचि मरण ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण ।। फलं।।
अर्घ कर कर कर नमन ।
भेंटता आ तर नयन ।।
हंस मत भुवन भुवन ।
गुरु चरण गुरु चरण गुरु चरण ।।
इक शरण-इक शरण-इक शरण ।।अर्घं।।
==दोहा==
ला, श्री गुरु आशीष दे,
खुशियों की बरसात ।
कर गुरु का गुणगान आ,
पाते आशीर्वाद ॥
॥ जयमाला ॥
॥ विद्या शाला गजब निराली ॥
मटकी न अटकाये हाथ ।
कदली पात भाँत न बात ।।
रात बीच रातन उजियाली ।
विद्या शाला गजब निराली ॥
रहती नीचे इतने जाके ।
जाल फाँस न सकता आके ।।
मीन बीच मीना मतिवाली ।
विद्या शाला गजब निराली ॥
गजस्-नान प्रीति से रीती ।
हार चाह, किस निमिष न जीती ।।
साँझ न लाली सुबहो वाली ।
विद्या शाला गजब निराली ॥
काँच न बन चटका चटकाये ।
शीश महल बन श्वान न जाये ।।
‘ताली’ ताल मिलाने वाली ।
विद्या शाला गजब निराली ॥
सीखी वरषा में नहिं रोना ।
जाने, पाने पड़ता खोना ।।
बीच गाय उजियाली, काली ।
विद्या शाला गजब निराली ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
शरद पूर्णिमा चन्द ।
आप भाँति हम पा सकें,
आतम का आनन्द ॥
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