परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
आचार्य संघ विधान
।। प्रशस्ति ।।
गुरु गागर ज्ञान उड़ेली ।
मति हंस करे अठखेली ।।
विद्या सागर जयकारा ।
जन जैन अजैन सहारा ।।१।।
हो सार समय पाहुड के ।
गुरु कुन्द-कुन्द गुरुकुल के ।।
संयमित वचन मन काया ।
घट पाहुड-योग समाया ।।२।।
यम, संयम, नियम कतारा ।
रग नियम सार, दृग धारा ।।
उर-वसी क्षमा वा करुणा ।
तन मल-पाटल आभरणा ।।३।।
संगुप्त भाँत कछुआ से ।
फाँसे ‘न’ फेंकते पाँसे ।।
गगनांगन पतंग देखी ।
धुन पथ संयम चलने की ।।४।।
घट स्वानुभूति झिर फूटी ।
झिरती मुख सुधा अनूठी ।।
मारी तरंग मन उठती ।
कायल समता नभ धरती ।।५।।
सब मिला, न अब कुछ चाहें ।
सर निज स्वभाव अवगाहें ।।
रख भाव समाधी मन में ।
घर छोड़, तपें तप वन में ।।६।।
वामी अहि सरल प्रवेशा ।
विसराया रागरु-द्वेषा ।।
मन ज्यों वैराग्य समाया ।
कर देर न, छोड़ी माया ।।७।।
नेकान्त प्रमाणिक वाणी ।
चित चार कोन नादानी ।।
करते ही किनार माया ।
गुण आर्जव झोरी आया ।।८।।
करते ही मान किनारे ।
बाजे निध मार्दव वाले ।।
मन भावन पवित्र राखी ।
तज सपने भी बैसाखी ।।९।।
जिन धर्म उत्तमम् असि-सा ।
ली शरण तरण शिव हरषा ।।
मैं चिन्मय मृण-मय देहा ।
क्या पढ़ा झड़ा तन नेहा ।।१०।।
पॉंवन पावनता लाने ।
गा चले दया के गाने ।।
सुख आकुलता जिन माना ।
ठाना वधु मोक्ष रिझाना ।।११।।
पाने अपूर्व कुछ मचले ।
निकले दलने कृत पिछले ।।
लख दूध प्रशान्त मलाई ।
की ढ़ाई अखर पढ़ाई ।।१२।।
निर्वेग पन्थ अपनाया ।
सुन, अब तक मुॅंह की खाया ।।
बन चली विनीत गगरिया ।
नेकी कर डालें दरिया ।।१३।।
निर्णय कर निकले घर से ।
के हो न आगमन फिर से ।।
क्या पर्दे कर्म हटाये ।
आतम प्रबुद्ध कहलाये ।।१४।।
क्या बिछुड़ी इक जनमत मॉं ।
जुड़ चलीं आठ प्रवचन माँ ।।
भव भव जो पुण्य कमाया ।
वो खरच श्रमण पद पाया ।।१५।।
शिव सुख उपाय में लागे ।
दे गांठ, न चटका धागे ।।
मुख प्रसाद आया झोरी ।
पढ़ डाली पोथी कोरी ।।१६।।
धन मुद्रा अभय अनोखी ।
मिट चली खाज हिरनों की ।।
पद अक्षय अधिक न दूरी ।
हिल ना हिरणा कस्तूरी ।।१७।।
परिणत प्रशस्त हाथों में ।
पत लाज शरम आंखों में ।।
जो डूब पुराण बताई ।
पथ भागीरथ हथियाई ।।१८।।
भव मानव प्रयोगशाला ।
ना कहा, कर दिखा डाला ।।
अर ठोकर प्रबोध पाया ।
मन दर्पण भांत बनाया ।।१९।।
जग तीन प्रणम्य अकेले ।
रिध सिध चरणों में खेले ।।
संध्या स्वर गूँज प्रभाती ।
इक यही निराकुल, साथी ! ।।२०।।
दोहा
सिन्धु ज्ञान गुरु जोहरी ।
हीरा दिया तराश ।।
ग्रन्थ संत सब दिख पड़े ।
अमिट जैन इतिहाल ।।
।। पूजन ।।
वृषभ महन्ता ।
अजित अनन्ता ।
शम-भव नंदन माँ श्री मन्ता ।।
सुमत सहेली ।
पद्म हथेली ।
सुपार्श्व मुख प्रभ चन्द नवेली ।।
नित विधि पहरा ।
शीतल हिवरा ।
श्रेय पूज्य चेहरे ना चेहरा ।।
विमल विभूति ।
नन्त अनूठी ।
धर्म शान्ति प्रद धुनि कलदूती ।।
कुन्थु सुरक्षा ।
सिख अर कक्षा ।
मल्ल सुव्रत मुनि अभि-जित अक्षा ।।
नमि दृग वन्ता ।
नेम सुपन्था ।
पार्श्व वीर माँ सरसुत कण्ठा ।।
ज्ञान दिवाकर ।
विद्यासागर ।
आन पधारो उर, करुणाकर ।।
ॐ ह्रीं श्री आचार्य विद्या सिन्ध !
