परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 114
माँ श्री मति विद्याधर ।
मल्लप्पा पीलु अपर ।।
गिनी, तोता जग-जन के ।
गुरु ज्ञान विद्या-सागर।।स्थापना ।।
उज्जवल जल भर गागर ।
पद-कमल आप पाकर ।।
सादर भेंटूॅं गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर ।।जलं ।।
रज मलयज भर गागर ।
पद-जलज आप पाकर ।।
सादर भेंटूँ गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर ।। चन्दनं ।।
औ’ अक्षत धो लाकर ।
पद-प्रभो आप पाकर ।।
सादर भेंटूॅं गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर ।।अक्षतम् ।।
चुन गुल प्रफुल्ल लाकर ।
पद-पद्म आप पाकर ।।
सादर भेंटूॅं गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर।। पुष्पं ।।
व्यञ्जन तत्क्षण जाकर ।
जुग-चरण आप पाकर ।।
सादर भेंटूॅं गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर ।। नैवेद्यं ।।
‘लख-इक’ दीपक लाकर ।
पद-झलक आप पाकर ।।
सादर भेंटूॅं गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर ।। दीपं ।।
मन-रमन धूप लाकर ।
धन ! चरण आप पाकर ।।
सादर भेंटूॅं गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर ।।धूपं ।।
फल सरस फरस लाकर ।
पद-दरस आप पाकर ।।
सादर भेंटूॅं गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर ।। फलं ।।
कर अरघ अलग लाकर ।
पद सजग आप पाकर ।।
सादर भेंटूॅं गाकर ।
जय गुरु विद्या-सागर ।।अर्घं।।
==दोहा==
सीखा जिनसे क्षीर ने,
काया पलटन नीर ।
गुरु विद्या धर-धीर वे,
राखे लाज अखीर ।।
॥ जयमाला ॥
।।दृग्-पथ मन-हर रूप तिहारा ।।
झील नयन के आगे फीकी ।
भ्रूएँ चंद्र बंकिम से नीकी ।।
लोनी से भी मृदु उर प्यारा ।
दृग्-पथ मन-हर रूप तिहारा ।।
होंठ पाँखुड़ी पद्य सरीखे ।
चम्पक पुष्प नासिका दीखे ।।
कटि प्रदेश सिंह से भी न्यारा ।
दृग्-पथ मन-हर रूप तिहारा ।।
गोल सुडोल कपोल निराले ।
कच चिकने घुँघराले काले ।।
शंखावर्त कंठ श्रृंगारा ।
दृग्-हर मन-हर रूप तिहारा ।।
तुंग ललाट कंध गिर भाँती ।
पग-तल पद्य भ्रमर मड़राती ।।
नख-नख नख-शिख शशि उजियारा ।
दृग्-पथ मन-हर रूप तिहारा ।।
मनहर चिबुक, पद्य करतलियाँ |
मुस्काँ सकें ना ऐसा कलियाँ ।।
मन ललके हित झलक दुबारा ।
दृग्-पथ मन-हर रूप तिहारा ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
सुदूर मन, दृग् भी कहाँ,
भरें आपको देख ।
जाते जाते मुड़ पड़े,
लखने बाररु एक ।।
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