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आरती

आरती-सुपार्श्व नाथ

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सुपार्श्व नाथ
आरती

जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।

लिये दीप आया शरण में तुम्हारी ।
तुम्हीं से लगी है लगन ये हमारी ।।

अबै लौं निभाई, निभा देना आगे ।
कभी भी ना टूटें, यें भक्ति के धागे ।।

लगी धार रत्नों की किसने न देखा ।
लगे हाथ सोलह सुपन माय लेखा ।।
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।

भवातार शचि-देवि झोली दरश पा ।
मनी मेर दीवाली-होली परश पा ।।
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।

दिया छोड़ घर-बार कानन पधारे ।
किया हाथ कच-लुञ्चन, झट पट उतारे ।।
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।

समोशर्ण लागा, बने भक्त देवा ।
खड़े हाथ जोड़े, सभी हेत सेवा ॥
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।

जरा ध्यान अग्नि, करम अबकि सारे ।
लगा इक समय जा ऋज-गत शिव पधारे ।।
जिनेन्द्रम् सुपारस, जिनेन्द्रम् सुपारस ।
सदा यूँहि बरसाते रहना कृपा बस ।।

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