अत्र अवतर संवौषट इति आवाह्नन ।
ॐ ह्रीं श्री आचार्य विद्या सिन्ध !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ।
ॐ ह्रीं श्री आचार्य विद्या सिन्ध !
अत्र मम सन्निहितो
भव भव वषट् सन्निधिकरणम्
समय हाथ में ।
विनय आंख में ।
जल भेंटूँ, भर स्वर्ण पात्र में ।।
ॐ ह्रीं श्री समय सागर मुनिन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
योग सार हो ।
भौ किनार हो ।
चन्दन भेंटूँ, हेत पार भौ ।।
ॐ ह्रीं श्री योग सागर मुनिन्द्राय
चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नियम अनूठे ।
भरम अछूते ।
भेंटूँ अक्षत कण अनटूटे ।।
ॐ ह्रीं श्री नियम सागर मुनिन्द्राय
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्षमा निधाना ।
नमः पुराणा ।
पुष्प समर्पित, नन्द बगाना ।।
ॐ ह्रीं श्री क्षमा सागर मुनिन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुप्ति निराली ।
सुक्ति संभाली ।
भेंटूँ मनहर चरु घृत थाली ।।
ॐ ह्रीं श्री गुप्ति सागर मुनिन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
संयम राही ।
गत कोताही ।
भेंटूँ, दीपक घृत मण शाही ।।
ॐ ह्रीं श्री संयम सागर मुनिन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुधा झिराते ।
व्यथा मिटाते ।
दहने कर्म सुगंध चढ़ाते ।।
ॐ ह्रीं श्री सुधा सागर मुनिन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
समता भोगी ।
रमता जोगी ।
भेंटूँ श्री फल टूट वियोगी ।।
ॐ ह्रीं श्री समता सागर मुनिन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वभाव सरला ।
तनाव विकला ।
द्रव्य परात चढ़ाऊॅं विरला ।।
ॐ ह्रीं श्री स्वभाव सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विधान प्रारंभ
समाध बोधी ।
अबाध ज्योती ।
साधु सन्त जय, उपाध खो दी ।।
ॐ ह्रीं श्री समाधि सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१।।
सरल लोचना ।
कमल लोचना ।
साधु सन्त जय, सजल लोचना ।।
ॐ ह्रीं श्री सरल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२।।
मुनि वैरागी ।
गुण अनुरागी ।
साधु सन्त जय, पुन बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं श्री वैराग्य सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३।।
ग्रन्थ प्रमाणा ।
पन्थ पुराणा।
साधु सन्त जय, मन्त्र विधाना ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रमाण सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४।।
अन आर्जव मन ।
गुण अर्णव धन ।
साधु सन्त जय, पुन गौरव वन ।
ॐ ह्रीं श्री आर्जव सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५।।
मार्दव भावा ।
दिव शिव नावा ।
साधु सन्त जय, काशी काबा ।
ॐ ह्रीं श्री मार्दव सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६।।
पवित्र मंसा ।
शत्रु प्रशंसा ।
साधु सन्त जय, प्रवृत हंसा ।।
ॐ ह्रीं श्री पवित्र सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७।।
उत्तम लोका ।
दृग नम ढोका ।
साधु सन्त जय, उपक्रम मोखा ।।
ॐ ह्रीं श्री उत्तम सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८।।
चिन्मय देखा ।
मृणमय फेंका ।
साधु सन्त जय, पद गज रेखा ।।
ॐ ह्रीं श्री चिन्मय सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९।।
पावन चरिया ।
भावन बढ़िया ।
साधु सन्त जय, आंखन दरिया ।।
ॐ ह्रीं श्री पावन सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०।।
सुख झिर फूटी ।
दुख चिर, झूठी ।
साधु सन्त जय, निजानुभूति ।।
ॐ ह्रीं श्री सुख सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।११।।
अपूर्व धारा ।
पूर्व विसारा ।
साधु सन्त जय, पूरव तारा ।
ॐ ह्रीं श्री अपूर्व सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१२।।
प्रशान्त रूपा ।
क्षान्त स्वरूपा ।
