परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 144
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।स्थापना।।
भेंटूँ जल ।
हावी छल॥
करो ‘कि कुछ, हो गुम गुमाँ॥
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।जलं।।
घट चन्दन ।
भव बन्धन॥
करो ‘कि कुछ, वरे शिव रमा ॥
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।चन्दनं।।
धाँ शाली ।
बदहाली॥
करो ‘कि कुछ, छुऊँ आसमाँ ।
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।अक्षतं।।
भेंट सुमन ।
भेट विघन॥
करो ‘कि कुछ, रीझे क्षमा ॥
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।पुष्पं।।
चरु लाया ।
सिर माया॥
करो ‘कि कुछ, विघटे अमा॥
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।नेवैद्यं।।
दीपक घी ।
छी, बक धी ॥
करों कि कुछ, वसें कण्ठ माँ ॥
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।दीप॑।।
सुगंध अन ।
भारी मन ॥
करो कि कुछ, बँध चले समा॥
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।धूपं।।
फल मीठे ।
दृग् तीते ॥
करो ‘कि कुछ, सकूँ ‘पुन’ कमा॥
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।फल॑।।
द्रव सारे ।
अँधियारे ॥
करो कि कुछ, जगे पूर्णिमा ॥
गुरुणां गुरु नमो नमः ।
लघु-नन्द पुरु नमो नमः ॥
नमो नमः अनुकम्प बुत ।
नमो नमः श्री-मन्त सुत ॥
छव कुन्द-कुन्द नमो नमः ।
श्री विद्या सिन्ध नमो नमः ।।अर्घं।।
“दोहा”
सीखा जिनसे बेंत ने,
निरखत जबर झुकाव ।
गुरु विद्या सुख-ठाव वें,
रखें बनाये छाँव ॥
॥ जयमाला ॥
शरद पूनम निशि सुहानी,
शशि जमीं अद्वितिय आया ।
झील सी आंखें गुलाबी,
गाल ग्रीवा शंख की सी ॥
कमर पतली देख बगलें,
झाँकता है केसरी भी ।
पुष्प चम्पक नासिका शशि,
पंक्ति नख, अलि श्याह अलकें ॥
पद्म पाँखुरि होंठ,
पगतलियाँ मणी मरकत सरीखी ।
अँगुलिंयाँ पतली धनुष सी,
भ्रुएँ चारु चिबुक आहा ॥
दिव्य भासुर भाल उजियाला,
हरिक दिश् विदिश् छाया ।
शरद पूनम निशि सुहानी,
शशि जमीं अद्वितीय आया ॥
कुमुदनी सा हो प्रफुल्लित,
गया चेहरा माँ पिता का ।
दिश् नहीं फहरा रही मुस्कान,
किस बोलो पताका ॥
लग रहा ये विधाता की ,
कृति अमोलक अहा जिसमें ।
रंग भर किस अंग से बोलो,
प्रकृति ने नहीं झाँका ॥
हाँस गुल, अलि-गान, मृग-लोचन,
मराली चाल आहा ।
कौन नहिं अँगुलियाँ दाबे दाँत,
रूपसी देख काया ॥
शरद पूनम निशि सुहानी,
शशि जमीं अद्वितिय आया ।
जिसे अपलक चकोरे सा,
देखता संसार सारा ॥
रख नयन हिय सिन्धु बन्धु ,
फाँदने तत्पर किनारा ।
कहाँ नामो-निशाँ लाँछन कहीं,
लग नहिं नजर जाये ॥
लगा भ्रू मिस दिठौना,
भेजा गया, कृतिकार द्वारा ।
सिर्फ शंकर शीश नहिं,
दिल राज सबके करे आहा ॥
झिरा झारी रहा अमरित,
भले कोई रंक राया ।
शरद पूनम निशि सुहानी,
शशि जमीं अद्वितिय आया ॥
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
सिर्फ यही है प्रार्थना,
गद गद हिय नम नैन ।
बने नैन के सामने,
रहें आप दिन-रैन ॥
Sharing is caring!