वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘पूजन’
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।
ॐ ह्रीं श्री आदि जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
श्री समशरण चतुष्टय नन्ता ।
जय श्रीमान् जयतु अरहन्ता ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१।।
ॐ ह्रीं श्री श्री मते नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शिक्षित स्वयं स्वयंभू जय जय ।
दीक्षित स्वयं स्वयंभू जय जय ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२।।
श्री स्वयं-भुवे नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वृष-माहन्त धर्म भा भूषण ।
वृषभ जयत गत अठ-दश दूषण ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३।।
ॐ ह्रीं श्री वृषभाय नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शं-सुख साता के इक दाता ।
जय शंभव जय भाग विधाता ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४।।
ॐ ह्रीं श्री शम्भवाय नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मोख पन्थ सुख धरने वाले ।
जयतु शम्भु दुख हरने वाले ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५।।
ॐ ह्रीं श्री शम्भवे नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हित निध, अप्प दीप प्रकटाया ।
नाम आत्मभू सार्थ बनाया ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६।।
ॐ ह्रीं श्री आत्म-भुवे नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आप प्रकाशित आप प्रकाशा ।।
‘जयतु स्वयंप्रभ’ जप जग श्वासा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७।।
ॐ ह्रीं श्री स्वयं-प्रभाय नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रभु हैं आप सभी के स्वामी ।
समरथ, सक्षम, अन्तर्यामी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८।।
ॐ ह्रीं श्री प्रभवे नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुख अनन्त उपभोग हमेशा ।
जयतु भोक्तृ अप-गत रत द्वेषा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९।।
ॐ ह्रीं श्री भोक्त्रे नमः
श्री आदि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“कल्याणक अर्घ्य”
विदित ज्ञान के-बल जग सारा ।
गूँज विश्वभू जय जयकारा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-भुवे नमः
आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां
गर्भ कल्याणक प्राप्ताय
श्री आदि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्षीण सर्वथा आना जाना ।
नुति अपुनर्भव कृति भव नाना ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।११।।
ॐ ह्रीं श्री अपुनर्-भवाय नमः
चैत्र-कृष्ण-नवम्यां
जन्म कल्याणक प्राप्ताय
श्री आदि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झलकन विश्व पदारथ आतम ।
जय विश्वात्मा, जय परमातम ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१२।।
ॐ ह्रीं श्री विश्वात्मने नमः
चैत्र-कृष्ण-नवम्यां
दीक्षा-कल्याणक प्राप्ताय
श्री आदि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वामी आप सभी लोकों के ।
ख्यात विश्व लोकेश अनोखे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१३।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-लोकेशाय नमः
फागुन-कृष्ण-एकादश्यां
ज्ञान-कल्याणक प्राप्ताय
श्री आदि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्याप्त विश्व दृग् दर्शन ज्ञाना ।
नाम विश्वतर चक्षु पुराणा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१४।।
ॐ ह्रीं श्री विश्वतश्-चक्षुषे नमः
माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां
मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय
श्री आदि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विधान प्रारंभ*
साक्षर सफल ज्ञान अधिशासी ।
जय अक्षर जय जय अविनाशी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१५।।
ॐ ह्रीं श्री अक्षराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्ञाता विश्व पदारथ जेते ।
जयतु विश्वविद् नौ भवि खेते ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१६।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-विदे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रिद्ध ज्ञान के-बल जश छूते ।
सिद्ध विश्वविद्येश अनूठे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१७।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-विद्येशाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उपदेशक पदार्थ जग सारे ।
‘विश्व योनि जय’ जगत् पुकारे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१८।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-योनये नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कभी आपका मरण न होना ।
कहे अनश्वर कोना कोना ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१९।।
ॐ ह्रीं श्री अनश्वराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भुवन भुवन दे चले दिखाई ।
जयतु विश्व दृश्वा जप भाई ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२०।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-दृश्वने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आप विभूत विभूषित देवा ।
