चन्द्रप्रभु
लघु चालीसा
=दोहा=
धका-धका शिव ले चले,
कीर्तन पाछी पौन ।
आ पल दो पल के लिये,
नम करते दृग् कोन ।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।१।।
सूली बदली सिंहासन में ।
विष उतरा बातन-बातन में ।
मेंढ़क नामे स्वर्ग विमाना ।
दरवाजा पाँवन खुल जाना ।।२।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।३।।
नागिन नाग लोक अध स्वामी ।
अंजन चोर निरंजन नामी ।।
भगवन् कुन्द-कुन्द इक ग्वाला ।
नाग घड़े निकली, जयमाला ।।४।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।५।।
सोन बन चले पंख जटायू ।
बाजे बजरंगी सुत वायू ।।
नाग नकुल कपि सुलटे पाँसे ।
जीव गिंजाई ढ़ाले ‘साँचे’ ।।६।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।७।।
हो’शियार निशि पानी त्यागी ।
धीवर ‘धी’वर, पानी आगी ।।
सीझे सिंह शिव स्वप्न अनूठे ।
बन्धन चन्दन तड़-तड़ टूटे ।।८।।
एक नहीं सारे के सारे ।
भक्त तुम्हें प्राणों से प्यारे ।
मैं क्या कहूँ, कहे जग सारा ।
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।९।।
दुखिया में भी भगवन् मेरे ।
आन पड़ा हूँ चरणन तेरे ।
लाज हमारी भी रख लो ना ।
जैसा, तेरा अपना छोना ।।१०।।
=दोहा=
सहज निराकुल लो बना,
अपना लो जिनदेव ।
और न बस सपना यही,
पार लगा दो खेव ।।
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