सुविधि नाथ
आरती
भक्ति ले करके आँखों में
दीप ले करके हाथों में
आओ आओ हम सभी,
जिन सुविध आरती करते हैं
जिन सुविध संकट हरते हैं
सुनते हैं, सुनते हैं, सुनते हैं
जिन सुविध संकट हरते हैं
गर्भ पर्व की आरति पहली
झिर लग बरसा रत्न रुपहली
माँ को सोलह सपने दिखते हैं
जिन सुविध संकट हरते हैं
चरम जनम की आरति दूजी
राजमहल किलकारी गूँजी
भाग सितारे मेर चमकते हैं
जिन सुविध संकट हरते हैं
याग त्याग की आरति तीजी
‘सहजो’ आँख तीसरी भींजी
झोली क्षीर केश आ पड़ते हैं
जिन सुविध संकट हरते हैं
भान ज्ञान की आरति चौथी
रिद्ध-सिद्ध उल्लेखित पोथी
आस पास बैठे अरि मिलते हैं
जिन सुविध संकट हरते हैं
ढ़ोक मोख की आरति एका
समय ‘लगे’ जा शिव अभिलेखा
सहज निरा’कुल सुख अनुुभवते हैं
जिन सुविध संकट हरते हैं
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