परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 122
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
गद-गद हिये, तर-दृग् किये ।।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे।। स्थापना।।
कञ्चन घड़े, ले जल भरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा छल करे।।जलं ।।
लेकर घड़े, मलयज भरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा रज करे।।चन्दनं।।
ले अछत के, परात भरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा मद करे।।अक्षतम्।।
ले पहुप के, परात भरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा कुप् करे ।।पुष्पं।।
घृत दीप ये, लेकर निरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा बद करे ।।नैवेद्यं।।
चारु ले, चरु परात भरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा डर करे।।दीपं।।
घट धूप के, लेकर निरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा पट करे ।।धूपं।।
परात बड़े, फल के भरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा सल करे ।।फलं।।
ले अरघ के, परात भरे ।
बालक तिरे, दर पर खड़े ।।
गुरुवर मिरे, गुरुवर मिरे ।
दो वर, किनारा अघ करे ।।अर्घं।।
**दोहा**
पल-पल गो ‘पल-बढ़’ रही,
पा जिनका आशीष ।
बेजुबान-ए-जान वे,
नमन तिन्हें निशि-दीस ॥
॥ जयमाला ॥
दे उर जगह दीजो जरा सी,
पूर्ण कीजो कामना ।
चाह कर भी चाहिये,
गुरुदेव दिवि-शिव धाम ना ॥
करके कृपा गुरुदेव मुझको,
बना अपनी छाँव लें ।
शशि सी बना भा धवल नख,
मिस मुझे रख निज पाँव लें ॥
शपथ ! साँची ! परेशाँ ना,
करेंगे ना सिर चढ़ेगें ।
भार भी ज्यादा न कुछ,
बैठा मुझे शिव नाव लें ॥
कर जोड़ कर दिन रात मेरी,
है यही इक प्रार्थना ।
रहें बाधाएँ न कम,
हो कर सकूँ बस सामना ॥
दे उर जगह दीजो जरा-सी,
पूर्ण कीजो कामना ॥
चाह कर भी चाहिये,
गुरुदेव दिवि-शिव धाम ना ॥
हो कृपा कुछ जाय ऐसी,
सामने बस आप दीखें ॥
दिखाने से पूर्व ही,
त्रुटियाँ संभलना आप सीखे॥
‘विदाई-दुख’ ‘सुख-सगाई’,
घर न कर उर सके जर्रा ॥
कब नये ये, देख सुख-दुख हरखें,
काहे काँप चीखें ।
नम नयन, अवनत भाल मेरी,
है यही इक वीनती ॥
कलि काल काई विषय विष,
जाऊँ फिसल ना थामना ।
दे उर जगह दीजो जरा-सी,
पूर्ण कीजो कामना ॥
चाह कर भी चाहिये,
गुरुदेव दिवि-शिव धाम ना ॥
चञ्चरीक बना चरण का,
लीजिये तर जाऊँगा मैं ।।
मानने में बात तुम,
दिन रात इक कर जाऊँगा मैं ॥
शाम होने, चली जीवन,
सुलझ कब गुत्थी सकी हा !
लगा लीजे आप पीछे,
पहुँच निज-घर जाऊँगा मैं ॥
रख माथ मुकुलित हाथ मेरी,
नाथ ! इक अर्जी यही ।
सिर टिका पत्थर मील,
करने लगूँ फिर आराम ना ॥
दे उर जगह दीजो जरा-सी,
पूर्ण कीजो कामना ।
चाह कर भी चाहिये,
गुरुदेव दिवि-शिव धाम ना ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
**दोहा**
और नहीं कुछ चाहिये,
सिर्फ यही अरमान ।
इर्द-गिर्द रहना मिरे,
तब, जब निकसें प्राण ॥
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