“खो न जाये , शान हमारी है बेटी तुम ऐसा काम नही करना ।
बिटिया रानी तुम परदेश मे रहकर, लाज हमारी सदा बचाये रखना ॥
तुम तो दोनो कुलों का दीपक हो , तुमसे ही शान रही मेरी ।
मेरा सिर शर्म से कभी झुक न पाये , ऐसा काम कभी मत करना ॥”
कहाँ गयी मैनासुन्दरी जिसने पिता से कहा आप जिसके साथ विवाह करेंगे, मैं वही करूंगी, जो मेरे भाग्य में होगा मुझे मंजूर है । मेरी ओर से कोई प्रस्ताव नही रहेगा ।
“देखो इक नारी के जीवन में ये कैसा दिन आया ।
अपने भाग्य पर विश्वास कर पिता का प्रस्ताव ठुकराया ॥
पिता ने जिद में आकर, उसका कोढ़ी से विवाह रचा डाला ।
उस सती ने सिध्दों की आराधना से सुंदर कंचनधारी बनाया ॥”
कहाँ गयी सीता – जिसका जीवन संकटो से भरा रहा । आज तो लड़की मुँह से वर मांगती है भाग जाती है । मंदिर में पूजा, घर घर का इतिहास नही देखता । माँ बाप की सेवा से अपना चारित्र ऐसा बनाओ कि मुनि अपनी लेखनी से तुम्हारा नाम ले सकें । अपनी जुबान पर ले सकें । सागर मे एक लड़की जिसने कहा मेरी ओर से पिता के सामने जीवन में कोई मांग (प्रपोजल) नहीं रहेगा । वो आज जहाँ चाहे मेरा ब्याह करें, या नौकरी कराये, या घर पर बिठाये या पढ़ायें । मुझे मंजूर है । मैं आपको वचन देती हूँ मेरी ओर से कभी कोई अपने जीवन संबंधी,माता पिता के सामने प्रस्ताव नही रहेगा । बूढे माँ बाप वक्त की मार से समय से पहिले बूढे हो जाते हैं । उम्र से अधिक दिखने लगते है । अपनी औलाद अपना सम्मान नहीं करती, उपेक्षा करती है । उससे पहिले बूढ़ा हो जाता है आदमी ।
“उम्र की मार से जवानी में जंग , पानी की मार से लोहे में जंग
भीतर की जंग छुडाना मुश्किल है बन्धुओं, सदा रूलाती हमें सब ये जंग”
हमें अपने अंदर की जंग (मोहरूपी जंग) को धार्मिक संस्कार देकर छुड़ाना है ।
“टूटे हुये दिलो को अरमान देने आया हूँ , इंसान को इंसान बनाने आया हूँ ।
मेरे पास कुछ नही है बन्धुओं , बस काँपते अधरों को मुस्कान देने आया हूँ ॥”
बेटा कब पडौसी बन जाये कोई ग्यारंटी नही, कभी दूसरे के बर्बाद घर देखकर चहकना मत न जाने तुम्हारे साथ कभी ऐसा हो जाये ।
“जो तुम्हारी आँखो के तारे थे वे तुम्हारी उपेक्षा करते हैं ।
कितनी मन्नत माँगी, वरदान माँगे, अब वो अभिशाप से लगते है ॥”
“आज तुम जिस ओहदे पर हो, आज जो तुम्हारी स्थिति है ।
वह तुम अपनी बदौलत नहीं, वह माँ बाप की बदौलत है ॥”
“जिसको देखो वो दगा देता है, दोस्त को देखो तो वो दगा देता है ।
जहाँ देखो वहीं दगा देता है, माँ बाप सिर्फ निस्वार्थ दुआ देता है ॥”
माँ बाप के ऋण से मुँह फेर लेते हैं, कहते हैं तुमने जो किया तुम जानो तुम्हारा काम जाने, वो भूल जाता है जिनसे हम मुँह फेर रहे हैं । उन्होने मेहनत मजदूरी करके, अपना पेट काटकर अपनी खुशी को तिलांजली देकर हमें जन्म दिया, इस योग्य बनाया आज उनसे बात करने की तमीज नहीं रही । एक माँ बाप ४ बेटों को पाल पोष कर योग्य बनाते हैं । पर ४ बेटे माँ बाप को नही पाल सकते । माँ बाप ने संस्कार तो अच्छे दिये, अपनी ओर से पूरी कोशिश की पर कर्म का उदय, पाश्चात्य सभ्यता, शहरी हवा, यह सब हमारे देशका नैतिक पतन हैं । वो जमाना गया…..
