मल्लनाथ
लघु-चालीसा
=दोहा=
जग दोई कोई नहीं,
मेरा सिवा तुम्हार ।
लाज हमारी राखिजो,
हो करुणा अवतार ।।
सिर्फ तेरा सहारा है ।
एक तू ही हमारा है ।।
तुही भक्तों का रखवाला ।
एक तू ही तारणहारा ।।१।।
बुलाया सीता रानी ने ।
आग बदली है पानी में ।।
सति द्रोपदी ने याद किया ।
चीर ने सरहद फाँद लिया ।।२।।
तुझी से आश ये बँधी है ।
तुही विश्वास आखरी है ।।
तुझे रहती फिकर सबकी ।
तभी खोजे नजर सबकी ।।३।।
लगाई नीली आवाजा ।
पाँव लग खुल्ला दरवाजा ।।
टूक दो बेड़ी चन्दन की ।
धन्य बलिहारी वन्दन की ।।४।।
तुम्हीं से रात, दिन हमारा ।
वर्ष, बिन आप छिन हमारा ।।
तुम्हारी ही सर पर छाया ।
बेअसर रहती जो माया ।।५।।
अश्रु-दृग् सोमा क्या निकले ।
नाग दो हारों में बदले ।।
भक्ति अंजन-मैय्या अंधी ।
नाम पाया शिशु बजरंगी ।।६।।
तुम्हें आया दुखड़ा सुनना ।
तुम्हें आया दुखिया चुनना ।।
तुझे न आया ठुकराना ।
तभी जग ने अपना माना ।।७।।
पाँखुड़ी मुख दाबे अपने ।
भक्त मेंढक पूरे सपने ।।
चोर अंजन भी तारा है ।
लिया बस इक जयकारा है ।।८।।
द्वार तेरे जो भी आया ।
बिना माँगे सब कुछ पाया ।।
भक्त इक मैं भी थारा ही ।
ध्यान रख लेना म्हारा भी ।।९।।
‘निराकुल’ कर लो खुद जैसा ।
मैल हाथों का धन पैसा ।।
पलक बस जाकर आता हूँ ।
चुरा छव तव ले जाता हूँ ।।१०।।
‘दोहा’
बालक सा तुतला लिया,
जश बुध-अगम तुम्हार ।
लाख उतारे पार हैं,
आज हमारी बार ।।
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