वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
“पूजन”
हाई-को ?
तुम और के हो, रहो…
थे, तुम्हारे रहेंगे हम
एक प्रार्थना,
गुरु जी सिर्फ एक प्रार्थना ।
खींच लेना दिया हाथ ना ।।
पग धरा-धरा रोते ।
दिन गया काग धोते ।।
सोते रात खो गई, अन्त यूँ उड़े तोते I
और ये, एक भव की बात ना ।
नादाँ तब न ज्ञान था ।
हुआ जबाँ गुमान था ।।
आया यूँ बुढ़ापा,
यम खड़ा अब आन था ।।
खींच लेना दिया हाथ ना ।।स्थापना।।
पालने झूलें विद्याधर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
तुम शुद्ध हो ।
तुम बुद्ध हो ।
मत-हंस तुम, कल सिद्ध हो ।
सुनो, तुम मोती चुगना,
भव मानस पाकर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।
उड़ाने काग खातिर तुम,
मणि मनुज, कर ना देना गुम ।
चढ़ाना भगवन् चरणन,
हित सु-मरण जाकर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
राख खातिर मेरे नन्दन ।
खाक न करना भव-चन्दन ।
चर्चना भगवन् चरणन,
हित सु-मरण आकर ।।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
पालने झूलें विद्याधर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।जलं।।
तेरा आना बाकी है
यूँ तो घर में मेरे काफी है,
पड़गाहन का समय है
आ जाइये ‘ना’ गुरुजी,
मेरे आँगन विनम्र विनय है ।।
माना चन्दन सी भक्ति,
मुझसे नहीं है ।
साथ-क्रन्दन अभिव्यक्ति,
मुझमें नहीं है ।।
पर डब डब नयना कम ना,
और गद-गद हृदय है ।
पड़गाहन का समय है ।।
नवधा-भक्ति माना,
नृप सोम सी न हाथ में ।
श्रद्धा-भक्ति,
राजा श्रेयांस सी न साथ में ।।
पर डब डब नयना कम ना
और गद-गद हृदय है ।।
पड़गाहन का समय है ।। चन्दनं।।
है जादू वाला मुखड़ा ।
दूर से ही देखा, ये क्या,
दिखा दूर जाता दुखड़ा ।
चौदवीं ए चाँद टुकड़ा ।।
खूब खूबसूरत-चरणा ।
है मंगल मूरत-चरणा ।।
छूते ही सुलझी उलझन,
समाँ शुभ मुहूरत चरणा ।।
हाथों में भी है जादू ।
आँखों में भी है जादू ।।
मैं ना कह रह जमाना,
बातों में भी है जादू ।।
जादू आशीषी छाया ।
जादू नूरानी काया ।।
आने तुम आभरणों में,
दौड़ा चरणों में आया ।।अक्षतं।।
और कुछ चाहिये न हमें ।
जगह चरण में दे दीजिये ।
जरा शरण में ले लीजिये ।
सिर पे रख हाथ बस दीजिये ।
अपने रख साथ बस लीजिये ।
बस तनाव-ताव मेंट दीजिये ।
सिर्फ पाँव-छाँव भेंट कीजिये ।
और कुछ चाहिये न हमें ।
बस निगाह देख एक लीजिये ।
सिर्फ राह भेंट नेक कीजिये ।
घोल अमृत बोल दे दीजिये ।
सुमरण अनमोल दे दीजिये ।
और कुछ चाहिये न हमें ।।पुष्पं।।
देख आया जा, न कहाँ कहाँ मैं ।
आप सा दूजा, न दिखा जहाँ मैं ।
देखा चाँद तो लहरता दाग था ।
देखा भान तो उगलता आग था ।।
देखा आपको, तो देखता रहा मैं ।
देखा चन्दन लिपटाये नाग था ।
दिखा हिरण कस्तूरी पीछे भागता ।।
छोड़ आपको और जाऊँ कहाँ मैं ।
देखा निर्झर दिखा वहाँ झाग था ।
नागमणि धर दिखा समाँ काग था ।।
करुणा-कर ! कर-करुणा हमें थामें ।।नैवेद्यं।।
ए ! सहेली पवन ।
है पहेली सपन ।
बता क्या देगी सुलझा ।
तो गुरुकुल चली जा ।।
मानो मूरत ही सेवा ।
वहाँ होगे गुरु देवा ।
अदब के साथ जाना ।
छू चरण उनके आना ।।
पर सुनो जाते-जाते !
