परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 159
बड़े बाबा दीवाने ।
तुम्हें न कौन जाने ।।
जहाने ! छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। स्थापना ।।
नीर भर लाये गगरी ।
भाये सिद्धों की नगरी ।।
सभी के छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। जलं ।।
घिस लिये चंदन आये ।
इसलिये, क्रन्दन जाये ।।
रहनुमाँ छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। चन्दनं ।।
सित अछत लाये दर पे ।
ले चलो लोक शिखर पे ।।
फरिश्ते ! छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। अक्षतम् ।।
पुष्प भर लाये थाली ।
लो विहर काम बीमारी ।।
मिरे ओ छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। पुष्पं ।।
लिये नव व्यंजन घी के ।
न छेडूँ लेख विधी के ।।
‘सिद्ध कल’ छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। नैवेद्यं ।।
लिये दीपक घृत आये ।
तिमिर मिथ्या भरमाये ।।
विदिश्-दिश् छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। दीपं ।।
धूप लाये मनभावन ।
ऽनूप जायें बन पावन ।।
निरुपम छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। धूपं ।।
लिये फल मनहर मीठे ।
आप से होने नीके ।।
मसीहा छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। फलं ।।
सभी ले लाये वसु द्रव ।
आप सा पाने गौरव ।।
न किसके,छोटे बाबा ।
लगा उस तट दो नावा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
मिली जुबाँ गुरुदेव का,
आ करते गुणगान ।
जाने कब देने लगे,
दस्तक काल विमान ॥
॥ जयमाला ॥
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।
काम उलझे ले सुलझा तू ।।
जादुई इनका मुस्काना ।
जादुई दैगम्बर बाना ।।
नजर भर देख तो जरा तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
काम उलझे ले सुलझा तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
जादुई हैं इनकी आँखें ।
जादुई हैं इनकी बातें ।।
ठहर, सर दर तो झुका तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
काम उलझे ले सुलझा तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
जादुई आशीषी छाया ।
आ यहाँ, ले सिसकी माया ।।
पलक-पल मन तो बना तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
काम उलझे ले सुलझा तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
जादुई पाद मूल इनका ।
हरे दुख ‘पाद-धूल’ मन का ।।
पहल ‘बन के’ ही कर हाँ ! तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
काम उलझे ले सुलझा तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
जादुई हैं दर्शन इनका ।
जादुई निर्देशन इनका ।।
मान ले बात इक दफा तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
काम उलझे ले सुलझा तू ।
नाम गुरु विद्या ले आ तू ।।
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
==दोहा==
एक प्रार्थना आपसे,
उन्नत गिरि स्कन्ध ।
विहर पुराना बन्ध लो,
नहीं नया दो बन्ध ॥
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