वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘पहली पूजन’
भूल हुई जाने अनजाने,
भगवन् माफ करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
क्षीर नीर प्रासुक कर लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
तरल सुगंधित चन्दन लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
सार्थ नाम कण अक्षत लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
चुन-चुन पुष्प नन्द-वन लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
सुरभित गो-घृत व्यंजन लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
अनबुझ दीप मालिका लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
दश-विध गंध धूप घट लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
दिव्य अनूठे श्री फल लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत चन्दन षष्ठी मन भाया ।
वस-विध मिला द्रव्य सब लाया ।।
क्रोध, लोभ, मन मान समाया,
कुछ तो आप करो ।
जैसा भी हूँ, तेरा ही हूँ,
भव संताप हरो ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“जयमाला”
दोहा-
भूल किसी की हो भले,
माँ बच्चों की ओर ।
तुम मेरी माँ, बाल मैं,
हाथ न देना छोड़ ।।
आँख रखते पानी ।
कम न मरहम वाणी ।।
हाथ श्री फल लेते ।
तुम क्षमा कर देते ।।
दया तुम बरसाते ।
चोर चौंरन नाते ।।
आँख रखते पानी ।
कम न मरहम वाणी ।।
सुमन श्रद्धा लेते ।
तुम क्षमा कर देते ।।
कृपा तुम बरसाते ।
श्वान सुरगन नाते ।
आँख रखते पानी ।
कम न मरहम वाणी ।।
बोल गद-गद लेते ।
तुम क्षमा कर देते ।।
नेह तुम बरसाते ।
नाग राजन् नाते ।।
आँख रखते पानी ।
कम न मरहम वाणी ।।
दुखी मैं भी स्वामी ।
आप अन्तर्यामी ।।
निराकुल कर लो ना ।
भेंट चरणन कोना ।।
दोहा-
भूल सभी से हो चलें,
भगवन् कर दो माफ ।
जैसे भी हम आपके,
और हमारे आप ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘दूसरी पूजन’
क्षमा हमें कर दो भगवन् ।
वैसे साफ़ हमारा मन ।।
भूल न मेरी किया धरा यह,
सब कुछ, कृत पूरब कर्मन ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
नीर क्षीर कलशा कंचन ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मणि सुवर्ण प्याला चन्दन ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धान सुगंधित अक्षत कण ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुरभित सुमन बाग नन्दन ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घृत गो-गिर निर्मित व्यंजन ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अनबुझ ज्योत प्रदीप रतन ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विविध सुगंध गंध सुरगन ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नयन सजल, फल षट् रितुअन ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दरब सरब अन पातर मण ।
निर्बन्धन वाला चन्दन ।।
नहीं पराया, मैं भी तेरा,
शरण मुझे ले लो भगवन् ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“जयमाला”
दोहा-
कोई भी न पा सका,
आप दया का पार ।
अटूट तॉंता भक्त का,
कहाँ हर किसी द्वार ।।
पराया नहीं,
तेरा अपना ही हूॅं मैं ।
ले लो मुझे,
प्रभु जी अपनी शरण में ।।
नाग फूलों की माला ।
बन चली पानी ज्वाला ।
कृपा तेरी है विरली,
टूक बन्धन इक बाला ।।
‘कि सिर झुकाया चरण में ।
ले लो मुझे,
प्रभु जी अपनी शरण में ।।
शूल सिंहासन होना ।
अंग वज्जर सुत-पौना ।
अनूठी किरपा तेरी,
पंख जटायुन सोना ।।
‘कि सिर झुकाया चरण में ।
ले लो मुझे,
प्रभु जी अपनी शरण में ।।
पॉंत धी’वर तज मच्छी ।
नन्त मति सार्थक ‘बच्ची’ ।
दया तेरी है हटके,
भाग सिंह दिव-शिव-लच्छी ।।
‘कि सिर झुकाया चरण में ।
ले लो मुझे,
प्रभु जी अपनी शरण में ।।
पराया नहीं,
तेरा अपना ही हूॅं मैं ।
ले लो मुझे,
प्रभु जी अपनी शरण में ।।
दोहा-
भूल क्षमा कर दीजिये,
छोटा समझ मुझे ।
तलक ओट दे राखिये,
बाली तेल चुके ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘तीसरी पूजन’
तुम करुणा की प्रतिमा ।
मैं पापी ।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
निर्मल जल ।
मन चंचल ।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चन्दन रस ।