साधु सन्त जय, दान्त अनूपा ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रशान्त सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१३।।
मन निर्वेगा ।
मन्मथ ठेंगा ।
साधु सन्त जय, मंजिल वेगा ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्वेग सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१४।।
विनीत पांता ।
भीत विघाता ।
साधु सन्त जय, प्रीत विधाता ।।
ॐ ह्रीं श्री विनीत सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१५।।
निर्णय भक्ती ।
अदम्य शक्ती ।
साधु सन्त जय, परिणय मुक्ति ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्णयसागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१६।।
हंस प्रबुद्धा ।
वंश विशुद्धा ।
साधु सन्त जय, अंश सुसिद्धा ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रबुद्ध सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७।।
प्रवचन मिसरी ।
अनबन विसरी ।
साधु सन्त जय, गुण गण पगड़ी ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रवचन सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१८।।
पुण्य अहा ‘रे ।
रत्न पिटारे ।
साधु सन्त जय, धन्य सहारे ।
ॐ ह्रीं श्री पुण्य सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१९।।
पाय अहिंसा ।
कषाय ध्वंसा ।
साधु सन्त जय, सहाय मंसा ।।
ॐ ह्रीं श्री पाय सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२०।।
समाध जोड़ी ।
प्रमाद छोड़ी ।
साधु सन्त जय, प्रसाद झोरी ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रसाद सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२१।।
अभया मुद्रा ।
दया समुद्रा ।
साधु सन्त जय, विजया निद्रा ।।
ॐ ह्रीं श्री अभय सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२२।।
अक्षय सुखिया ।
दुख क्षय दुखिया ।
साधु सन्त जय, निर्भय मुखिया ।।
ॐ ह्रीं श्री अक्षय सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२३।।
भाव प्रशस्ता ।
छाँव फरिश्ता ।
साधु सन्त जय, स्वभाव रिश्ता ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रशस्त सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२४।।
पुराण नैनी ।
गुमान जैनी ।
साधु सन्त जय, प्रधान सैनी ।।
ॐ ह्रीं श्री पुराण सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२५।।
प्रयोग साधें ।
भोग विराधें ।
साधु सन्त जय, जोग अराधें ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रयोग सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२६।।
जगत प्रबोधा ।
जश अविरोधा ।
साधु सन्त जय, जित अख जोधा ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रबोध सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२७।।
प्रणम्य देवा ।
सरसुत सेवा ।
साधु सन्त जय, तट उस खेवा ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रणम्य सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२८।।
प्रभात बेला ।
घात झमेला ।
साधु सन्त जय, समाध मेला ।।
ॐ ह्रीं श्री प्रभात सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।२९।।
सौख्य अमंदा ।
दुक्ख निकंदा ।
साधु सन्त जय, मुखड़ा चन्दा ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३०।।
वृषभ न तेली ।
डूब सहेली ।
साधु सन्त जय, निध अलबेली ।।
ॐ ह्रीं श्री वृषभ सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३१।।
अजित कषाया ।
सुकृत रिझाया ।
साधु सन्त जय, सन्मत छाया ।।
ॐ ह्रीं श्री अजित सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३२।।
सम्भव सपना l
है विकल्प ना ।
साधु सन्त जय, पद नव जपना ।।
ॐ ह्रीं श्री सम्भव सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३३।।
गुण अभिनन्दा ।
धुन तम हन्ता ।
