मुनि-सुव्रत
लघु-चालीसा
‘दोहा’
यूँ ही कहे न जा रहे,
करुणा दया निधान ।
हँसें ‘और-हित’ रोवते,
मुनिसुव्रत भगवान् ।।
होली लगे दिवाली हाथ ।
भक्त न लौटे खाली हाथ ।।
ले लेते कुछ मोती आँख ।।
दे देते तुम ज्योती आँख ।।१।।
आशुतोष तुम, पूर्ण-मुराद ।
जल्दी सुन लेते फरियाद ।।
सति-सीता की सुनी पुकार ।
सर-वर में बदले अंगार ।।२।।
होली लगे दिवाली हाथ ।
भक्त न लौटे खाली हाथ ।।
लेते उर-गद-गद दो बोल ।
आप खजाने देते खोल ।।३।।
आशुतोष तुम, पूर्ण-मुराद ।
जल्दी सुन लेते फरियाद ।।
सति-नीली की सुनी गुहार ।
पाँव लगा खुल पड़े किवाड़ ।।४।।
होली लगे दिवाली हाथ ।
भक्त न लौटे खाली हाथ ।।
बस ले लेते फरसी ढ़ोक ।
हाथ लगा देते दिव-मोख ।।५।।
आशुतोष तुम, पूर्ण-मुराद ।
जल्दी सुन लेते फरियाद ।।
सति-सोमा मुख सुन नवकार ।
घड़े नाग थे, निकले हार ।।६।।
होली लगे दिवाली हाथ ।
भक्त न लौटे खाली हाथ ।।
ले श्रद्धा सुमनों को भेंट ।
भव-बन्धन तुम देते मेंट ।।७।।
आशुतोष तुम, पूर्ण-मुराद ।
जल्दी सुन लेते फरियाद ।।
सति-द्रौपदी दृग् लख जल-धार ।
चीर जा छुआ क्षितिज किनार ।।८।।
देख न सकते नैनन नीर ।
रो देते, लख औरन पीर ।।
दुखड़ा सुनना आता खूब ।
घनी-छाँव तुम, दुनिया धूप ।।९।।
कुछ लेते तो श्री-फल-हाथ ।
बरसाते करुणा दिन-रात ।
‘सहज निराकुल’ तुम दरबार ।
छुआ हुआ मनु बेड़ा पार ।।१०।।
‘दोहा’
भू बस भेजे रश्मिंयाँ,
रहता नभ में सूर ।
बढ़ सूरज तुम, भक्त से,
बाल मात्र नहिं दूर ।।
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