परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 127
शरद पूर्णिमा के ओ चन्दा ।
माँ श्री मन्ती के ओ नन्दा ।।
भक्त तुम्हारे आये द्वारे ।
मेंटो जी भव-भव के फन्दा ।। स्थापना ।।
पिता मलप्पा कुल उजियारे ।
ज्ञान सिन्धु गुरुकुल रखवाले ।।
निर्मल जल ले आये द्वारे ।
पाप-भाव दो विहँसा सारे ।। जलं ।।
धन्य हुआ अजमेर नगर है ।
जन्म हुआ न किसे खबर है ।।
रज मलयज ले आये द्वारे ।
कह दीजो तुम हमें फिकर है ।। चन्दनं ।।
शिष्य समय सागर जी पहले ।
योग-योग-मुनि लख दिल दहले ।।
अछत अछत ले आये द्वारे ।
यूँ कर दो मन सब कुछ सह ले ।।अक्षतम् ।।
काव्य मूकमाटि अति प्यारा ।
चल तीरथ इक आप सहारा ।।
सुमन-सुमन ले आये द्वारे ।।
मद मनमथ अब करे किनारा ।। पुष्पं ।।
पा आशीष रही गौशाला ।
प्रति प्रतिभा संस्थलि की बाला ।।
लिये चारु चरु आये द्वारे ।
खो जाये खुद, वो क्षुध् ज्वाला ।। नैवेद्यं ।।
हतकरघा पे छाँव तिहारी ।
शान्ति दुग्ध धारा मन हारी ।।
दीवा घी ले आये द्वारे ।
लगा हाथ दो बाजी हारी ।। दीपं ।।
माहन शंखनाद प्रस्तोता ।
कृती कार तातो क्यों रोता ।।
धूप-नूप ले आये द्वारे ।
अबकी रहूँ न बन कर सोता ।। धूपं ।।
अनुशासन के आप प्रभारी ।
जिनशासन सिर-मौर-धिकारी ।।
नवल-नवल फल लाये द्वारे ।
कर लो अपने सा अविकारी ।। फलं ।।
कूट सहस्र जिनालय शरणा ।
पञ्च बालयति गृह भव हरणा ।।
अलग-अरघ ले आये द्वारे ।
दो दिखला तट तारण-तरणा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सिद्धोदय क्या दे दिया,
मानो शिव सोपान ।
शिष्य सिन्धु गुरु ज्ञान वे,
जिनशासन की शान ॥
॥ जयमाला ॥
।। श्रुत तनय, श्रुत तनय, श्रुत तनय ।।
ग्रन्थ सब बड़े-बड़े ।
जोड़ हाथ जुग खड़े ।।
सिद्ध हुये पलक में ,
लख विनय, लख विनय, लख विनय ।
श्रुत तनय, श्रुत तनय, श्रुत तनय ।।
साथ में ‘दिये’ लिये ।
हाथ दे रहे ‘दिये’ ।।
पलक किस न निरत ये,
स्व-पर दय, स्व-पर दय, स्व-पर दय ।
श्रुत तनय, श्रुत तनय, श्रुत तनय ।।
प्रश्न पहेली भले ।
राज पलक में खुले ।।
क्योंकि जानते सभी,
सप्त नय, सप्त नय, सप्त नय ।
श्रुत तनय, श्रुत तनय, श्रुत तनय ।।
फूँक फूँक पग रखें ।
डाल दृग् न दृग् तकें ।।
सजग करें निवास यूँ ,
निज निलय, निज निलय, निज निलय ।
श्रुत तनय, श्रुत तनय, श्रुत तनय ।।
आज है जो कल कहाँ ।
आय व्यय लगा यहाँ ।।
दे रहे न सोच यह,
मद प्रशय, मद प्रशय, मद प्रशय ।
श्रुत तनय, श्रुत तन, श्रुत तनय ।।
मुठ्ठी भर भले हृदय ।
पा रहा जगत प्रशय ।।
जैनी वत्सल अहा,
जयतु जय, जयतु जय, जयतु जय ।
श्रुत तनय, श्रुत तनय, श्रुत तनय ।।
।।जयमाला पूर्णार्घ्य ।।
==दोहा==
यही प्रार्थना आपसे,
जिन शासन शिर-मौर ।
डोर थाम लीजे, प्रभो !
कलि अन्धर का दौर ।
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