साधु सन्त जय, पुन अमि चंदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दन सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३४।।
सुमत रिझाई ।
कुमत विदाई ।
साधु सन्त जय, मुकत सगाई ।।
ॐ ह्रीं श्री सुमति सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३५।।
पद्मा आंखें ।
कद माँ राखें ।
साधु सन्त जय, सद्मा ताकें ।।
ॐ ह्रीं श्री पद्म सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३६।।
सार्थ सुपासा ।
सुदृष्टि नासा ।
साधु सन्त जय, विनष्ट आशा ।।
ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्व सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३७।।
प्रभ चन्दा सी ।
सद् गुण राशी ।
साधु सन्त जय, घट घट वासी ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३८।।
सुपुष्प दन्ता ।
विरक्त पंथा ।
साधु सन्त जय, विमुक्त कन्ता ।।
ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंत सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।३९।।
श्रेयस कारी ।
तेजस भारी ।
साधु सन्त जय, जै बलिहारी ।।
ॐ ह्रीं श्री श्रेयांश सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४०।।
पूज धी निरी ।
दूज भी तरी ।
साधु सन्त जय, गूँज भीतरी ।।
ॐ ह्रीं श्री पूज्य सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४१।।
विमल देखना ।
गहल एक-ना ।
साधु सन्त जय, पहल लेख ना ।।
ॐ ह्रीं श्री विमल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४२।।
सुगुण अनंता ।
शगुन समंता ।
साधु सन्त जय, कल भगवंता ।।
ॐ ह्रीं श्री अनंत सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४३।।
इक अराधना ।
कब विराधना ।
साधु सन्त जय, धर्म साधना ।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४४।।
शान्ति विभूति ।
कान्ति अनूठी ।
साधु सन्त जय, भ्रान्ति अछूती ।।
ॐ ह्रीं श्री शान्ति सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४५।।
कुन्थु रखैय्या ।
सजग खिवैय्या ।
साधु सन्त जय, धुरुव तरैय्या ।।
ॐ ह्रीं श्री कुन्थु सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४६।।
चुनते अर जी ।
सुनते अर्जी ।
साधु सन्त जय, जय गुरुवर जी ।।
ॐ ह्रीं श्री अरह सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४७।।
मल्ल गभीरा ।
जल्ल शरीरा ।
साधु सन्त जय, त्रिशल्य चीरा ।।
ॐ ह्रीं श्री मल्लि सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४८।।
सुव्रत अर्चा ।
सुरगन चर्चा ।
साधु सन्त जय, पुण्य न खर्चा ।।
ॐ ह्रीं श्री सुव्रत सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।४९।।
वीर नन्दना ।
धीर वन्दना ।
साधु सन्त जय, तीर स्यन्दना ।।
ॐ ह्रीं श्री वीर सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५०।।
धारत धीरा ।
परणत क्षीरा ।
साधु सन्त जय, भारत वीरा ।।
ॐ ह्रीं श्री धीर सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५१।।
आगम ज्ञाता ।
आतम भाता ।
साधु सन्त जय, मरहम नाता ।।
ॐ ह्रीं श्री आगम सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५२।।
महा पयोधी ।
जरा न क्रोधी ।
साधु सन्त जय, निधान बोधी ।।
ॐ ह्रीं श्री महा सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५३।।
उर विराट हैं ।
कहाँ गांठ हैं ।
साधु सन्त जय, महाघाट हैं ।।
ॐ ह्रीं श्री विराट सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५४।।
हृदय विशाला ।
अशुअन माला ।
साधु सन्त जय, जलन न ज्वाला ।।
ॐ ह्रीं श्री विशाल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५५।।
अटल शैल से ।
चलत गैल से ।
साधु सन्त जय, विरत चेल से ।।
ॐ ह्रीं श्री शैल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५६।।
अचल चरित्रा ।
मनस् पवित्रा ।
साधु सन्त जय, अलस अमित्रा ।।
ॐ ह्रीं श्री अचल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५७।।