विभु समर्थ उत्तारक खेवा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२१।।
ॐ ह्रीं श्री विभवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुख संस्थल धरते धाता हो ।
पालनहार ! जगत् त्राता हो ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२२।।
ॐ ह्रीं श्री धात्रे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ईश्वर आप सिवाय न कोई ।
जय विश्वेश गूँज जग दोई ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२३।।
ॐ ह्रीं श्री विश्वेशाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नेत्र दिव्य-धुन जग जग देखा ।
माथ ‘विश्व-लोचन’ पद टेका ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२४।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-लोचनाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्यापे जगत् तीन, माया है ।
नाम विश्व व्यापी आया है ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२५।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-व्यापिने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विधु अज्ञान अँधेरा मेंटा ।
सार्थ नाम विधु जग ने भेंटा ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२६।।
ॐ ह्रीं श्री विधवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धर्म रूप संसार रचाया ।
वेधा नाम वेद-चउ गाया ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२७।।
ॐ ह्रीं श्री वेधसे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विद्यमान गत आगत नागत ।
शाश्वत भास्वत इक प्रतिभारत ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२८।।
ॐ ह्रीं श्री शाश्वताय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मुख समशरण चार दिख पड़ते ।
नाम विश्वतोमुख जश रखते ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।२९।।
ॐ ह्रीं श्री विश्वतो-मुखाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
असि, मषि, कृषि षट् कर्म प्रणेता ।
जयतु विश्व कर्मा उध-रेता ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३०।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-कर्मणे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्येष्ठ श्रेष्ठ भू, द्यु, पाताला ।
जगज्ज्येष्ठ जय हृदय विशाला ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३१।।
ॐ ह्रीं श्री जगज्-जेष्ठाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विरचित मण गुण नन्त शरीरा ।
विश्व मूर्ति निर्ग्रन्थ गभीरा |।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३२।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-मूर्तये नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जित मिथ्यात्व ईश अविकारी ।
एक जिनेश्वर पदवी धारी ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३३।।
ॐ ह्रीं श्री जिनेश्वराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सामान्यव-लोकन जग तीना ।
नाम विश्वदृक ऋष-मुन लीना |।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३४।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-दृशे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वामी प्राण, जीव, सत् भूता ।
नाम विश्व भूतेश अनूठा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३५।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-भूतेशाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्योति ज्ञान के बल जग व्यापी ।
विश्व ज्योति जश वसुधा नापी ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३६।।
ॐ ह्रीं श्री विश्व-ज्योतिषे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चर्चित नाम अनीश्वर जग में ।
कृपा जरूरी तव शिव मग में ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३७।।
ॐ ह्रीं श्री अनीश्वराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शत्रु कर्म-घातिया विघाते ।
जन-जन जिन कह तुम्हें बुलाते ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३८।।
ॐ ह्रीं श्री जिनाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जय स्वभाव अरि कर्म कराला |
जयतु जिष्णु मति हंस मराला ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।३९।।
ॐ ह्रीं श्री जिष्णवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम गुण नन्त अगम अनबूझे ।
जयतु अमेयात्मा सुर गूँजे ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४०।।
ॐ ह्रीं श्री अमेयात्मने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तर अशोक तर अपगत शोका ।
विश्वरीश ईश्वर तिहु लोका ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४१।।
ॐ ह्रीं श्री विश्वरीशाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छाँव आप इक, धूप कहाँ ना ।
जयत जगत्पत भूप जहाना ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४२।।
ॐ ह्रीं श्री जगत्-पतये नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मिथ्यातम भव अनन्त दाता ।