“प्रात: काल रघुराई मात पिता को सीस नवाई”
माँ बाप ने अपनी खुशिया न्यौछावर की, अपने अरमानों का गला घोटकर तुम्हारे अरमानो को पूरा किया और तुमने क्या किया है ? “ माँ ” बहुत महत्वपूर्ण है । माँ की महिमा स्वयं अपने आप में महिमाशाली है । तीर्थंकर भी माँ की कोख से आते है, तद्भव मोक्ष गामी हैं फिर भी माँ बाप का आदेश मानते है, जन्म से तीन ज्ञान के धारी होते हुये भी, माँ बाप को दुःख कष्ट न हो, गर्भावस्था में माँ को कष्ट न हो ये ध्यान रखते है । जो आनन्द माँ की गोद में है वो आनन्द स्वर्ग के सुख में नहीं । माँ की गोद सुरक्षित है, स्वामी विवेकानन्द कहते है – जननी जन्मभूमि स्वर्गादि से ज्यादा महत्व पूर्ण है । किसी ने उनसे कहा – आप भगवान का गुणगान नही करते, उससे ज्यादा माँ का गुणगान करते हो ऐसा क्यो ? स्वामी विवेकानन्द जी कहा – जाकर पूछो उनसें जिनकी माँ नही होती । उनसे पूछो माँ क्या होती है ? यदि तुम्हें कचरे में डाल देती तो कौन तुम्हारी जरूरत पूरी करता? कौन माँ बाप बनकर पालता ? भीख माँगते, और कुछ न करते । स्वामी जी ने साफा खोला पत्थर उठाओ – माँ बाप के प्रति उठा प्रश्न पत्थर से कम नही, पत्थर को पेट में बांधो साफे से, ९ घंटे बाद मिलना । ९ घंटे तो दूर ९ मि. के अन्दर आ गया – और उसने कहा – ये लो तुम्हारा पत्थर और ये साफा – ये बाँधकर कैसे जी सकूंगा ? स्वामीजी ने कहा जिस पत्थर को लेकर तुम ९ मि. न घूम सके वो माँ ९ माहतक तुम्हारे वजन को लेकर घूमती रही । बाप बनना आसान है, माँ बनना कठिन है ।
आज माँ नही बाप का नाम चलता है, कोर्ट कचहरी से बेटा बाप को मिलता है, माँ को नहीं । नाम के साथ बाप का नाम होता है माँ का नहीं ।
एक बार नारायण, कृष्ण ने कहा- रूकमणी यशोदा माँ की बहुत याद आ रही है । रूकमणी ने कहा ठीक है जितना प्यार आपकी माँ करती है उतना तो मैं भी करती हूँ । आपको मैं नहीं, हमेशा यशोदा माँ दिखती है । यशोदा में ऐसा क्या हैं जो मुझमें नहीं है?
कृष्ण ने कहा जो यशोदा में है वो तुम में नहीं है । उत्तर बाद मे समझ आ जाऐगा ।
रूकमणी ने कहा कृष्ण दूध रखा है । (कृष्ण ने दूध पिया ही नहीं) वह सो गयी । पत्नी गिलास रखकर जा सकती है पर माँ, कन्हैया जब तक दूध नही पीता तब तक माँ सोती नही थी, जाती नही थी, दूध पिलाकर ही जाती थी । सुबह कृष्ण ने कहा एक बार माँ दूध लेकर आयी, मेरी थकान वश मेरी नींद लग गई वो रात भर खड़ी रही, कि कन्हैया की नींद खुलेगी तब उसको दूध पिलाकर ही जाऊंगी । पत्नी दूध रख कर जा सकती है पर माँ दूध पिला कर ही जाती है । पत्नि पत्नि होती है माँ माँ होती है ।