जन जहाँ दीप बहाते ।
कल्याणी वो वरदानी !
धवल गंगा का पानी ।।
माथे सॅंजाना अपने ।
साथ ले आना अपने ।
गुरु जी की पा कर शरणा ।
आना पखार चरणा ।
ए ! सहेली पवन
ए ! सहेली पवन !
और जो आते आते ।
मिले थे फूल लुटाते ।
सारी दुनिया से न्यारी ।
सुगंधि वो मन हारी ।
उड़ाना धीमे धीमे ।
भक्त खो जाये जी में ।।
झूम यूँ जाये सारे ।
लगा गुरु के जय-कारे ।
जयकारा गुरुदेव का,
जय जय गुरुदेव ।।दीपं।।
दुनिया से तोड़ी प्रीत जोड़ी आपसे ।
विनती यही जोड़ी-हाथ थोड़ी आपसे ।।
छोड़ किसी मोड़ पे न चल देना मुझे ।
जोड़ किसी और से न चल देना मुझे ।।
अपनी नजरों से न गिरा देना मुझे ।
अपने अधरों से न ‘हिरा’ देना मुझे ।।
अपने गैरों में न बिठा लेना मुझे ।
अपने पैरों से न उठा देना मुझे ।।
विनती यही जोड़ी हाथ थोड़ी आपसे ।।धूपं।।
भींजी-भींजी
दृग् रहतीं मेरी ।
जी शिल्पी जी
एक विनती मेरी ।
गढ़-दो मूरत माहन ।
मैं हूँ अनपढ़ पाहन ।।
बीतें ठोकर खा दिन ।
रीतें सोकर निशि छिन ।
जढ़ दो सितारे दामन ।
बाहर ही नहीं कड़ा ।
अन्दर भी कड़ा बड़ा ।।
दो लगा झड़ी सावन ।
मैं हूँ अनपढ़ पाहन ।।
रहता सहमें सहमें ।
बन भार जमीं पे मैं ।।
दो छुवा गगन-आँगन ।
भींजी-भींजी
दृग् रहतीं मेरी ।
जी शिल्पी जी
एक विनती मेरी ।
मैं हूँ अनपढ़ पाहन ।।फलं।।
पूछो न, यहाँ क्या मिलता है ।
पूछो, न यहाँ क्या मिलता है ।।
सुकूने दिल मिलता है ।
प्रसूने दिल खिलता है ।।
गिला शिकवा गलता है ।
बला ‘धिक्-ध्याँ’ टलता है ।।
विभाव जलन जलता है ।
मन-मुटाव फिसलता है ।।
अहंकार पिघलता है ।
हाथ लगती सफलता है ।।अर्घ्यं।।
=विधान प्रारंभ=
(१)
हाई-को ?
सुनाऊँ किसे ।
‘छोड़ के तुझे’ कौन जानता मुझे ।
आप करुणा जाये बरस ।
जल कलश, लाये चन्दन घिस ।
धॉं गैर तुस, लाये पुष्प द्यु जश ।
चरु सरस, लाये दीप गो-रस ।
सुगंध दश, लाये फल सरस ।
खुद सदृश लाये अर्घ हरष ।।अर्घ्यं।।
(२)
हाई-को ?
*हाईकू*
गुरु जी ! डरूँ मैं ।
अपने साथ में रख लो हमें ।
भेंटूँ पानीय ।
‘कि होवे चारों खाने चित् मोहनीय ।
‘कि कर्म मोहनीय भागे निकल ।
संदल, भेंटूँ अक्षत ।
छोड़ होड़ ‘कि पाऊँ सुख शाश्वत ।
‘कि हाथ काले करूँ न लुप-छुप ।
पहुप, भेंटूँ षट्-रस ।
क्षुध् विहँस, पाऊँ ‘कि सम्यक् दरश ।
जाते जाते ‘कि लगे-हाथ दृग्-मोति ।
संज्योति, भेंटूँ अगर ।
नाक भार बिना ‘कि पाऊँ नजर ।
मैं रहूँ, न रहे मेरे अन्दर मेला ।
भेला, भेंटूँ दरब सब ।
‘कि मथूँ और न पानी अब ।।अर्घं।।
(३)
हाई-को ?
