परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 156
सत् शिव सुन्दर ।
ज्ञान समुन्दर ।।
सद् गुण आकर ।
विद्यासागर ।। स्थापना।।
भर जल लाया ।
चरण चढ़ाया ।।
ओ ! सम दर्पण ।
दो सम-दर्शन ।। जलं ।।
चन्दन लाया ।
चरण चढ़ाया ।।
ओ ! शीत-लता ।
दो शीतलता ।। चन्दनं ।।
अक्षत लाया ।
चरण चढ़ाया ।।
ओ ! अपगत-मद ।
दो अक्षत-पद ।। अक्षतम् ।।
प्रसून लाया ।
चरण चढ़ाया ।।
शील अशेषा ।
दो शीलेषा ।। पुष्पं ।।
व्यंजन लाया ।
चरण चढ़ाया ।।
जुदा-सुधा ओ ।
बिदा क्षुधा हो ।। नैवेद्यं ।।
दीवा लाया ।
चरण चढ़ाया ।।
ओ परमातम ।
लो हर-मातम ।। दीपं ।।
सुधूप लाया ।
चरण चढ़ाया ।।
मिरे देवता ।
मिरा दें पता ।। धूपं ।।
ऋतु फल लाया ।
चरण चढ़ाया ।।
अवगुण नाशी ।
दो गुण राशि ।। फलं ।।
द्रव सब लाया |
चरण चढ़ाया ।।
ओ ! भास्वत सत् ।
दो शाश्वत पद ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सीख घड़ी जिनसे गई,
नपी-तुली सी चाल ।।
गुरु विद्या प्रति-पाल वे,
मेंटें जग जंजाल ॥
॥ जयमाला ॥
शरद पूर्णिमा चन्द्र सुड़ोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ।।
वो नहिं तुला सके जो तोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
रजधानी में मध्यप्रदेश ।
चल था रहा प्रवास विशेष ।।
बना समव-शरणी माहौल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
घटना थी इक घटी विचित्र ।
इक भगिनी ने खींचा चित्र ।।
चारकोल का लेकर घोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
सकुचा आई गुरु के पास ।
सँग परिवार लिये अरदास ।।
छू दृग् इसे करें अनमोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
थी दादा गुरु की तस्वीर ।
चरणन लघु नन्दन महावीर ।।
करे चित्र दृग्-गुरु कल्लोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
खबर उड़ी ले मारुत चाल ।
फोन एक आया तत्काल ।।
दे करोड़ भी सकता मोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
भगिनी बोली ओ ! सुन भ्रात ।
विक्रय की है ही नहिं बात ।।
गई बात यूँ टाल मटोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
कर दिन-जन्म-भ्रात फिर ज्ञात ।
ले तस्वीर गई घर भ्रात ।।
सौंपी, दी बधाई दिल खोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
था नैनों में उनके नीर ।
पा अभिषेक रही तस्वीर ।|
टिके नैन गुरु चरण अलोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
फिर क्या लेने गुरु आशीष ।
जुग परिवार चले नत-शीश ।।
थे सँग भाँत-भाँत के ढ़ोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
गुरु समक्ष जा खोला राज ।
धन ! मानवता मरी न आज ।।
गुरु मुख झिरे अमृत ये बोल ।
विद्या सागर रत्न अमोल ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
लगा रखी गुरुदेव से,
जिसने लगन अटूट।
सुख से उसकी दूरियाँ,
बात साफ ये झूठ ॥
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