परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 119
प्रद रोजगार हतकरघा ।
हर बोझ भार लें हर का ।।
श्री गुरु वे तारण-हारे ।
सुलटा दें भाग-सितारे ।।स्थापना ।।
प्रतिभा संस्थली प्रणेता ।
नेता-यति, अक्ष-विजेता ।।
जल लाये द्वार तुम्हारे ।
दो नौका लगा किनारे ।। जलं ।।
माँ पिता मूकमाटी के ।
चलते बिन वैशाखी के ।।
ले मलयज आये द्वारे ।
दो सम्यक् रतन पिटारे ।। चन्दनं ।।
अनुशासन लाने वाले ।
गोशाला इक-रखवाले ।।
ले अक्षत आये द्वारे ।
लड़ मन अपनों से हारे ।। अक्षतम् ।।
सर्वोदय खुशबू थारी ।
भाग्योदय छू बीमारी ।।
पुष्पों के लिये पिटारे ।
दो दिखा मदन दिन तारे ।। पुष्पं ।।
साहित्य श्रृजन न कम है ।
ब्राह्मी सुन्दरी आश्रम है ।।
ले नेवज आये द्वारे ।
नहिं पीस उठाऊँ पारे ।। नैवेद्यं ।।
ये गगन चमूते मन्दर ।
गौरव-गाथा जिन अन्दर ।।
ले दीवा आये द्वारे ।
पग रखूँ न अब अविचारे ।। दीपं ।।
प्रतिभा रत भारत सपना ।
प्रति भारति भाई अपना ।।
ले खड़े धूप-घट न्यारे ।
कर दो शुभ भाव हमारे ।। धूपं ।।
प्रद कूट-सहस देवालय ।
लख कोटि सहस्र दयालय ।।
फल लाये द्वार तुम्हारे ।
दो पाप माफ कर सारे ।। फलं ।।
सिद्धोदय दया तुम्हारी ।
कल सिद्धालय अधिकारी ।।
ले वसु द्रव आये द्वारे ।
वारे दो कर अब न्यारे ।। अर्घं ।।
==दोहा==
कुण्डलपुर इक तीर्थ से,
काफी जिन्हें लगाव ।
बना रखें गुरुदेव वे,
नित आशीषी छाँव ।।
॥ जयमाला ॥
।। नमन शत, नमन शत, नमन शत ।।
अर्हन् भगवन्त को ।
सिद्ध सभी नन्त को ।।
सूरि पाठि सन्त को ।
नुति सतत, नुति सतत, नुति सतत ।।
नमन शत, नमन शत, नमन शत ।।
सुख अनन्त धर रहे ।
आत्म-केल कर रहे ।।
तम विमोह हर रहे ।
वही ऋत, अर्हत्, अर्हत्, अहत् ।।
नमन शत, नमन शत, नमन शत ।।
सुख अबाध साथ है ।
मुक्ति विनत माथ है ।।
सिद्ध वे बुध सभी ।
एक मत, एक मत, एक मत ।।
नमन शत, नमन शत, नमन शत ।।
मोक्ष स्वयं जा रहे ।
शिष्य शिव भिजा रहे ।।
सूरि, चरण तिन सतत ।
नत विनत, नत विनत, नत विनत ।।
नमन शत, नमन शत, नमन शत । ।
प्रश्न जिन्हें देख के ।
जानु जमीं टेकते ।।
पाठि, नहीं कौन इन ।
थुति निरत, थुति निरत, थुति निरत ।।
नमन शत, नमन शत, नमन शत ।।
झुक रहे न रुक रहे ।
मुख न मोड़ रुख रहे ।।
नाप वैशाखि बिन रहे मुनि,
शिव पथ, शिव पथ, शिव पथ ।।
नमन शत, नमन शत, नमन शत ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
और नहीं कुछ चाहिये,
सिर्फ यही फरियाद ।
मरण-समाधि का मुझे,
दीजे आशीर्वाद ।।
Sharing is caring!