जाने जमाना ।
तुम्हें न आता, किसी को ठुकराना ।।
चरण शरण आया ।
मेरे भगवन् ! भींगे नयन लाया ।
घट चन्दन, शालि धाँ कण लाया ।
श्रद्धा सुमन, भोग छप्पन लाया ।
दीप रतन, धूप शगुन लाया ।
फल चमन, द्रव्य विभिन लाया ।।अर्घ्यं।।
(४)
हाई-को ?
वैसे जोड़ें न ।
जोड़ें फिर गुरुजी, पीछे छोड़ें न ।
भेंटते जल झारी ।
दुख हारी ! ।
लो बना खुद-सा गुणधारी ।
झारी चन्दन न्यारी ।
भेंटते अक्षत थाली ।
मनहारी ! ।
लो बना खुद सा अविकारी ।
पिटारी पुष्प न्यारी ।
भेंटते व्यञ्जन थाली ।
बलशाली ! ।
लो बना खुद सा श्रुत धारी ।
दीपाली घृत वाली ।
भेंटते धूप निराली ।
अविकारी ! ।
लो बना खुद सा अनगारी ।
पिटारी फल न्यारी ।
भेंटते द्रव्य सारी ।
निरतिचारी ! ।
लो बना खुद सा ये सवाली ।।अर्घ्यं।।
(५)
हाई-को ?
जगत् रुलाये ।
आप ही जिसे, आँसु पोंछना आये ।
दृग् सजल आया ।
दो आशीषी छाया ।
नीर हट, गन्ध घट लाया ।
हो हिरण दायाँ ।
दे…खो माया-जाया ।
अक्षत अछत, पुष्प सित लाया ।
दो विघट माया ।
दो ‘औगम काया’ ।।
चरु ऋत, दीप घृत लाया ।
धूप घट, फल-ऋत लाया ।
दो वसु ‘माँ-धाया’ ।।
दो सुख ‘भी’ गाया ।।
सभी द्रव्य अठ लाया ।
हित ‘बो’ धी सिर नाया ।।अर्घ्यं।।
(६)
हाई-को ?
गुरु लौटाने में, कमी न रखते ।
दूजे फरिश्ते ।
भेंटते जल, चन्दन ।
छिद्र-छल, क्रन्दन दो गुमा ! ।
भेंटते शालि-धाँ, पुष्प ।
कालिमा, भाव कुप् दो गुमा ! ।
भेंटते नेवज, दीपक ।
क्षुध् रुज, ‘धी’ बक दो गुमा !
भेंटते धूप, श्रीफल ।
छाँव-धूप, गहल दो गुमा !
भेंटते अष्ट द्रव्य सर्व ।
वीर वर्तमाँ ! दो गर्व गुमा ! ।।अर्घ्यं।।
(७)
हाई-को ?
खोजा जा जा ।
न पाया दूजा ।
चित् चोर !
सिवाय तोर ।
उदक, चन्दन लाये साथ में ।
मेंटो दुख बात-बात में ।
भेंटो सुपन बात-बात में ।
अक्षत, कुसुम लाये साथ में ।
भेंटो सत्, बात-बात में ।
मेंटो गम बात-बात में ।
पकवाँ, प्रदीवा लाये साथ में ।
मेंटो धिक् ध्याँ बात-बात में ।
भेंटो ‘भी’ ज्ञाँ बात-बात में ।
सुगन्ध, श्रीफल लाये साथ में ।
भेंटो आनन्द बात-बात में ।
मेंटो छल, बात-बात में ।
द्रव्य अष्टक लाये साथ में ।
मेंटो कंटक बात-बात में ।।अर्घ्यं।।
(८)
हाई-को ?
