अजितनाथ
आरती
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।
करे आरती कर्म सभी क्षय ।
हरे आरती सप्त सभी भय ॥
आरती प्रथम गर्भ कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
दिव्य रतन बरसा अम्बर से ।
सपने देख देख माँ हरसे ॥
कृत भव-पूरब पुण्य उदय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।
आरती दूज जन्म कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
मेर सुर्ख़िंयों में है छाया ।
सार्थ नाम ‘अख सहस’ बनाया ।
कब छक पाया रख दृग द्वय |
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।
आरती तृतिय त्याग कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
हाथ उखाड़ी लट घुँघराली ।
पट उतार जिन दीक्षा धारी ॥
‘सहज-निराकुल’ सदय हृदय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।
आरती तुरिय ज्ञान कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
सभा नाम सार्थक सम शरणा ।।
वैर विडार बैठ सिंह हिरणा ।
सुने दिव्य-धुन साथ विनय ॥
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।
आरती और मोक्ष कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
ले सित ध्यान खड्ग इस बारा ।
घात अघात कर्म परिवारा ॥
शिव पहुँचे बस लगा समय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।
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