परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 108
निराकुल निरभिमानी ।
निराकुल ‘जिन-कि’ वाणी ।।
गुरु वे बाबा-छोटे ।
लें भाव विहर खोटे ।। स्थापना ।।
लाये जल भरे घड़े ।
रहते नित भाव बड़े ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।। जलं ।।
लाये चंदन घट ये ।
पन पाप चलें सटके ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।।चन्दनं।।
लाये हैं शाली, धाँ ।
अवतारी ही अभिमाँ ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।। अक्षतम् ।।
ले आये थाल पुहुप ।
अघ वार करे छुप-छुप ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।। पुष्पं ।।
पकवान लिये थाली ।
हूँ सद्-भावन खाली ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।।नैवेद्यं ।।
लाये दीपक घी के ।
अनुयायी इक ‘ही’ के ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।। दीपं ।।
लाये सुगंध सौंधी ।
को ? बढ़ हमसे क्रोधी ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।। धूपं ।।
फल लाये रस वाले ।
पल कौन न विष प्याले ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।। फलं ।।
लाया द्रव हर हूँ मैं ।
माया अवतर हूँ मैं ।।
गुरु-वर बाबा-छोटे ।
लो भाव विहर खोटे ।। अर्घं ।।
==दोहा==
और काम कह दो भले,
गुरु गुण कीर्तन छोड़ ।
देखो-देखो वो खड़े,
हाथ बृहस्पति जोड़ ।।
॥ जयमाला ॥
गुरु की महिमा न्यारी ।
गुरु सा मही न सारी ।।
गुरु दीव भाँति तम में ।
नजदीक भाँति गम में ।।
गुरु भाँति न उपकारी ।
गुरु की महिमा न्यारी ।।
गुरु लाली सुबहो की ।
दिवाली शुभ अहो जी |।
गुरु भाँति न हितकारी ।
गुरु की महिमा न्यारी ।।
गुरु अंतरंग वाणी ।
गुरु मन तरंग ज्ञानी ।।
गुरु भाँति न सहकारी ।
गुरु की महिमा न्यारी ।।
गुरु कण-कण विराजे ।
धन ! खन खन ‘कि बाजे ।।
गुरु भाँति न सुखकारी ।
गुरु की महिमा न्यारी ।।
जमीं, आसमाँ सितारे ।
गुरु क्या-क्या न हमारे ।।
गुरु भाँति न गिरधारी ।
गुरु की महिमा न्यारी ।।
गुरु सा मही न सारी ।
गुरु की महिमा न्यारी ।।
।।जयमाला पूर्णाघं।।
==दोहा==
गुरुवर के गुण गावना,
क्षितिज छोर के भाँत ।
आता-आता-सा लगे,
कब आता पे हाथ ।।
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