पुनीत चरणा ।
सुनीत शरणा ।
साधु सन्त जय, विनीत करुणा ।।
ॐ ह्रीं श्री पुनीत सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५८।।
अविचल दीवा ।
सजल सजीवा ।
साधु सन्त जय, संबल नींवा ।।
ॐ ह्रीं श्री अविचल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५९।।
विशद देशना ।
मद प्रवेश ना ।
साधु सन्त जय, राग द्वेष ना ।।
ॐ ह्रीं श्री विशद सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६०।।
कीर्त धवल हैं ।
तीरथ चल हैं ।
साधु सन्त जय, जी गत छल हैं ।।
ॐ ह्रीं श्री धवल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६१।।
सौम्य स्वभावा ।
ओम प्रभावा ।
साधु सन्त जय, द्यु शिव नावा ।।
ॐ ह्रीं श्री सौम्य सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६२।।
दुर्लभ धरणी ।
हाथ सुमरनी ।
साधु सन्त जय, तट वैतरणी ।।
ॐ ह्रीं श्री दुर्लभ सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६३।।
रग विनम्रता ।
मोक्ष मग पता ।
साधु सन्त जय, कुछ अलग छटा ।।
ॐ ह्रीं श्री विनम्र सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६४।।
अनतुल महिमा ।
गुरु कुल गरिमा ।
साधु सन्त जय, चल जिन प्रतिमा ।।
ॐ ह्रीं श्री अतुल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६५।।
भाव अमोला ।
नाव अडोला ।
साधु सन्त जय, दामन कोरा ।।
ॐ ह्रीं श्री भाव सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६६।।
सहजा नन्दी ।
भक्ति न अंधी ।
साधु सन्त जय, स्वर्ण सुगंधी ।।
ॐ ह्रीं श्री सहज सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६७।।
स्वार्थ थान ना ।
आर्त ध्यान ना ।
साधु सन्त जय, आर्द्र आनना ।।
ॐ ह्रीं श्री निस्वार्थ सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६८।।
दृग निर्दोषी ।
मग संतोषी ।
साधु सन्त जय, दुख अवशोषी ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्दोष सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।६९।।
प्रलोभ रीते ।
गुस्सा पीते ।
साधु सन्त जय, रिश्ते सीते ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्लोभ सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७०।।
मन निरोगी ।
तन ना भोगी ।
साधु सन्त जय, सिध वच जोगी ।।
ॐ ह्रीं श्री नीरोग सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७१।।
पथ निर्मोही ।
कब विद्रोही ।
साधु सन्त जय, तप आरोही ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्मोह सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७२।।
सत निष्पक्षा ।
अभिजित अक्षा ।
साधु सन्त जय, सरसुत कक्षा ।।
ॐ ह्रीं श्री निष्पक्ष सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७३।।
निष्पृह नेही ।
देह विदेही ।
साधु सन्त जय, कीरत गेही ।।
ॐ ह्रीं श्री निष्पृह सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७४।।
निश्चल चरिता ।
निश्छल सरिता ।
साधु सन्त जय, कज्जल रहिता ।।
ॐ ह्रीं श्री निश्चल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७५।।
दृढ़ निष्कम्पा ।
उर अनुकम्पा ।
साधु सन्त जय, ‘तर’ घन शम्पा ।।
ॐ ह्रीं श्री निष्कंप सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७६।।
निरामयी हैं ।
आत्म जयी हैं ।
साधु सन्त जय, जित विषयी हैं ।।
ॐ ह्रीं श्री निरामय सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७७।।
भक्त धरापत ।
एक निरापद ।
साधु सन्त जय, गौरव भारत ।।
ॐ ह्रीं श्री निरापद सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७८।।
क्षान्त निराकुल ।
कान्त निरा..कुल ।
साधु सन्त जय, शान्त मिला कुल ।।
ॐ ह्रीं श्री निराकुल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।७९।।
सरगम वाणी ।
मरहम ध्यानी ।
साधु सन्त जय, निरुपम ज्ञानी ।।