था नयन में बैठाया ।
खोजा, तुम्हें मन में पाया ।
अय मेरे मन के देवता ! ।
तीर दो भिंटा ।
नीर, गन्ध भेंटता ।
द्वन्द्व दो मिटा ।
सुध्याँ दो भिंटा ।
सुधा, प्रसूँ भेंटता ।
सुकूँ दो भिंटा ।
क्षुधा दो मिंटा ।
सुधा, दीप भेंटता ।
छाँव दो भिंटा ।
दूब दो हटा ।
धूप, फल भेंटता ।
छल दो मिंटा ।
कष्ट दो मिंटा ।
द्रव्य अष्ट भेंटता ।।अर्घ्यं।।
(९)
हाई-को ?
लगा भक्तों का मेला ।
दे बता सन्त ये अलबेला ।
आये चरण शरण ।
नीर-नयन, मलय-धन ।
अछत-कण, श्रद्धा सुमन ।
घृत-व्यंजन, दीप-रतन ।
सुगन्ध कण, फल-चमन ।
लाये अष्ट द्रव्य शगुन ।।अर्घं।।
(१०)
हाई-को ?
अजनबी हो करीबी जाता ।
आप को जादू आता ।।
मैं भेंटता हूँ, दृग् जल ।
अब न रहूँ, था जैसा कल ।
रहूँ न अब, और स्वच्छन्द ।
मैं भेंटता हूँ, दिव-गन्ध ।
मैं भेंटता हूँ, अछत अक्षत ।
बेंत सा हो सकूँ, ‘के विनत ।
मौत पा सकूँ, जिन्दगी सुकूँ ।
मैं भेंटता हूँ, स्वर्ग प्रसूँ ।
मैं भेंटता हूँ मैं, दिव्य चरु ।
छाँव दे सकूँ, ‘के मानिन्द तरु ।
आने आपके और समीप ।
मैं भेंटता हूँ, रत्न प्रदीप ।
मैं भेंटता हूँ, धूप अनूप ।
‘के लख सकूँ आप सा चिद्रूप ।
सही आखिर ही, हो सकूँ सफल ।
मैं भेंटता हूँ, हाथ श्रीफल ।
मैं भेंटता हूँ, द्रव्य जुग चार ।
‘के शीघ्र व्याहूं, विमुक्ति नार ।।अर्घ्यं।।
(११)
हाई-को ?
आपका दिल है, या माया ओ ! ।
आया जो, समाया वो ।
जल, चन्दन
अक्षत, सुमन
चरु, दीप रतन
धूप, फल चमन
अष्ट द्रव्य शगुन, स्वीकार कर लो ।
‘भव-जल नौ’ पार कर दो ।
‘छू’ सर का भार कर दो ।
भवद-ध्यान खार कर दो ।
मदन छार-छार कर दो ।
क्षुधा यम द्वार कर दो ।
‘ही’ ताप, ‘भी’ धार कर दो ।
नीर-क्षीर न्यार कर दो ।
द्यु-शिव दृग् चार कर दो ।
नार-मुक्ति ‘तार’ कर दो ।।अर्घ्यं।।
(१२)
हाई-को ?
देते हैं सिल उधड़े रिश्ते ।
गुरु और फरिश्ते ।
सविनय भेंटूॅं जल ।
कल विकल,
‘के न कर सके, चपल बंध ।
भेंटूॅं गन्ध ।
सविनय भेंट अक्षत ।
सिर चढ़, न बोले मद ।
‘के मन की न करे मदन ।
भेंटूॅं सुमन ।
सविनय भेंट चरु ।
गुरूर खो सकूँ, जैसे तरु ।
‘के दे सकूँ मोती, बनके सीप ।
भेंटूॅं दीप ।
सविनय भेंट धूप ।
दे ही दे मुस्कान, आत्म स्वरूप ।
‘के न कर सके, परेशान छल ।
भेंटूॅं फल ।
सविनय भेंट अरघ ।
शिव-खेत, ‘के हेत सुरग ।।अर्घ्यं।।
(१३)
हाई-को ?