जीत उसे जित् अनन्त पाँता ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४३।।
ॐ ह्रीं श्री अनंत-जित नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आतम चिन्तन अगम तिहारी ।
सार्थ अचिन्त्यात्मा बलिहारी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४४।।
ॐ ह्रीं श्री अचिन्-त्यात्मने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बन्धु, सखा, भ्राता भवि प्राणी ।
जय ‘जय-भव्य बन्धु’ कल्याणी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४५।।
ॐ ह्रीं श्री भव्य-बंधवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जागे कर्म झड़ चले सारे ।
जयत अबन्धन जगत् पुकारे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४६।।
ॐ ह्रीं श्री अबन्धनाथ नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
युग भू-कर्म प्रथम अवतारा ।
गूॅंज युगादि पुरुष जयकारा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४७।।
ॐ ह्रीं श्री युगादि-पुरुषाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हाथ वृद्धि गुण अपूर्व रेखा ।
ब्रह्म आँख भीतर अभिलेखा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४८।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्मणे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
इष्ट परम गुरु पंच स्वरूपा ।
पंच ब्रह्ममय जय चिद्रूपा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।४९।।
ॐ ह्रीं श्री पञ्च-ब्रह्म-मयाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नित आनंद परम संलीना ।
शिव-कल्याण तीन जग कीना ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५०।।
ॐ ह्रीं श्री शिवाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प-पालक तुम इह-पर जगती ।
सार्थ नाम ‘पर’ नुति अनगिनती ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५१।।
ॐ ह्रीं श्री पराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पर-वर जगत् तीन इक राजा ।
दे जग कह परतर आवाजा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५२।।
ॐ ह्रीं श्री परतराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आप अगम मन इन्द्रिय द्वारा ।
गुण सूक्ष्मत्व आद परिवारा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५३।।
ॐ ह्रीं श्री सूक्ष्माय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आप परम पद पंच विराजे ।
निरत विरद राजे महराजे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५४।।
ॐ ह्रीं परमेष्ठिने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विद्यमान बिन घटना बढ़ना ।
समुचित नाम सनातन पड़ना ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५५।।
ॐ ह्रीं श्री सनातनाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आयु परिणमित मोती सिपनी ।
आप प्रकाशित ज्योती अपनी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५६।।
ॐ ह्रीं श्री स्वयं-ज्योतिषे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अब न धारना जनम दुबारा ।
पड़ा सार्थ अज नाम तुम्हारा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५७।।
ॐ ह्रीं श्री अजाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम्हीं अजन्मा और न दूजा ।
सुर, नर, नाग सभी ने पूजा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५८।।
ॐ ह्रीं श्री अजन्मने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धुन सर्वांग आप खिर चाली ।
ब्रह्म योनि जय जयतु तिहारी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।५९।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्म योनये नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फेर योनि चौरासी छूटा ।
पड़ा अयोनिज नाम अनूठा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६०।।
ॐ ह्रीं श्री अयोनिजाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शत्रु मोह चित् चारों खाने ।
गूँज विजय-मोहारि तराने ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६१।।
ॐ ह्रीं श्री मोहारि-विजयिने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अध्येता इक कथनी करनी ।
इक अख जेता धरनी-धरनी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६२।।
ॐ ह्रीं श्री जेत्रे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धर्म चक्र वस-सहस्र आरे ।
चलें देव संरक्ष अगारे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६३।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म-चक्रिणे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हाथ लहरती केत अहिंसा ।
जयतु दयाध्वज पूरण मंशा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६४।।
ॐ ह्रीं श्री दयाध्वजाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हुये कर्म अरि यम को प्यारे ।
लागे प्रशान्तारि जयकारे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६५।।
ॐ ह्रीं श्री प्रशांतारये नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम आतम गुण नन्त पिटारा ।
गूॅंज अनन्तात्मा दिश् चारा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६६।।
