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मुनि श्री १०८ अजय सागर जी महाराज

माँ के संस्कार

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

रात का दीपक चन्द्रमा, दिन का दीपक भान ।
कुल का दीपक पुत्र है, जग का दीपक ज्ञान ॥

राजभवन में वार्तालाप के दरम्यान राजा अपनी रानी से कहता है, हे मदालसे अभी तक आपकी गोद सूनी है ।
विनयावत् मदालसा – हे स्वामिन जिनेन्द्र भगवान की कृपासे आपकी मनो कामना पूर्ण होने वाली, अतिशीघ्र पूर्ण होने वाली है । आप निश्‍चिंत रहें । हे राजन मेरी आत्मिक इच्छा है कि आपसे धार्मिक चर्चा करूँ ।
राजा – हाँ हाँ क्यों नही, प्रसन्नचित हो राजा बोला ।
जिसकी आत्मा जिनधर्म से ओत प्रोत थी ऐसी मदालसा बोली
मदालसा – हे प्राणेश्‍वर लोक में सबसे बड़ा अंधकार, सबसे ज्यादा ज्वलन्त आग, सबसे
ज्यादा विषाक्त विष कौन सा है एक शब्द में उत्तर दीजीये ?
राजा – हजारो सूर्यो के दिव्य प्रकाश से भी जिसका हराना शक्य नहीं ऐसा सघन तिमिर है एक मात्र मिथ्यात्व है । जिसको पानी से परिपूरित मेघ भी नही बुझा सकते ऐसी दीप्तीमान आग का नाम है एक मात्र मिथ्यात्व है । जन्म जन्मान्तरों से प्राणियों को विषाक्त अतिभास का कारण बना ऐसा एक मात्र विष का नाम है एकमात्र मिथ्यात्व ।
मदालसा – अपनी आत्मा जिसके पालन से दुर्गति से छुटकारा पाकर सांसारिक परम्परा से मोक्ष सुख को प्राप्त करती है ऐसे शब्द से प्रारंभ होने वाले ५ दकार कौन से है?
राजा – हे आर्या दान, दया, दमन, दर्शन और देव पूजन ( जो इन पाँच दकारों का पालन करते है वे दुर्गति में नहीं जाते, बल्कि मुक्ति प्राप्त करते हैं ।
१) दान – दान देने वाला व्यक्ति लोभ रूपी पिशाच के वशीभूत नहीं होता, दानी व्यक्ति नियम से दान के फल से निर्वाण को प्राप्त करता है । आहारदान में राजा श्रेयांश , औषधिदान में श्रीकृष्ण, ज्ञानदान में तीर्थंकर आदि, एवं धरसेनाचार्य, कुन्‍द्कुन्‍दाचार्य आदि आचार्य शांतिसागरजी, विद्यासागरजी महाराज ।
२) दया – अहिंसा, रहम, करूणा, एकार्थवाची हैं दया, धर्म सारे धर्मो का सार है । सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह व्रत एक मात्र द‌याधर्म (अहिंसा) के रक्षण हेतु पाले जाते हैं, दया धर्म से मुक्‍ति तथा मुक्‍ति दोनों प्राप्त होते हैं । जीवंधर ने कुत्ते को णमोकार मंत्र सुनाया , पद्‍मरूचि सेठने बैल को णमोकार सुनाया । जज ने कुत्ते के बच्चे को कीचड़ से निकाला , टोडरमल जी ने एक वृध्दा को हास्पिटल पहुंचाया , बाद में विधान के लिए गये ।
३) दमन – अहिंसा के पालनार्थ इच्छाओं को, इन्द्रियों को और मन का दमन करना ।
इच्छा निरोधः तपः
४) दर्शन – सम्यक दर्शन , सम्यक ज्ञान , सम्यक चारित्र इन तीनो की प्राप्ति ही मोक्ष मार्ग है । सम्यक दर्शन के बिना ज्ञान व चारित्र निष्फल है । अत: सम्यक दर्शन की प्राप्ति सर्वोपरी है । सोलह कारण भावनायें दर्शन विशुध्दि मूल है ।
दरश विशुध्द धरे जो कोई, ताको आवागमन न होई
५) देवपूजा – आत्मा की प्राप्ति हेतु परमात्मा को जानना अनिवार्य है । परमात्मा को
जानने के लिए – परमात्मा की उपासना, आराधना आवश्यक है । श्रावक के षट्‍
आवश्यक में देवपूजा मुख्य है ।
मदालसा – हे कृपालु सम्पूर्ण व्रतों का नाश करने वाला, नरक दिखाने वाला, भयंकर काला नाग व पूज्य देव शास्त्र गुरू का अपमान तक कराने वाला, संसार को बढाने वाला ऐसा क्या है ? एक शब्द में उत्तर दीजीये ।
राजा – हे कल्याणी तेरा प्रश्‍न उत्तम है । सम्पूर्ण व्रतों का नाश करने वाला, नरक का व्दार, देव शास्त्र गुरू का अपमान करने वाला, संसार को बढानेवाला एक मात्र शत्रु ‘क्रोध’ है ।
मदालसा – आपको यदि बाधा न हो तो और एक जिज्ञासा और है । मूर्छादि रोगों का कारण, तेज वीर्य बल आदि को नाश करने वाली, संसार में अपकीर्ति लाने वाली क्या है?
राजा – मूर्छादि रोगों का कारण, तेज वीर्य बल नाश कारने वाली संसार में अपकीर्ति लाने वाली वासना की तीव्रता है ।

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