परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 105
क्षमा न जिनसी पास धरा ।
जिन्हें कुटुम सी वसुन्धरा ।।
श्री गुरु वे विद्यासागर ।
दें सद्या कर शिव नागर ।।स्थापना।।
कलशे भर लाये जल के ।
होंने तुम जैसे हल्के ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
झलके, दो भर श्रुत गागर।।जलं।।
भर लाये मलयज झारी ।
होंने तुम-से उपकारी ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
भटके राह, दो बता घर ।।चंदन।।
भर लाये अक्षत थाली ।
होंने तुम से बलशाली ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
ढ़क नख-शिख पाये चादर ।।अक्षतम्।।
लाये सुमन नयन-हारी ।
होंने तुम से अविकारी ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
अब ना हो गणना पामर।।पुष्पं।।
ले आये व्यंजन घी के ।
होंने तुम जैसे ‘भी’ के ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
अपना बना लो दया कर ।।नैवेद्यं।।
लाये घृत दीवा-माला ।
होंने तुम से गो-पाला ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
दो वाणी भर वीणा स्वर।।दीपं।।
लिये धूप घट अभिरामी ।
होंने तुम से निष्कामी ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
सप्त सभी लो विहँसा डर ।।धूपं।।
ले आये ऋतु फल मीठे ।
होने तुम जैसे नीके ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
लो कर अबकी अजरामर ।।फलं।।
लिये दरब, आँख पानी ।
होंने तुम जैसे ध्यानी ।।
जय जय गुरु विद्यासागर ।
तुम्हें मना लूँ रो गाकर ।।अर्घं।।
==दोहा==
मिला अंग हर एक है,
करने गुरु की सेव ।
आ मिल के बोले सभी,
जय-जय-जय गुरुदेव ।।
॥ जयमाला ॥
चल तीर्थ न गुरु घाँई ।
गुरु कलि दूजे साँई ।।
गुरु तम हारी दीवा ।
गुरु बूँटी संजीवा ।।
दाता शिव ठकुराई |
चल तीर्थ न गुरु घाँई ।।
गुरु खेवैय्या नैय्या ।
गुरु की पैंय्या छैय्या ।।
बिन कारण फल-दाई ।
चल तीर्थ न गुरु घाँई ।।
गुरु पतझड़ क्षण सावन ।
गुरु वन चन्दन कानन ।।
संप्रद सुख संस्थाई ।
चल तीर्थ न गुरु घाँई ।।
गुरु जल जीवन मीना ।
गुरु सम्बल पन तीना ।।
जिन-गुण-निध सौदाई ।
चल तीर्थ न गुरु घाँई ।।
गुरु सौभाग सितारे ।
गुरु वैराग सहारे ।।
शिशु वा-उम्र सहाई ।
चल तीर्थ न गुरु घाँई ।।
गुरु आधार जिन्दगी ।
गुरु आधार हर-खुशी ।।
विरद अन्त न दिखाई ।
चल तीर्थ न गुरु घाँई ।।
गुरु कलि दूजे साँई ।
चल तीर्थ न गुरु घाँई ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
कर सकना सम्भव कहाँ,
गुरुवर का गुणगान ।
मैं तो कब से कह रहा,
माने तब न जुबान ।।
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