क्या आता जादू-टोना ? ।
जो खिंचा चला आता जमाना ।
न मिला घट-जल ।
‘के नैन सजल,
ले आ गया मैं, सहजो-विनय ।
न मिला रस-मलय ।
मिला न थाल अक्षत ।
कृत-सुकृत,
ले आ गया मैं, बुने सपन ।
न मिला थाल सुमन ।
मिला न थाल-व्यञ्जन ।
मन वाक् तन,
ले आ गया मैं, क…छुआ धिया ।
न मिला रत्न दीया ।
मिला नहीं घट-धूप ।
प्रफुल रोम कूप,
ले आ गया मैं, बना हाथ श्रीफल ।
न मिला सूखा, हरा फल ।
मिला न द्रव्य परात ।
ले आ गया मैं, श्रद्धा सुमन-पात ।।अर्घं।।
(१४)
हाई-को ?
ख्यात विरद ।
मेंटते आप, हाथों-हाथ दरद ।
लाये उदक ।
पाने आपकी, सिर्फ एक झलक ।
करने आप-जैसा, ‘भी’ अभिनन्दन ।
चन्दन, लाये धाँ शाली ।
मन सके आप-जैसी, मेरी दीवाली ।
पाने वैसा, है आप का जैसा, मन ।
सुमन, लाये व्यञ्जन ।
करने आप-जैसा, क्षुध्-गद भंजन ।
आने आपके, और…और करीब ।
प्रदीव, लाये सुगन्ध ।
लुभाये आप जैसा, ‘कि चिदानन्द ।
होने आप-जैसा, पल-पल सफल ।
श्री-फल, लाये द्रव्य सब ।
लुभाये ‘के आप जैसे ही, करतब ।। अर्घ्यं।।
(१५)
हाई-को ?
होता प्रभु के होने का अहसास ।
गुरु के पास ।
जल झारी ।
ली स्वीकार ये, जो चन्दन प्याली ।
पतंग उड़ चाली ।
धूल-चन्दन म्हारी ।
अक्षत थाली ।
ली स्वीकार ये, जो पुष्प पिटारी ।
मोती धान शाली ।
चाँदी सोना हमारी ।
चरु घी वाली ।
ली स्वीकार ये, जो दीपाली ।
चूनरिया शश-तारी ।
जागी किस्मत म्हारी ।
धूप निराली ।
ली स्वीकार ये, जो श्री फल थाली ।
मनी दीवाली म्हारी ।
जीती दुनिया सारी ।
अर्घ ही न अर्पण ।
करूँ, अपना भी समर्पण ।।अर्घ्यं।।
(१६)
हाई-को ?
चित् चुराने का मंत्र ।
पा विरासत में जाते सन्त ।।
तुमने जीती गहल ।
दृग् जल,
सो समर्पित करूँ चन्दन ।
तुमने जीता मन ।
तुमने जीता जगत् ।
अक्षत,
तभी समर्पित करूँ पहुप ।
तुमने जीता कुप् ।
तुमने जीती जिद ।
चरु घी निर्मित ।
सो अर्पित करूँ दीपक ।
तुमने जीती धी बक ।
तुमने जीता दृग्-द्वन्द्व ।
सुगंध,
तभी अर्पित करूँ श्री फल ।
तुमने जीता छल ।
तुमने जीता गरब ।
करूँ समर्पित सो द्रव्य सब ।।अर्घ्यं।।
(१७)
हाई-को ?
भागे जाओ न अकेले ।
हमें भी ले चालो धकेले ।
आया सुन, दृग् जल संग ।
बिठाते मन तरंग ।
‘के छुवाते नभ पतंग ।
चन्दन संग,
सुन आया धाँ संग ।
समाते रस्ते दृग् अंतरंग ।
‘के मिटाते मन तरंग ।
सुमन संग ।
आया सुन नैवेद्य संग ।
नह्वाते ज्ञान-गंग ।
‘के लाते जीवन में रंग ।
प्रदीप संग ।
आया सुन ये धूप संग ।
जिताते कर्मों से जंग ।
‘के दिखाते शिव सुरंग ।
श्रीफल संग ।
आया सुन ये अर्घ्य संग ।
भिंटाते देव-मृदंग ।।अर्घ्यं।।
(१८)
हाई-को ?