ॐ ह्रीं श्री निरुपम सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८०।।
इक निष्कामा ।
सुख दिव शामा ।
साधु सन्त जय, रुख शिव धामा ।।
ॐ ह्रीं श्री निष्काम सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८१।।
विरद नृसींहा ।
जगत् निरीहा ।
साधु सन्त जय, विरहित ‘ही’ हा ।।
ॐ ह्रीं श्री निरीह सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८२।।
मांग न जीमा ।
कद निस्सीमा ।
साधु सन्त जय, नत भट भीमा ।।
ॐ ह्रीं श्री निस्सीम सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८३।।
गुरुकुल टीका ।
अर निर्भीका ।
साधु सन्त जय, शशि गुल फीका ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्भीक सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८४।।
परणति जागी ।
मति नीरागी ।
साधु सन्त जय, रट भी लागी ।।
ॐ ह्रीं श्री नीराग सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८५।।
नीरज गदिया ।
धीरज धरिया ।
साधु सन्त जय, नीरज चरिया ।।
ॐ ह्रीं श्री नीरज सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८६।।
जश निकलंका ।
चरण न पंका ।
साधु सन्त जय, नगन, न रंका ।।
ॐ ह्रीं श्री निकलंक सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८७।।
निर्मद दानी ।
समरस सानी ।
साधु सन्त जय, राखत पानी ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्मद सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८८।।
शाह निसर्गा ।
चाह न स्वर्गा ।
साधु सन्त जय, राह अनर्घा ।।
ॐ ह्रीं श्री निसर्ग सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८९।।
पन्थ निसंगा ।
अन्तर् गंगा ।
साधु सन्त जय, विद सत-भंगा ।।
ॐ ह्रीं श्री निसंग सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९०।।
शीतल वैना ।
भीतर नैना ।
साधु सन्त जय, जी बल जैना ।।
ॐ ह्रीं श्री शीतल सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९१।।
शाश्वत गाथा ।
भास्वत माथा ।
साधु सन्त जय, ईश्वर नाता ।।
ॐ ह्रीं श्री शाश्वत सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९२।।
सार्थक श्रमना ।
साधक कम ना ।
साधु सन्त जय, ज्ञायक रमना ।।
ॐ ह्रीं श्री श्रमण सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९३।।
सत् संधाना ।
हत मनमाना ।
साधु सन्त जय, रत गुण गाना ।।
ॐ ह्रीं श्री संधान सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९४।।
प्रद संस्कारा ।
मद सन्हारा ।
साधु सन्त जय, बढ़ मन मारा ।।
ॐ ह्रीं श्री संस्कार सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९५।।
रट ओंकारा ।
कब भौ भारा ।
साधु सन्त जय, नव भौ पारा ।।
ॐ ह्रीं श्री ओंकार सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९६।।
पत निर्ग्रन्था ।
समरथ नन्ता ।
साधु सन्त जय, सरसुत नन्दा ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्ग्रन्थ सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९७।।
मत निर्भान्ता ।
पथ विश्रान्ता ।
साधु सन्त जय, रत शिव कान्ता ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्भान्त सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९८।।
पंक्ति निरालस ।
अदम्य साहस ।
साधु सन्त जय, हंसा मानस ।।
ॐ ह्रीं श्री निरालस सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९९।।
जगत् निरास्रव ।
विरहित गारव ।
साधु सन्त जय, मुकत पुरा नव ।।
ॐ ह्रीं श्री निरास्रव सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१००।।
निराकार हैं ।
निर्विकार हैं ।
साधु सन्त जय, धाम चार हैं ।।
ॐ ह्रीं श्री निराकार सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०१।।
कल निश्चिन्ता ।
भवि मण चिन्ता ।
साधु सन्त जय, गुण अनगिनता ।।
ॐ ह्रीं श्री निश्चिन्त सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०२।।
