परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 136
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
सौंप तुम्हें जीवन दिया ।।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
कर लो खुद सा मेरा जिया ।। स्थापना ।।
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
सौंपूँ निर्मल जल कलशिया ।।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
विघटे सनेह कंचन तिया ।। जलं ।।
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
सौंपूँ रज मलयज कलशिया ।।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
दो कर मर्दन मद माफिया ।। चन्दनं।।
भावी मुक्ति वधु साथिया
धाँ-शालि थाल अर्पित किया ।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
ले कुछ, कह पाऊँ शुक्रिया ।। अक्षतम् ।।
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
ले थाल पुष्प अर्पित किया ।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
हिय समा सकूँ आगम-पिया ।। पुष्पं ।।
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
चरु चारु तुम्हें अर्पित किया ।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
दे सकूँ उसे जिससे लिया ।। नैवेद्यं ।।
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
घृत दीप तुम्हें अर्पित किया ।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
भूलूँ न, हूँ रामा-‘सिया’ ।। दीपं ।।
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
घट धूप तुम्हें अर्पित किया ।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
मन सके बजा सुख वंशिया ।।धूपं ।।
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
फल थाल तुम्हें अर्पित किया ।
है और नहीं कुछ चाहिये
पा सकूँ अबकि मुक्ति ठिया ।। फलं ।।
भावी मुक्ति वधु साथिया ।
ले अर्घ्य तुम्हें अर्पित किया ।
है और नहीं कुछ चाहिये ।
कर माफ दो उन्नीसा किया ।।अर्घं।।
“दोहा”
गुरु आगे कब झोलियाँ,
फैलाने की बात ।
मंसा पूरण नाम से,
यूँ हि न गुरु विख्यात ॥
॥ जयमाला ॥
गुरुवर विद्या सिन्ध ।
वन्दन कोटि-अनन्त ।।
सबसे प्यारा नाम ।
जग से न्यारा नाम ।।
जन्म सदलगा ग्राम ।
नन्दन माँ श्री मन्त ।
वन्दन कोटि-अनन्त ।।
गुरुवर विद्या सिन्ध ।
वन्दन कोटि-अनन्त ।।
साधें निस्पृह नेह ।
रहकर देह विदेह ।।
परहित नयना मेह ।
शिष्य ज्ञान निर्ग्रन्थ ।
वन्दन कोटि-अनन्त ।।
गुरुवर विद्या सिन्ध ।
वन्दन कोटि-अनन्त ।।
पुष्पों सी मुस्कान ।
मनचाहा वरदान ।।
भक्तों के भगवान् ।
‘सहज’ शिरोमण सन्त ।
वन्दन कोटि-अनन्त ।।
गुरुवर विद्या सिन्ध ।
वन्दन कोटि-अनन्त ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
यही विनय अनुनय यही,
कलि इक सत् युग सन्त ।
पा जीवन जाये मिरा,
संयम रूप बसंत ॥
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