परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 150
भावी वधु शिव-पुर साथिया ।
पा जिन्हें, नहीं क्या पा लिया ।।
विद्यासागर गुरु-पारखी ।
दो कला सिखा उस पार की ।। स्थापना ।।
घट प्रासुक जल से भर लिया ।
आ आप चरण अपर्ण किया ।।
विद्यासागर गुरु बागवाँ ।
कर व्रति, कर दो बड़-भागवाँ ।। जलं ।।
चन्दन ले मलयज घिस लिया ।
पद आप उसे अर्पित किया ।।
विद्यासागर गुरु माँ-पिता ।
अबकी कर्मों से दो जिता ।। चन्दनं ।।
अक्षत चुन-चुन कर कर लिये ।
अर्पित तुम पद आ कर दिये ।।
विद्यासागर गुरु आपगा ।
दो ताप विहर संताप का ।। अक्षतम् ।।
फूले फूले से सुमन-चुन ।
क्षेपे पद माफिक शुभ शगुन ।।
विद्यासागर गुरु फरिश्ते ।
न दें रिसने, रिसते रिश्ते ।। पुष्पं ।।
सँग सँग स्वर व्यंजन कर किये ।
पद कर्ण धार तुम धर दिये ।।
विद्यासागर गुरु देवता ।
मग-मृत्यु-सुकूँ क्या ? दें बता ।। नैवेद्यं ।।
दीपक अठपहरी घृत लिये ।
तुम पाद मूल अर्पित किये ।।
विद्यासागर गुरु चंद्रमा ।
दो विघटा मोह तिमिर अमा ।। दीपं ।।
ले धूप सुगंधित हाथ में ।
छेपूँ तुम पद नत माथ मैं ।।
विद्यासागर गुरु रहनुमा ।
कर कृपा गुमा देवें गुमाँ ।। धूपं ।।
फल पक्क मधुर रस से सने ।
भेंटूँ जो बस लखते बने ।।
विद्या सागर गुरु शहंसा ।
रग-रग रम जाये अहिंसा ।। फलं ।।
वसु द्रव्यों से भर थालियाँ ।
अरपूँ पद दे-दे तालियाँ ।।
विद्यासागर गुरु खिवैय्या ।
दो दिखा तीर छैय्या छैय्या ।।अर्घं ।।
==दोहा==
सुनते, सुन गुरुदेव का,
नाम काँपता काल ।
आ गुरु-गुण-कीर्तन करें,
थोड़ा समय निकाल ॥
==जयमाला==
वन्दनम्, वन्दनम् ।
श्री-मन्त नन्दनम् ।।
वन्दनम्, वन्दनम् ।
सदलगा भू जनम |
शश शरद पूनमम् ।।
वन्दनम्, वन्दनम् ।
श्री-मन्त नन्दनम् ।।
वन्दनम्, वन्दनम् ।
हेत पर नैन नम ।
ज्ञान गुरु शिख परम ।।
वन्दनम्, वन्दनम् ।
श्री-मन्त नन्दनम् ।।
वन्दनम्, वन्दनम् ।
सूर नभ जिन-धरम |
निरा ‘कुल गुण अगम ।।
वन्दनम्, वन्दनम् ।
श्री-मन्त नन्दनम् ।।
वन्दनम्, वन्दनम् ।
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
==दोहा==
यही विनय अनुनय यहीं,
सजग अहो दिन रात ।
थमा हाथ में दो जरा,
विनय सहेली हाथ ॥
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