जाऊँगा मैं तो सुना के ।
न आज ही, कल भी आ के ।।
सो…ना पा गया पानी महक ।
भेेंटूँ मैं भी उदक ।
भेेंटूँ मैं भी चन्दन ।
पाई चन्दन वीर अभिनन्दन ।
पाई चुराना चित् बुलबुल ।
भेंटूँ में भी तण्डुल ।
भेंटूँ मैं भी सुमन ।
चाँद बतिया रहा गगन ।
भेरी दुनिया में रही बज ।
भेंटूँ मैं भी नेवज ।
भेंटूँ में भी दीपिका ।
हटके ‘कछु…आ’ रहा सिखा ।
चाल-हंस, सो चित्त पट ।
भेेंटूँ मैं भी धूप-घट ।
भेेंटूँ मैं भी फल ।
स्वर्ण जटायु पंख-युगल ।
घड़ियाँ घड़ी-घड़ी सजग ।
भेेंटूँ मैं भी अरघ ।।अर्घं।।
(१९)
हाई-को ?
सर्दी में धूप गुनगुनी ।
गर्मी में छाहरी मुनी ।
भेंटूँ दृग्-जल ।
पाने स्वर्णिम कल ।
हूबहू आप जैसा, जीतने मन ।
चन्दन, भेंटूँ सुधान ।
लगाने ध्यान ।
हूबहू आप जैसा, जीत पाने कुप् ।
पहुप, भेंटूँ व्यंजन ।
पदवी निरंजन ।
हूबहू आप-सी, पाने ‘भी’, धिया ।
घी दीया, भेंटूँ धूप ।
अनोखी डूब,
हूबहू आप जैसी, पाने निधि चल ।
श्रीफल, भेंटूँ अष्ट द्रव्य ।
हूबहू आप सा, बनने निकट भव्य ।।अर्घ्यं।।
(२०)
हाई-को ?
विनती मेरी ।
कर लो, अपनों में, गिनती मेरी ।
भेंटूँ उदक ।
पड़ी पीछे धिया वक ।
ओ ! हटक दो, पड़ा पीछे क्रन्दन ।
चन्दन, भेंटूँ धाँ शाली ।
पड़ी पीछे नजर काली ।
ओ ! हटक दो, पड़ा पीछे वन रुदन ।
सुमन, भेंटूँ व्यञ्जन ।
लागे पूजा न मन ।
ओ ! हटक दो, पड़ी पीछे दृग् तिया ।
घी दीया, भेंटूँ सुगंध ।
पड़ा पीछे पन–स्वच्छंद ।
ओ ! हटक दो, पड़ी पीछे गहल ।
श्री फल, भेंटूँ अष्ट दरब ।
ओ ! हटक दो, पड़े पीछे सब गरब ।।अर्घ्यं।।
(२१)
हाई-को ?
गुरु जी ! जोड़ हाथ खड़ा ।
माटी मैं, बनने घड़ा ।
कृपाल-वैद्य-बाल ! ।
भेंटूॅं ये नीर ।
मेंटिये पीर ।
दयाल प्रति पाल ! ।
कलि-काल-गोपाल ! ।
गन्ध भेंटूॅं ये सुधाँ ।
द्वन्द्व मेंटिये कुध्याँ ।
निहाल-भाग्य-भाल ! ।
भाल-उर-विशाल ! |
पुष्प, भेंटूॅं ये नेवज ।
कुप् मेंटिये क्षुधा रुज ।
निढ़ाल-बाल ढ़ाल ! ।
विहर व्याल-चाल ! ।
दीया भेंटूॅं ये धूप ।
‘ही’ धिया, मेंटिये झूठ ।
ज्वाल-जगज्-जंजाल ! ।
फिकर-काल काल ! ।
श्री फल भेंटूॅं ये अरघ ।
छल मेंटिये पंच अघ ।।अर्घ्यं।।
(२२)
हाई-को ?
