परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 143
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये भर उर भक्ति ।
भेंटो सुमरण शक्ति ।।स्थापना ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये भर प्रासुक जल ।
भेंटो जल सी अक्कल ।।जलं ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये रज मलयज रस ।
भेंटो चंदन साहस ।। चन्दनं ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये अक्षत के कण ।
भेंटो अक्षत सा मन ।।अक्षतम् ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।
लाये पुष्पों को चुन ।
भेंटो पुष्पों से गुण ।।पुष्पं ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये परात चरु घी ।
भेंटो मिठास चरु सी ।। नैवेद्यं ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये हैं दीप जला ।
भेंटो संदीप कला ।। दीपं ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये सुगंध के घट ।
भेंटो सुगंध गुण झट ।।धूपं ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये है फल ऋत-ऋत ।
भेंटो फल सा परहित ।। फल ।।
गुरुवर विद्या सागर ।
आये तव दर सादर ।।
लाये हैं दरब सभी ।
भेंटो शिव सुरग मही ।।अर्घं ।।
==दोहा==
श्री गुरु के आशीष से,
बनते बिगड़े काम ।
सुमरण श्री गुरुदेव का,
आ करते, पा शाम ॥
॥ जयमाला ॥
तुमरी करुणा का पार नहीं ।
है तुमको किस से प्यार नहीं ।।
तुम हो गो वत्सल में आगे ।
तुम दो खो गांठ नेह धागे ॥
संप्रीत मीन ज्यों पानी से ।
संप्रीत तिरी हर प्राणी से ।।
तुमरी करुणा का पार नहीं,
है तुमको किससे प्यार नहीं ॥
मुस्कान मुफ्त बाँटा करते ।
पर पीर-गर्त-पाटा करते ।।
सुन दुख हल्का कर देते हो ।
निष्काम पोत शिव खेते हो ॥
तुमरी करुणा का पार नहीं,
है तुमको किससे प्यार नहीं ।।
विश्वास सभी पे करते तुम ।
तम गम मातम तुम करते गुम ॥
हर लेते हो पीड़ा सबकी ।
मूरत दूजी सी ही रब की ।।
तुमरी करुणा का पार नहीं,
है तुमको किससे प्यार नहीं ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही प्रार्थना आपसे,
भक्तों के भगवान् ।
खेल खेल में दो थमा,
हाथों में निर्वाण ॥
Sharing is caring!