माँ बाप गरीब हो जाये बीमारी में भी दुखी नहीं होते । दुखी दो बार ही होते हैं १) बेटी पराये घर जाती है २) बेटा मुँह मोडता है । माँ चार बेटों को एक चूल्हे में खाना बनाकर खिलाती है, पर चार बेटे एक चूल्हा नही जला सकते, ४ चूल्हे जलते हैं । बहू ने कहा ये हमेशा खाँसते रहते हैं मुझे शर्म लगती है । औलाद के आगे माँ बाप हाथ बाँधे चुपचाप खड़े है उनको कितनी सी जिन्दगी है, उनकी बनेगी हमारी बिगड जायेगी । वृध्दावस्था थी कहाँ जाये सोचा, बेटे के साथ रहकर अंतिम समय गुजर जायेगा । बहु के तिरस्कार से तंग आ गया था । एक दिन बहू ने बेटे से कहा – बूढ़े को आश्रम, वृध्दाश्रम भेज दो । बाप ने सुना सोचा बेटा मुझसे कहे उसके पहिले मैं घर छोड़ देता हूँ । रातभर सोचता रहा सुबह बहू ने अपने पति से कहा -उसे निकाल क्यों नही देते ? आश्रम भेजो । बेटे ने बाप से कुछ कहना चाहा, तभी पिता ने कहा – जो तुम कहना चाहते हो मैं समझता हूँ । तेरा जन्म किराये के घर में हुआ था तू आज महल में है, तू खुश रहे, सदा सलामत रहे मैं जाता हूँ ।
“वृद्धावस्था भारत की शान नही, कलंक है अभिशाप है ।
अनाथ आश्रम कलंक है , अनाथ हो गये माँ बाप हैं ॥”
जिसके माथे पर पारसनाथ का हाथ है वो कभी अनाथ नही हो सकता । त्रिलोकी नाथ के पास अनाथ नही है, दयालु दीन बंधु के लम्बे हाथ हैं । जब तुम बीमार थे वे ही बाप थे, जो रात भर जागता रहा, दूध पिलाता रहा, तुम्हें अपने हाथ का सहारा देकर सुलाता रहा ।
“ तुम बचपन में बिस्तर गीला करते थे ।
अब तुम माता पिता की पलके गीला करते हो ॥”
पत्नि का चुनाव हो सकता है, माँ बाप का चुनाव नहीं हो सकता । माँ बाप चुनने से नहीं, पुण्य से मिलते है । बहु ने कहा अब तो जाओ । वृध्द ने अपने कपड़े की गठरी उठाई साथ में कम्बल ओढने वाला वह उठा ही रहा था, बेटे से बोला मैं सबकुछ छोडकर जा रहा हूँ, ये कम्बल और ये कपड़े बस ले जा रहा हूँ, तुम देख लो । पोता (नाती) बोला – नहीं बाबा, ये कम्बल नही ले जा सकते । वृध्द बोला – बेटा तो बेटा, पोता भी गजब का हैं । बेटे से भी बढ़कर न जाने इस कम्बल में क्या रखा है, जो नही ले जाने दे रहा है ।
बेटा – देख बेटा ये मेरा ही कम्बल है फटा है तू इसका क्या होगा ?
तुझे कम्बल में ही संतोष है तो ले ये कम्बल, मैं बिना कम्बल से रह लूंगा ।
पोता (नाती) दौड़कर आया कम्बल हाथ से छीना भीतर गया और हाथ में कैची ले कर आया, और पोते ने उस कम्बल को बीच में से कैची से काटकर दो टुकडे कर दिये । वृध्द
चिल्लाया – ये क्या करता है तू , मेरा ओढने का एक सहारा था । तूने बीच में से दो हिस्से क्यों किये , अब मैं क्या ओढूँ ? मेरे क्या काम का रहा ? बता तूने क्यों किये कम्बल के दो टुकड़े ? बेटा तो बेटा, सेर पर तू तो सवा सेर निकला । उसने आधा कम्बल दादा को दे दिया आधा अपने पास रखा। बेटा दे दे आधा कम्बल भी दे दे तू क्या करेगा इस फटे कम्बल का दे दे । बेटा और रोने लगा ।
पोता बोला – आधा कम्बल आपके लिए , आधा कम्बल मेरे डेडी के लिए ।
वृध्द – बेटा तेरे डेडी के पास एक से बढकर एक कम्बल है , कम्बल की क्या कमी हैं ?
