परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 140
हित पूजन सविनय आया ।
विद्या सागर मुनिराया ।।
श्री-श्री गुरुदेव हमारे ।
दुख दर्द मेंट दो सारे ।। स्थापना ।।
विहसाने छल, जल लाया ।
विद्या सागर मुनिराया ।।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
संकट विघटा दो सारे ।। जलं ।।
पाने गुण चन्दन लाया ।
विद्या सागर मुनिराया ।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
विध्वंस विघ्न दो सारे ।। चन्दनं ।।
चाहत पद अक्षत लाया ।
विद्या सागर मुनिराया ।।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
खो पथ कण्टक दो सारे ।। अक्षतम् ।।
हित सु…मरण सुमनन लाया ।
विद्या सागर मुनिराया ।।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
दुर्भाव पलट दो सारे ।। पुष्पं ।।
मेटन रज नेवज लाया ।
विद्या सागर मुनिराया ।।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
सुलझा धागे दो सारे ।। नैवेद्यं ।।
हित धी दीवा घी लाया ।
विद्या सागर मुनिराया ।।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
भर नादि जख्म दो सारे ।। दीपं ।।
हित नूप धूप सित लाया ।
विद्या सागर मुनिराया ।।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
गुण आत्म दिखा दो सारे ।। धूपं ।।
हित शिव-फल सब फल लाया ।
विद्या सागर जिनराया ।।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
संपूर स्वप्न दो सारे ।। फलं ।।
हित अनघ अरघ सित लाया ।
विद्या सागर मुनिराया ।।
श्री श्री गुरुदेव हमारे ।
कर पाप माफ दो सारे ।। अर्घं ।।
==दोहा==
जिनसे परिमित व्यय पना,
गया कमण्डल सीख ।
गुरु विद्या निर्भीक वे,
करें आत्म नजदीक ॥
॥ जयमाला ॥
बदल दुनिया गई हमारी ।
कृपा गुरु जी रही तिहारी ।
रहते देर रात थे जगते ।
ढ़ाँक प्रात मुँह चादर ठगते ।।
अब सो जल्दी, जाते उठ भी ।
आप ठगी सी रह गई ठगी ।।
बना आपने दी जो जिंदगी ।
बदल दुनिया गई हमारी ।।
कृपा गुरु जी रही तिहारी ।
इस-उस थे सिर करते टोपी ।
थे पन-पाप सभी आरोपी ।।
सिखा सहजपन, दिया जतन भी ।
आप ठगी सी रह गई ठगी ।।
बना आपने दी जो जिंदगी ।
बदल दुनिया गई हमारी ।।
कृपा गुरु जी रही तिहारी ।
थे रस गहल वानरी रसिया ।
बुझा श्वास निज थे रहे दिया ।।
थमा दिया पन सींह, हंस भी ।
आप ठगी सी रह गई ठगी ।।
बना आपने दी जो जिंदगी ।
बदल दुनिया गई हमारी ।।
कृपा गुरु जी रही तिहारी ।
आसमान थे खो चुके जमीं ।
थे अजान, तरु क्यों झुके जमीं ।।
किये नैन तर, मधुर वैन भी ।
आप ठगी सी रह गई ठगी ।।
बना आपने दी जो जिंदगी ।
बदल दुनिया गई हमारी ।।
कृपा गुरु जी रही तिहारी ।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
गुरुवर मेरी आपसे,
यही विनय दिन रात ।
छू पा रहा न आसमाँ,
गोद उठा लो नाथ ॥
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