परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 117
दर तिरे सवाली आये हैं ।
पूजन की थाली लाये हैं ।।
नहिं और प्यास लो बना दास ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। स्थापना।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
जल से भर झारी लाये हैं ।।
नहिं और प्यास, लो बना खास ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।।जलं ।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
रज मलयज झारी लाये हैं ।।
नहिं और प्यास, आ वसो श्वास ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। चन्दनं ।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
सित अक्षत थाली लाये हैं ।।
नहिं और प्यास, लो बसा पास ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। अक्षतम् ।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
चुन प्रसून डाली लाये हैं ।।
नहिं और प्यास, दो नाश पाश ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। पुष्पं ।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
घृत व्यञ्जन थाली लाये हैं ।।
नहिं और प्यास, गुण करो राश ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। नैवेद्यं ।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
सज-धज दीवाली लाये हैं।।
नहिं और प्यास, भेंटो प्रकाश ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। दीपं ।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
अजि धूप निराली लाये हैं ।।
नहिं और प्यास, भेंटो सुवास ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। धूपं ।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
थाली फल वाली लाये हैं ।।
नहिं और प्यास, हो ह्रास हाँस ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। फलं ।।
दर तिरे सवाली आये हैं ।
वसु द्रव्य निराली लाये हैं ।।
नहिं और प्यास, दो मुख प्रसाद ।
अभिलाष ये खाली लाये हैं ।। अर्घं ।।
==दोहा==
जिनसे सीखा फूल ने,
लेना यूँ मुस्कान ।
गुरु विद्या भगवान् वे,
हम भक्तों की जान ।।
॥ जयमाला ॥
।। त्रिभुवन शरण चरण गुरु तेरे ।।
लख हम रहे, नयन गुरु तेरे ।
मुख मम बहे, वयन गुरु तेरे ।।
चल हम रहे, चरण गुरु तेरे ।
त्रिभुवन-शरण चरण गुरु तेरे ।।
लिख हम रहे, वरण गुरु तरे ।
सुन हम रहे, करण गुरु तेरे ।।
तारण-तरण चरण गुरु तेरे ।
त्रिभुवन शरण चरण गुरु तेरे ।।
मन मम बहे सपन गुरु तेरे ।
तन मम भले तिपन गुरु तिरे ।।
भव भय-हरण चरण गुरु तेरे ।
त्रिभुवन-शरण चरण गुरु तेरे ।।
खिल खुल रहे चमन गुरु तेरे ।
चेनो ‘दिये’ अमन गुरु तेरे ।।
अघ-क्षय करण चरण गुरु तेरे ।
त्रिभुवन-शरण चरण गुरु तेरे ।।
हों ढ़िग पञ्च करण गुरु तेरे ।
हो नजदीक मरण गुरु तेरे ।।
इक यह सपन चरण गुरु तेरे ।
त्रिभुवन-शरण चरण गुरु तेरे ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
गुरु को आता खूब है,
रच देना तकदीर ।
सीखा गुरु से क्षीर ने,
नहीं पराया नीर ।।
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