पोता – नही दादू ये आधा कम्बल मुझे याद दिलायेगा कि, जब मैं डेडी को घर से निकालूंगा तो, तब ये आधा कम्बल उनको देने के काम आयेगा ।
“सौ फूल कम है एक दुल्हन सजाने के लिए
एक फूल काफी हैं जिन्दगी भर सुलाने के लिए”
एक वृध्दा थी जिसका जवानी में पति का वियोग हो गया । नव जात शिशु का जन्म होते ही पति का स्वर्गवास हो गया । गाँव में मेहनत मजदूरी कर बेटे को पालन पोषन कर बड़ा किया, शहर में पढ़ने भेजा । बेटा पढ़ने में अच्छा था, संस्कार देने की कोशिश करती रही । पर कर्म का उदय आता, बेटा भी भूल जाता है, कि माँ बाप ने कैसे करके किन मुसीबतो में पेट काटकर पढ़ाया । उसने सोचा बेटे को डाक्टर बनाऊँगी, गहने जेवर बेचती रही पढ़ाती रही । बेटा शहर पढ़ने गया, माँ ने जाते समय बेटे से कहा – बेटे तुम जाओ, चिन्ता मत करना पैसों की, मन लगाकर पढ़ना, तुम अच्छे बेटे हो, डाक्टर बनना है लोगो की सेवा करना है । तुम जाओ मैं पैसा, भेजती रहूंगी । माँ बर्तन साफकर, मजदूरी करके पैसा भेजती रही । बेटा ५ साल बाद डाक्टर बन गया । माँ बीमार हो गयी । बेटा डाक्टर बनने के बाद माँ को भूल गया कि गाँव में माँ हैं और उसी शहर में शादी कर ली एक मेम से । बेटे की शादी हो गई माँ को पता ही नही चला ।
माँ बीमार पड़ गई, किसी का सहारा नही रहा कोई खिलाने, पिलाने वाला उठाने बिठाने वाला न रहा । बेटे का पता मालूम नही, जाने के लिए पैसा नही, पडोस के लोगों ने पता किया बेटा कहाँ है, क्या पता है । यहाँ-वहाँ से पैसा इकट्ठा कर, लोगो ने उसको बेटा का पता लिख कर दे देकर टिकिट निकालकर गाडी में बिठा दिया ।
शहर में पहुँचकर आटो वाले को पता लिखा कागज दे दिया और आटो वाले ने एक विशाल बंगले के पास आटो खड़ा कर दिया । कहा, ये बँगला डाक्टर साब का है, जाओ अंदर । गेट पर छोडकर आटो वाला चला गया । इतनी बड़ी कोठी देखकर आँखे फटी की फटी रह गई । इतनी विशाल कोठी देखकर जहर का घूट पी लिया घंटी बजायी – दरवाजा खुला । बेटे माँ को सामने देखते ही दंग रह गया न खुशी.. तुम कैसे आ गई । अपनी पत्नि से कहा – गाँव से माँ आई हैं । बहू ने कहा – रहने आई है कि देखने ? बेटा चुपचाप खडा रहा । माँ ने कहा – बेटा बीमार थी कोई देखने वाला नही, अत: बीमार थी इसलिए तेरे पास आ गई हूँ । इलाज हुआ, ठीक हो जाने के बाद बेटे ने कहा तुम गाँव चली जाओ । माँ मन मसोस कर रह जाती है, जाने को तैयार होती है । बेटा माँ से कहता है माँ पहले इलाज का बिल चुका जाओं, फिर जाओ ।
आज पश्चिमी हवा कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई है ।
हमारी संतान को माँ से ज्यादा प्यारी दौलत हो गई है ॥
कहा हैं माँ का दवाई का खर्च माँगना जरूरी लगता है ।
क्या करें सिटगरे का धुँआ जरूरी लगता है ॥
एक हाथ में बिल लिये सामने मेरा दिल खड़ा है । माँ की साँस रूक गई, सोचा था ये भी दिन देखना था मुझको । वापिस जाने के लिए किराये के पैसे नही हैं, बिल कैसे चुकाऊँ? माँ ने कहा एक माँ अपने बेटे को मजदूरी करके डाक्टर बना सकती है तो क्या तेरा बिल नहीं चुका सकती । बेटा आँखे तभी मूँदूगी जब तेरा बिल चुकाऊंगी । माँ यदि अपने कोख में ९ माह रखने का बिल, अपने दूध का कर्ज माँगे, तो दुनिया की सारी दौलत भी उसका कर्ज नहीं चुका सकती ।
एक बूँद आँसू की सागर से बढकर होती है ।
सब कुछ बेकार है अगर माँ तेरे कारण रोती है ॥
माँ रोती करती अपनी किस्मत को कोसती अपने कर्म का फल जानती हुई सीने पर पत्थर रख कर गाँव चली जाती है । कुछ दिनो में गाँव से समाचार आता है कि माँ का स्वर्गवास हो गया । चिता के पास एक पत्र रखा है उसमें लिखा है – साथ मे रूपये भी है –
बेटा तू सदा सलामत रहे ये है सदा दुआ मेरी ।
तेरा जीवन खुशियों से भरा रहे, यही कामना है मेरी ॥
अपने इलाज का बिल , यहीं रखकर जाती हूँ ।
जिन्दा में तू नहीं आ सका, अंतिम संस्कार करने बुलाती हूँ ॥
हर दिन इस तरह बिताओ, कि रात को चैन की नींद सो सके ।
हर रात इस तरह बिताओ, कि जागो तो किसी को मुँह दिखाने से शरमाना न पडे ॥
जवानी को इस तरह बिताओं कि बुढ़ापे में पछताना ना पड़े ।
और बुढ़ापे को इस तरह बिताओ, कि किसी के सामने हाथ फैलाना ना पडे ॥