परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 129
माँ श्री मन्ती दृग्-तारे ।
मल्लप्पा राज दुलारे ।।
गुरुकुल गुरु ज्ञान सितारे ।
दो सुलटा भाग हमारे ।। स्थापना ।।
भर लाये जल से झारी ।
दुविधा लो विहर हमारी ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
आमय-तिय लगे किनारे ।। जलं ।।
लाये रज-मलयज गगरी ।
दो बना हमारी बिगड़ी ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
बिखरें गम-मातम सारे ।। चन्दनं ।।
भर लाये अक्षत थाली ।
पा पद थिर, मने दिवाली ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
परिणाम रहें न काले ।। अक्षतम् ।।
पुष्पों की लिये पिटारी ।
लो बना अनघ अविकारी ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
खा मार ‘मार’ अब हारे ।। पुष्पं ।।
पकवाँ नव-नव ले आये ।
अबकी गुल-क्षुध् कुमलाये ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
ये मन-पन-पाप विसारे ।। नैवेद्यं ।।
दीवा ले आये दर पे ।
रख सकूँ पलक ‘कर’ कर पे ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
विघटें विमोह अँधियारे ।। दीपं ।।
खे धूप रहा पावक में ।
हित आने व्रति श्रावक में ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
मन करे न कुछ अविचारे ।। धूपं ।।
भर परात लाये फल के ।
हित उठने, होने हल्के ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
औ-गुण देखें दिन तारे ।। फलं ।।
ले अलग अरघ हाथों में ।
शिव लगे सुरग हाथों में ।।
कर दो कुछ गुरुवर म्हारे ।
अबकी वधु मुक्ति निहारे ।। अर्घ ।।
==दोहा==
तीरथ भाग्योदय दिया,
दी राहत मनु लोक ।
चल तीरथ सिर मौर वे,
सतत तिन्हें शत ढ़ोक ॥
॥ जयमाला ॥
मुनि गणा-मुनि गणा-मुनि गणा
बिदा श्वान वृत्ति की ।
वृत्ति सिंह संपत्ति की ।।
धीर-वीर दृढ़ मना ।
मुनि गणा, मुनि गणा, मुनि गणा ॥
देख पराभूत गज ।
दिये विषय फर्स तज ।।
समाँ काँच कञ्चना ।
मनि गणा, मुनि गणा, मुनि गणा ॥
हाय ! देख हस्र झष ।
विषय-रसन कहा बस ।।
धन ! मराल मति पना ।
मनि गणा, मुनि गणा, मुनि गणा ॥
पाश भ्रमर लख भिदा ।
घ्राण कहा अलविदा ।।
नेह जित, विजित घृणा ।
मनि गणा, मुनि गणा, मुनि गणा ॥
लख अहि मृग हान को ।
तजा विषय कान को ।।
दया-हया हिय सना ।
मनि गणा, मुनि गणा, मुनि गणा ॥
पतँग कट पतंग लख ।
विषय चक्षु गये छक ।।
चरण ‘हरण-मन’-जना,
मनि गणा, मुनि गणा, मुनि गणा ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही प्रार्थना आपसे,
कलि जुग इक निष्काम ।
रहूँ न तेली बैल सा,
सुबह, वहाँ ही शाम ॥
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