ॐ ह्रीं श्री अनन्तात्मने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सार्थक ‘जोग’ वचन मन काया ।
पहले साँझ-साँझ घर आया ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६७।।
ॐ ह्रीं श्री योगिने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
न सिर्फ जोगी, जोगीश्वर भी ।
तुम्हें पूजते कहती सुर’भी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६८।।
ॐ ह्रीं श्री योगीश्वरार्-चिताय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आत्म स्वरूप जानने वाले ।
एक ब्रह्म विद् आप निराले ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।६९।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्म-विदे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आतम तत्त्व रहस्य पिछाना ।
विरद ब्रह्म-तत्वज्ञ कहाँ ना ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७०।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्म-तत्वज्ञाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्ञान आत्म विद्या का रखते ।
ब्रह्मोद्या विद् लखे, न लिखते ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७१।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्मोद्या-विदे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ऋषि, मुनि, यति, अनगार महन्ता ।
ईश यतीश्वर जयतु जयन्ता ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७२।।
ॐ ह्रीं श्री यतीश्वराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आप रहित रज-कर्म अशेषा ।
जयतु जयतु जय शुद्ध जिनेशा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७३।।
ॐ ह्रीं श्री शुद्धाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘बुद्ध’ स’हित संबोध समाधी ।
विगत क्रोध प्रतिशोध उपाधी ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७४।।
ॐ ह्रीं श्री बुद्धाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बुद्ध प्रबुद्ध एक आतम के ।
झिरे कगारे मिथ्यातम के ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७५।।
ॐ ह्रीं श्री प्रबुद्धात्मने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आ चाला पुरुषारथ झोली ।
दुनिया जय सिद्धारथ बोली ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७६।।
ॐ ह्रीं श्री सिद्धार्थाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सिद्ध प्रसिद्ध तुम्हारा शासन ।
सत् जयकार हार दुश्शासन ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७७।।
ॐ ह्रीं श्री सिद्ध-शासनाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नासा लख निज सर अनगाहें ।
सिद्ध कतार देखती राहें ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७८।।
ॐ ह्रीं श्री सिद्धाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सप्त भंग नय प्रमाण ज्ञाता ।
जय सिद्धान्त विद् जगत् त्राता ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।७९।।
ॐ ह्रीं श्री सिद्धान्त-विदे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘ध्येय’ ध्यान के योग्य अकेले ।
रिद्ध-सिद्ध चरणों में खेले ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८०।।
ॐ ह्रीं श्री ध्येयाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
करने-योग्ग साध वह काजा ।
सिद्ध साध्य भव जलधि जहाजा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८१।।
ॐ ह्रीं श्री सिद्ध साध्याय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुमने सार्थ जगत् हित साधा ।
मृणमय तज, चिन्मय आराधा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८२।।
ॐ ह्रीं श्री जगद्धिताय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सहनशील कोई तो तुम हो ।
दृग् पनील जग दोई तुम हो ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८३।।
ॐ ह्रीं श्री सहिष्णवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुण ज्ञानाद न अब च्युत होना ।
सुरभित सुर’भी कोना-कोना ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८४।।
ॐ ह्रीं श्री अच्युताय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नन्त कभी तुम रंच न छीजे ।
लग कतार गुण अनन्त सीझे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८५।।
ॐ ह्रीं श्री अनन्ताय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पृथु पृथ्वी इक प्रभावशाली |
जाप जयतु प्रभविष्णु निराली ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८६।।
ॐ ह्रीं श्री प्रभविष्णवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भव उत्कृष्ट आपका सबसे ।
छूटूॅं मैं भी तुम सा भव से ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८७।।
ॐ ह्रीं श्री भवोद्-भवाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गूॅंजी जय कोने कोने से ।
एक शक्ति शाली होने से ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८८।।
ॐ ह्रीं श्री प्रभुष्णवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लगा किनारे एक बुढ़ापा ।
रखने लगे आप क्या आपा ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।८९।।