मन कल्मष ।।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आखर कण ।
पामर मन ।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुल नन्दन ।
ढुल-मुल मन ।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्यंजन घी ।
मन ज़िद्दी ।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दिया अचल ।
जिया चपल ।।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गंदला मन ।
सुगंध अन ।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फल-भेला ।
मन मैला ।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सरब दरब ।
गरव सरब ।
मायावी ।
छलिया भी ।
दे माफी, कर दो मुझे क्षमा ।।
जग जाहिर महिमा ।
तुम करुणा की प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“जयमाला”
दोहा-
करुणा बरसे आपकी,
हर झोली इक भाँत ।
माँ न जानती स्वप्न भी,
कैसी बन्दर-बॉंट ।।
भक्तों को अपना चुनते हो ।
अ’जि सुनते हैं, तुम सुनते हो ।।
इसलिये सुनाने आया हूँ ।
जल आंखों में भर लाया हूॅं ।।
था ग्वाला इक भोला भाला ।
श्री कुन्द-कुन्द मुनि बन चाला ।।
हाथों का श्री फल लाया हूँ ।
जल आंखों में भर लाया हूॅं ।।
शिव भूति, भूति शिव बड़भागी ।
क़िस्मत इक नन्दी की जागी ।।
सहजो श्रद्धा गुल लाया हूॅं ।
जल आंखों में भर लाया हूॅं ।।
मुख पांखुरि सुमरण संलीना ।
समशरण मुकुट मेंढ़क चीना ।।
पुलकन गद-गद सुर लाया हूॅं ।
जल आंखों में भर लाया हूॅं ।।
मैं भी किस्मत का मारा हूॅं ।
मनु अम्बर टूटा तारा हूॅं ।।
क्या क़ीमत बिन सुगंध सोना ।
दे शरण चरण में रख लो ना ।।
दोहा-
जाने कैसे गढ़ चला,
आखिर भूल पहाड़ ।
नयन सजल अब साधता,
माफी वज्र प्रहार ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘चौथी पूजन’
तुम्हें क्षमा करना आता ।
मेरा त्रुटियों से नाता ।।
डब-डब नयन चला आया ।
श्रद्धा सुमन सजा लाया ।।
और न बस इतना करना ।
किरपा बरसाये रखना ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
लाया घट पानी सोना ।
पानी के जैसा होना ।।
टूट जल्द जुड़ने वाला ।
छद्म-छिद्र भरने वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाया घट चन्दन सोना ।
चन्दन के जैसा होना ।।
घिस खुशबू देने वाला ।
विष रख तू, कहने वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये थाल अक्षत सोना ।
अक्षत के जैसा होना ।।
फिरके न जनमने वाला ।।
विदिश्-दिश् महकने वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये पिटार सुमन सोना ।
सुमनन के जैसा होना ।।
मिल-जुल कर रहने वाला ।
कोमलता रखने वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये थाल व्यंजन सोना ।
व्यंजन के जैसा होना ।।
मन औरन हरने वाला ।
मदद और करने वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिये दीप थाली सोना ।
दीपक के जैसा होना ।।
अंधियारे लड़ने वाला ।
जग रोशन करने वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाया घट सुगंध सोना ।
सुगंध के जैसा होना ।।
दिश्-दश महकाने वाला ।
अम्बर छा जाने वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाया फल पिटार सोना ।
श्री फल के जैसा होना ।।
पीर पर समझने वाला ।
पर हित मर-मिटने वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जल, फल, गंध, धान शाली ।
दीप, धूप, चरु, दीपाली ।।
चरण शरण तुम ले आया ।
मेंटो शीघ्र मोह माया ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“जयमाला”
दोहा-
नाव कीमती आपकी,
मेरा कमती भार ।
राह मुक्ति-वधु देखती,
जाना है उस पार ।।
हम दुवारे तिरे ।
हाथ जोड़े खड़े ।।
तुम दयालु बड़े ।
तुम कृपालु बड़े ।।
मेंटा संकट सिया ।
आग पानी किया ।।
आंख मोती झिरे ।
हाथ जोड़े खड़े ।
हम दुवारे तिरे ।।
तुम दयालु बड़े ।
तुम कृपालु बड़े ।।
कष्ट सोमा हरा ।
माल ‘गुल’ विषधरा ।।
बोल गद-गद निरे ।
आंख मोती झिरे ।
हाथ जोड़े खड़े ।
हम दुवारे तिरे ।।
तुम दयालु बड़े ।
तुम कृपालु बड़े ।।
पाँव नीली लगा ।
द्वार कीलित डिगा ।।
व्योम जय-जय करे ।
बोल गद-गद निरे ।
आंख मोती झिरे ।
हाथ जोड़े खड़े ।
हम दुवारे तिरे ।।
तुम दयालु बड़े ।
तुम कृपालु बड़े ।।
दोहा-
त्रुटियों की दे दो क्षमा,
माँ तुम मैं नादान ।
कोष दोष मैं, तुम प्रभो !