गुरु रु माँ, हैं हारने में माहिर ।
जगज्-जाहिर ।
गुरु जी नमो-नमः ।
छू कर ये मेरा उदक ।
अरमाँ, दो थमा आसमाँ ।
चन्दन छू कर ये अक्षत ।
दो भिंटा द्यु-शिव रमा ।
दे दीजिए भूल की क्षमा ।
फूल छू कर ये चारु चरु ।
दीजिए क्षुधा को राह थमा ।
दीप छू कर ये घट सीप धूप ।
मेंट दीजिए ‘ही’ अमा ।
मेंटिये पाप कर्म फरमाँ ।
फल छू कर ये अरघ ।
कर लीजिए खुद समाँ ।
गुमा दीजिएगा गुमाँ ।।अर्घ्यं।।
(२३)
हाई-को ?
श्रद्धा सवाली ।
लौटाये ‘गुरु-द्वार’ न हाथ खाली ।
जल भेंटूॅं चरणन ।
भेंट दो हमें शरण ।
शरण भेंट दो हमें ।
गन्ध भेंटूॅं चरण में ।
भेंटूॅं शाली धान कण ।
भेंट दो हमें आचरण ।
मेंट दो ‘कि पुष्प बाण ।
भेंटूॅं पुष्प बागान ।
चारु चरु भेंटूॅं पाँवन ।
मेंट दो ‘कि क्षुधा नागन ।
भेंट दो अद्भुत कुछ ।
दीप भेंटूॅं अनबुझ ।
धूप भेंटूॅं पाद मूल ।
‘कि भेंट दो पाद-धूल ।
मेंट दो ‘कि अठ मद ।
फल भेंटूॅं ‘जी’ गद-गद ।
अर्घ भेंटूॅं ये अलग ।
भेंट दो ‘के शिव, सुरग ।।अर्घ्यं।।
(२४)
हाई-को ?
दो छत्रच्छाया ।
शरण तेरी आया, ओ ! ऋषि राया ।
कटने पाप से ।
श्री द्वारे आपके ।
ले जल, चन्दन आया
छूटने संताप से ।
जुड़ने आप जाप से ।
लें अक्षत, पुष्प आया ।
बनने आप से ।
‘के क्षुधा विहँसे ।
ले नैवेद्य, दीप आया ।
‘के बोधी विकसे ।
बिछुड़ने कर्म से ।
ले धूप, श्री फल आया ।
‘के कृपा बरसे ।
जुड़ने आप से ।
ले अष्ट द्रव्य आया ।
श्री द्वारे आपके ।।अर्घ्यं।।
(२५)
हाई-को ?
प्रार्थना-दिन-रैन ।
गुरुदेव ! आ-निवसो नैन ।
फेर निन्यानौ छकाऊँ ।
कुछ कीजो, जल, चन्दन चढ़ाऊँ ।
आ अब आपे में जाऊँ ।
‘के सुनूँ, अब न सुनाऊँ ।
कुछ कीजो, अक्षत, पुष्प चढ़ाऊँ ।
अपनों को न हराऊँ ।
‘के न ठगूँ , भले ठगाऊँ ।
कुछ कीजो, नैवेद्य, दीप चढ़ाऊँ ।
देख-दुखी, दृग् भिंजाऊँ ।
‘के उतर जमीं पे आऊँ ।
कुछ कीजो, धूप, श्री फल चढ़ाऊँ ।
पेलने-रेत न जाऊँ ।
‘के चाँद-सितारे छू आऊँ ।
कुछ कीजो, अष्ट द्रव्य चढ़ाऊँ ।।अर्घ्यं।।
(२६)
हाई-को ?
तुम्हारे बिना ।
न रह पाऊँगा, दे भी दो शरणा ।
दृग् जल चढ़ाऊॅं चरण ।
मेंट दो जन्म, जरा, मरण ।
लगा हाथ दो सुमरण ।
गन्धाक्षत चढ़ाऊॅं चरण ।
अलबिदा ‘कि हों विघन ।
निराकुल ‘कि होवे मन ।
फुलवा व चरु चढ़ाऊॅं चरण ।
करूँ ‘क्षमा-तरु’ वरण ।
मिथ्यातम कीजे हनन ।
दीप हट, घट धूप चढ़ाऊॅं चरण ।
हो चिद्रूप से मिलन ।
‘कि हो गहल अपहरण ।
श्री फल, अर्घ चढ़ाऊॅं चरण ।
हो अपवर्ग स्वर्ग गमन ।।अर्घ्यं।।
(२७)
हाई-को ?