ॐ ह्रीं श्री अजराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जीर्ण न होते, शीर्ण न होते ।
आप अजर्य उड़ें क्यों तोते ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९०।।
ॐ ह्रीं श्री अजर्याय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुण ज्ञानादिक अतिशय कारी ।
तुम देदीप्यमान अति भारी ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९१।।
ॐ ह्रीं श्री भ्राजिष्णवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पूर्ण बुद्धि के स्वामी तुम हो ।
इक विशुद्धि आसामी तुम हो ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९२।।
ॐ ह्रीं श्री धीश्वराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जय जयन्त अव्यय अविनश्वर ।
जय भदन्त जय जय अविनीश्वर ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९३।।
ॐ ह्रीं श्री अव्ययाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ईंधन कर्म जल उठा धू धू ।
जारी ध्यान अग्नि अर द्यु भू ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९४।।
ॐ ह्रीं श्री विभावसवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पा शाश्वत शिव धाम ठिकाना ।
फिरके-भव फिर के ना आना ॥
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९५।।
ॐ ह्रीं श्री असंभूष्णवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वयं कान्त इक अनुबुझ ज्योती ।
अखर तीर्थकर पुण्य बपौती ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९६।।
ॐ ह्रीं श्री स्वयंभूष्णवे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नय द्रव्यार्थ अपेक्षा एका ।
सिद्ध अनाद पुरातन लेखा ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९७।।
ॐ ह्रीं श्री पुरातनाय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अति उत्कृष्ट परम पद पाया ।
गगन नाम परमातम छाया ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९८।।
ॐ ह्रीं श्री परमात्मने नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
परम ज्योति कह तुम्हें बुलाते ।
चूँकि ज्योति परमोत्तम नाते ।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।९९।।
ॐ ह्रीं श्री परंज्योतिषे नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जगत् तीन इक स्वामी तुम हो ।
जग-जग अन्तर्यामी तुम हो ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।१००।।
ॐ ह्रीं श्री त्रिजगत्-परमेश्वराय नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“महार्घ्य”
जल फल द्रव्य मिला के सारे ।
तुम्हें मनाने खड़े दुवारे ।।
एक सहारा सिर्फ तुम्हारा ।
सिवा तुम्हारे, कौन हमारा ।।
जय जयकारा, जय जयकारा ।
तुम्हीं हमारे तभी पुकारा ।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीमदादि-
त्रिजगत्-परमेश्वरान्त्य-शतनामधराय
अर्हत्परमेष्ठिने नमो नमः ॥१॥
=जयमाला=
पर उपदेश बिना शिव-पथ पर,
जिनने कदम बढ़ाया ।
सभी प्राणियों का हित साधा,
मोक्ष मार्ग दिखलाया ।।
सम्यक् ज्ञान नयन से ।
स्याद् पदांक वचन से ।
तम अज्ञान मिटाया ।
जयतु आदि जिनराया ।।१।।
प्रजा पाल जे, कर्म भूमि का,
प्रथम चरण जब आया ।
कृषि आदिक षट् कर्म सभी का,
जिनके पाठ पढ़ाया ।।
सुर लौकान्तिक आये ।
धन ! विराग गुण गाये ।
कौन ठग सका माया ? ।
जयतु आदि जिनराया ।।२।।
इक मुमुक्षु थे, इक सहिष्णु थे,
अच्युत जिन्हें बताया ।
कुल दीपक इक्ष्वाकु वंश के,
जश देवों ने गाया ।।
सागर जल पट पहने ।
रतन धान्य धन गहने ।
तज सति भू, वन भाया ।
जयतु आदि जिनराया ।।३।।
शुक्ल ध्यान रूपी अगनी को,
गहरे पैठ जगाया ।
कारण मूल काम क्रोधादिक,
घात-चतुष्क जलाया ।।
तत्व-बोध अभिलाषी ।
भले भवन, वनवासी ।
अमरित ज्ञान पिलाया ।।
जयतु आदि जिनराया ।।४।।
केवल ज्ञान रूप आँखें हैं,
इन्द्र पूजने आया ।
कर्म रूप शत्रू को जीता,
सौख्य ‘निराकुल’ पाया ।।
अजेय शासन धारी ।
शरण हमें बस थारी ।
दो आशीषी छाया ।
जयतु आदि जिनराया ।।५।।
ॐ ह्रीं श्री आदि जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घं
निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा-
सहज-निराकुल लो बना,
और न बस अरमान ।
करुणा, दया, निधान ओ !
आदि ब्रह्म भगवान् ।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
आरती
आदिनाथ जय, आदिनाथ जय
आदिनाथ स्वामी ।
पुरु तीर्थंकर नामी ।
आदिनाथ जय, आदिनाथ जय
आदिनाथ स्वामी ।।
देखे मॉं ने सोलह सपने ।
बरसा रतन कुबेर इन्द्र ने,
बाग डोर थामी ।
पुरु तीर्थंकर नामी ।
आदिनाथ जय, आदिनाथ जय
आदिनाथ स्वामी ।।
शचि ने हाथ झुलाया अपने ।
न्हवन मेरु सौधर्म इन्द्र ने,
बाग डोर थामी ।
पुरु तीर्थंकर नामी ।
आदिनाथ जय, आदिनाथ जय
आदिनाथ स्वामी ।।
देख विषय-विष लागे तजने ।
जश विराग लौकान्त इन्द्र ने,
बाग डोर थामी ।
पुरु तीर्थंकर नामी ।
आदिनाथ जय, आदिनाथ जय
आदिनाथ स्वामी ।।
लगी निरक्षर ध्वनि प्रकटने ।
भाषा मागध नाम इन्द्र ने,
बाग डोर थामी ।
पुरु तीर्थंकर नामी ।
आदिनाथ जय, आदिनाथ जय
आदिनाथ स्वामी ।।
लगे कर्म ध्यानानल जलने ।
दहन केश-नख अग्नि इन्द्र ने,
बाग डोर थामी ।
पुरु तीर्थंकर नामी ।
आदिनाथ जय, आदिनाथ जय
आदिनाथ स्वामी ।।
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