करुणा दया निधान ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘पॉंचवी पूजन’
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
चढ़ाऊँ जल कंचन घट से ।
क्रोध कर लेता हूॅं झट से ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चढ़ाऊँ चन्दन घिसा हुआ ।
मान मैंने कब कब न छुआ ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चढ़ाऊँ अछत धान शाली ।
पड़ी पीछे मायाचारी ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चढ़ाऊँ पुष्प नन्द-बागा ।
लोभ आगे पीछे लागा ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चढ़ाऊँ व्यंजन घृत वाले ।
खेल हिंसक खेलूॅं सारे ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चढ़ाऊँ दीपाली घी की ।
झूठ कर जाता छवि फीकी ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चढ़ाऊँ चन्दन की चूरी ।
करूॅं सपने में भी चोरी ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चढ़ाऊँ फल अनूठ रस मैं ।
आंख मेरी है कब वश में ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चढ़ाऊँ द्रव्य सब अनीचे ।
पड़ा परिग्रह ग्रह सा पीछे ।।
ढ़ेर पापों का लग चाला ।
हृदय इतना कितना काला ।।
उसे अब धोने आया हूॅं ।
आंख पानी भर लाया हूॅं ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“जयमाला”
दोहा-
और किसी के साथ में,
है ऐसी कब बात ।
बड़ी-बड़ी भी गल्तियॉं,
छोटी लगतीं मात ।।
आदत क्षमा की थारी ।
करुणा, दया अवतारी ।।
मैना खड़ी जोड़े हाथ ।
अष्टानिक परब दिन आठ ।।
छव श्रीपाल दिव न्यारी ।
आदत क्षमा की थारी ।।
हा ! दुर्-गन्धिका ही नाम ।
निज निंदा समेत प्रणाम ।।
लाखन प्रीय बलिहारी ।
आदत क्षमा की थारी ।।
चंगुल रंग-रेजन छूट ।
गर्हा आत्म डूब अनूठ ।।
क्षम आदर्श तुंकारी ।
आदत क्षमा की थारी ।।
मुझसे हुई माना भूल ।
करने अब उसे निर्मूल ।।
गीली आंख, दिल भारी ।
आदत क्षमा की थारी ।।
करुणा, दया अवतारी ।
आदत क्षमा की थारी ।।
दोहा-
भूल भूल से बन पड़ीं,
अब करता प्रण जाग ।
रहो सदा तुम साथ में,
ऐसा लिख दो भाग ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘छटवी पूजन’
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
घट जल भेंटा ।
संकट मेंटा ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चन्दन भेंटा ।
बन्धन मेंटा ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अक्षत भेंटी ।
नफ़रत मेंटी ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फुल गुल भेंटा ।
मन्मथ मेंटा ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नेवज भेंटा ।
क्षुध्-गद मेंटा ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दीपक भेंटा ।
तम अघ मेंटा ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सौरभ भेंटा ।
गारव मेंटा ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तरु फल भेंटा ।
कल्मष मेंटा ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सब कुछ भेंटा ।
भव दुख मेंटा ।।
इक करुणा मूरत तुम ।
जुग-पॉंव छुआ ।
बस काम हुआ ।
हो शुभ मुहूरत तुम ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“जयमाला”
दोहा-
बच्चों के मन की करें,
कभी न काटें बात ।
मॉं, महात्म, परमात्म ये,
तीन सभी इक भॉंत ।।
है आंख नम तेरी ।
जुबां सरगम तेरी ।।
पुण्यशाली थोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
संजो के मोति दृगा ।
भक्ति संज्योति जगा ।।
हाथ अपने जोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
है आंख नम तेरी ।
जुबां सरगम तेरी ।।
पुण्यशाली थोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
सुमन श्रृद्धा ले दो ।
बोल गद-गद ले वो ।।
हाथ अपने जोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
है आंख नम तेरी ।
जुबां सरगम तेरी ।।