पाँव-छाँव में दे जगह दो ।
‘गुरु जी’ दया करो ।
भक्ति डोर से जुड़ने आया ।
जल, चन्दन
अक्षत, सुमन
चरु, दीप रतन
धूप, फल चमन
अष्ट द्रव्य शगुन, स्वीकारो ऋषि राया ।
न छू सके, ‘कि काला साया ।
‘के सर, कर दो छत्रच्छाया ।
कर दो ज्ञान-केवल काया ।
‘के मदन ले विघटा माया ।
ले बिदा भोग मन भाया ।
‘के अपना लो, भले पराया ।
संपूरो स्वप्न मन समाया ।
‘के वर सकूँ शाश्वत जाया ।।अर्घ्यं।।
(२८)
हाई-को ?
सुना, गुरु जी, सुना करते सभी की ।
दुखी मैं भी ।
पाऊँ अखीर, ‘सु-मरण’ ।
चढ़ाऊँ नीर भगवन् ।
पाऊँ शरण, चढ़ाऊँ चन्दन ।
न गवाऊँ क्षण ।
‘कि गवाऊँ मद ।
पा जाऊँ पद, ‘अक्षत’ चढ़ाऊँ ।
पाऊँ भौ-कूल, मैं चढ़ाऊँ फूल ।
‘कि गवाऊँ भूल ।
गुमा, गुमान ।
पाऊँ ‘निर्वाण’, चढ़ाऊँ पकवान ।
पाऊँ ‘दीवाली’, चढ़ाऊँ ।
‘कि गवाऊँ, खुरपा जाली ।
पाऊँ चिद्रूप ।
जड़ रुपये रूप’, चढ़ाऊँ धूप ।
पा जाऊँ ‘बल’, चढ़ाऊँ श्रीफल ।
‘कि गवाऊँ छल ।
‘कि गवाऊँ अघ ।
पा जाऊँ मग, चढ़ाऊँ अरघ ।।अर्घ्यं।।
।। जयमाला ।।
हुआ सबेरा ।
अब तक सपनों में ।
चरणों में, कर लेने दो गुरुजी बसेरा ।
सिर्फ खाद पानी से ही झूमते न पौधे ।
झूमें तब, आन बागवान सहारा जो दे ॥
काफी किरण पहली ही, भले तम घनेरा ।
भले मोर झम-झमा-झम नाचा करे हैं ।
बिना आदर्श क्या ? सिर न कर नीचा खड़े हैं ।
दीया तले रह जाता है, प्रायः कर अंधेरा ।
वो माटी घड़ी घड़ी जो बन रही गगरी है ।
कुछ न और शिल्पी की ये जादूगरी है ।
सुनते जान भर देता है, रंगों में चितेरा |
हाई-को ?
‘न जाने कैसे रह गईं टूट,
‘जी कीजिये झूठ’
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा-
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
*आरती*
आरती उतारो ले दीप, आओ मिल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।
मनोकामना पूर्ण ! हरतार दुखदा ।
निकलंक पूनम शरद् चाँद मुखड़ा ।।
भवि-भागन-वशि आये, दक्षिण से चल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।१।।
ग्राम ‘सदल-गा’ में अवतार लीनो ।
धन्य मल्लप्पा, माँ श्रीमन्ति कीनो ।।
बचपन से पग अपने, रक्खें सँभल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।२।।
दिश-भूषण सूरि साक्षि व्रत-ब्रह्मचारी ।
सूरि ज्ञान-सिन्धु साक्षि दीक्षा तुम्हारी ॥
आज सूरि-निर्ग्रन्थ, भगवन्त कल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।३।।
दीक्षा श्रमण, अर्जिका मॉं बनाईं ।
खोलीं गो-शालाएँ, कविता रचाईं ।।
पर पीड़ा देख बने, नेत्र-स्रोत जल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।४।।
गुण आप उतने, जितने सितारे ।
देवों के गुरु कहके, दो-शब्द हारे ।।
‘निराकुल’ न पार पारावार बाहु-बल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।५।।
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