युग निर्माणा ।
जग निर्माना ।
साधु सन्त जय, रग निर्वाणा ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्माण सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०३।।
तत्त्व निशंका ।
नत पति लंका ।
साधु सन्त जय, पकंज पंका ।।
ॐ ह्रीं श्री निशंक सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०४।।
अंजन मंजन ।
गत मनरंजन ।
साधु सन्त जय, अलख निरंजन ।।
ॐ ह्रीं श्री निरंजन सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०५।।
तन निर्लेपा ।
संवर क्षेपा ।
साधु सन्त जय, निर्गत झेपा ।।
ॐ ह्रीं श्री निर्लेप सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०६।।
वर उत्कृष्टा ।
अन्तर दृष्टा ।
साधु सन्त जय, मन्तर सृष्टा ।।
ॐ ह्रीं श्री उत्कृष्ट सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०७।।
शिशु सद्या मन ।
मद विद्या बिन ।
दृढ़ श्रद्धा जिन ।
ॐ ह्रीं श्री मुनि विद्या सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०८।।
॥ जयमाला ॥
दोहा
भरी हृदय जिनके दया,
वि…विशेषता पून ।
गुरु विद्या वह अंक हैं,
सारी दुनिया शून ।।
जहाँ सिर्फ चढ़ने का जीना ।
ऐसा गुरुकुल और कहीं ना ।।
धीरज धर नौका खेते हैं ।
आगम नेत्र देख लेते हैं ।।
सार्थक महा’राज’ अनगिनती ।
हृदय विराट समाई धरती ।।१।।
नेत्र विशाल देखते नासा ।
चितवन विजित शैल विश्वासा ।।
अचल, पुनीत, अविचलित चरणा ।
विशद धवल कीरत आभरणा ।।२।।
चांद चांदनी सौम्य न ऐसी ।
परिणत दुर्लभ गत रत-द्वेषी ।।
माँ श्रुत प्रति विनम्र मनुआ है ।
कुछ कुछ हंस मनस् कछुआ है ।।३।।
अतुल आप से, भाव अनूठे ।
सहजानन्द धार उर फूटे ।।
बू न स्वार्थ, निर्दोष नयन के ।
लोभ न, सभी निरोगी मन के ।।४।।
निर्मोही, निष्पक्ष अनोखे ।
निस्पृह नेह, गेह रतनों के ।।
निश्चल दृढ़ निष्कंपित चरिया ।
ज्ञान निरामय बहते दरिया ।।५।।
अखर निरापद पद अभिलाषी ।
सहज निराकुल सुख अधिशासी ।।
पथ निरुपम, निष्काम, निरीहा ।
कद निस्सीम वृत्ति वन सींहा ।।६।।
मग निर्भीक, सजग नीरागी ।
नीरज, निष्कलंक बड़भागी ।।
निर्मद नेत्र नर्मदा गंगा ।
दृग निसर्ग, संज्ञान निसंगा ।।७।।
शीतल उर शाश्वत सुख राही ।
सांचे श्रमण दूर कोताही ।।
अनुसंधान साध उस पारा ।
दृढ़ संस्कार जाप ओंकारा ।।८।।
छव निर्ग्रन्थ, सुहागे सोना ।
मति निर्भ्रान्त, अहो देखो ना ।।
नेक निरालस सारे जग में ।
एक निरास्रव न्यारे मग में ।।९।।
निराकार, निश्चित्य अनूपा ।
जुग निर्माण, ध्यान चिद्रूपा ।।
दृष्टि निशंक, निरंजन, दृष्टा ।
सुन निर्लेप ‘सुमन’ उत्कृष्टा ।।१०।।
छान लिया मैंने जग तीना ।
ऐसा गुरुकुल और कहीं ना ।।
जहाँ सिर्फ चढ़ने का जीना ।
ऐसा गुरुकुल और कहीं ना ।।
दोहा
निराकुलम् गुरु गोद में,
अन्त समय रख शीष ।
आगे आगे मृत्यु के,
चल दूॅं, दो आशीष ।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-जिंयानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
।। आरती ।।
आरती ऋषि, मुनि, यति, अनगार ।
करूँ मैं ले दीपों की थार ।।
आरती पहली बरसा-वास ।
योग तरु मूल साधना रास ।।
उनोदर, वृत्ती परि संख्यान ।
त्याग रस, तनुत्सर्ग, उपवास ।
धन्य शैय्यासन विविक्त धार ।।
करूँ मैं ले दीपों की थार ।
आरती ऋषि, मुनि, यति, अनगार ।
करूँ मैं ले दीपों की थार ।।१।।
आरती दूजी शीत प्रवास ।
योग अभ्रावकाश अभिलाष ।।
आ खड़े चौराहे तब आन ।
थपेड़े मारे जब वाताश ।
ओढ़ धीरज कम्बल मनहार ।।
करूँ मैं ले दीपों की थार ।
आरती ऋषि, मुनि, यति, अनगार ।
करूँ मैं ले दीपों की थार ।।२।।
आरती तीजी ग्रीष्म दुमास ।
योग आतापन दुपहर खास ।।
जा खड़े सूर तप्त पाषाण ।
लू-लपट करती जब अट्ठास ।
निराकुल सुख इक हृदय मंझार ।।
करूँ मैं ले दीपों की थार ।
आरती ऋषि, मुनि, यति, अनगार ।
करूँ मैं ले दीपों की थार ।।३।।
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