पुण्यशाली थोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
साध पुलकन रोमा ।
नाद मन्तर ओमा ।।
हाथ अपने जोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
है आंख नम तेरी ।
जुबां सरगम तेरी ।।
पुण्यशाली थोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
झुका के सर अपना ।
हेत दिव-शिव सपना ।।
हाथ अपने जोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
है आंख नम तेरी ।
जुबां सरगम तेरी ।।
पुण्यशाली थोड़े ।
तभी आते दौड़े ।।
दोहा-
संभल संभल भी हो चलीं,
स्वामिन् मुझसे भूल ।
सार्थ नाम ‘सक्षम’ अहो,
उन्हें करो निर्मूल ।।
ॐ ह्रीं श्री भगवन् जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा ।।
“चन्दन षष्ठी कथा”
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।
कृपा भगवन् अतिशय-कारी ।।
अवन्ती नगरी उज्जैनी ।
सेठ ईश्वर चन्द्रिक जैनी ।।
रत्न, माणिक, मण व्यापारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।१।।
लाज रखती जो आँखों में ।
आज रखती जो हाथों में ।।
नार कुल-वन्त चन्दना ‘री ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।२।।
एक दिन अति-मुक्तक नामा ।
साधु मासोपवास धामा ।।
पधारे नगरी बलिहारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।३।।
सेठ ने साथ भक्ति नौधा ।
लगाया पुण्य रूप पौधा ।।
चरण-मुनि अश्रु-धार ढ़ारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।४।।
सेठ बोले ओ ! सेठानी ।
निकालो झट अहार पानी ।।
खड़े द्वारे मुनि अनगारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।५।।
मानते, तिय पति अनुगामी ।
किन्तु मैं ऋतु-मति हूँ स्वामी ।।
हाय ! लाचार बड़ी नारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।६।।
सेठ बोले चुप्पी साधो ।
सन्त घर आये आराधो ।।
दान आहार पुण्य भारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।७।।
धर्म वृद्धी कहके चाले ।
साधने तप, तारणहारे ।।
विहारी अनियत, अविकारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।८।।
गये क्या श्रमण भाग रूठा ।
देह में गलित कुष्ठ फूटा ।।
छुपी किससे मायाचारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।९।।
संघ श्री-भद्र श्रमण-राया ।
कभी उज्जैन नगर आया ।।
मात्र दर्शन भवि दृग्-धारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।१०।।
सेठ सेठानी भी आये ।
तर नयन, बैठे सिर नाये ।।
पूछते पन्थ पाप-हारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।११।।
सन्त मुख झिरा अमृत झरना ।
बढ़ाओ पुण्य सुनो अपना ।।
पाप-पुन भोगे संसारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।१२।।
कीमती अश्रु न यूँ ढ़ारो ।
नाम चन्दन षट् व्रत पालो ।।
छटेगी रात घनी काली ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।१३।।
बड़ी श्रद्धा से व्रत पाला ।
जपी नवकार मन्त्र माला ।।
देह फिर स्वर्णिम हो चाली ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।१४।।
अन्त संन्यास मरण कीना ।
जन्म जा स्वर्ग-धाम लीना ।।
‘निराकुल’ सुख कल अधिकारी ।
कथा चन्दन षष्ठी न्यारी ।।१५।।
दोहा-
बरस चले भगवत् कृपा,
अश्रु ढ़ोलने चार ।
सिखा-पढ़ा की आ सका,
कब माँ को व्यापार ।।१६।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा-
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
“आरती”
जाप जप जयतु ओम् जय
गलित-कुष्ठ चन्दना क्षय
जय जय अरिहन्त जय ।
जयतु सिद्ध नन्त जय ।।
गलित-कुष्ठ चन्दना क्षय
जाप जप जयतु ओम् जय
गलित-कुष्ठ चन्दना क्षय
दीक्ष जिन प्रदाय जय ।
जयतु उपाध्याय जय ।।
गलित-कुष्ठ चन्दना क्षय
जाप जप जयतु ओम् जय
गलित-कुष्ठ चन्दना क्षय
जयतु साध सन्त जय ।
‘सहज’ दया पन्थ जय ।।
गलित-कुष्ठ चन्दना क्षय
जाप जप जयतु ओम् जय
गलित-कुष्ठ चन्दना क्षय
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