फूल कभी दोबारा नही खिलते, जन्म कभी दोबारा नही मिलते ।
मिलते हैं हजारो लोग मगर, हजारो गल्तियाँ माफ करने वाले, माँ बाप नही मिलते ॥
“फिक्र में बच्चे के कुछ ऐसे ही धुल जाति है माँ ।
नौजवाँ होते हुये भी वह, बूढ़ी हो जाति है माँ ॥
रूह के रिश्तों की गहराईयों को देखिये बन्धुओं ।
चोट लगती है हमें और चिल्लाती है माँ” ॥
जिन्दगी के तीन पडाव हैं बचपन, जवानी, बुढापा इसमें ही आदमी की जिन्दगी गुजरती है । जरूरी नहीं कि तुम्हें तीन ही मिले । कभी भी कुछ भी हो सकता है, सब अनित्य है । जो बचपन नहीं सुधार सके, वो जवानी सुधार ले, जो जवानी नही सुधार सके, वे बुढ़ापा सुधार ले और यदि बुढ़ापा न सुधार सको तो सिधार जा ।
बचपन-माँ, जवानी-महात्मा, बुढ़ापा-परमात्मा, अर्थ जानना । बचपन में माँ का सहारा निर्विकरी । जवानी – महात्मा बनने के लिये सहनशील होती हैं । बुढ़ापा – सबसे मुक्ति अंतिम पडाव ।
बचपन में माँ की शरण छोड देता है, जवान बेटा भी माँ की उपेक्षा करता है । भूल जाता हैं कि माँ ने किस मुसीबत में मुझे जन्म दिया –
“नौ दस माह कोख में रखकर माँ ने मुझको पाला था ।
किन्तु जन्म देकर फिर भवसागर में डाला था ॥
देकर के जीवन की लौकिक शिक्षा, मुझे बड़ा कर डाला ।
कैसे उनके गुण गाऊँ मैं, जिसने अपना सब कुछ दे डाला ॥”
मंदिर में भगवान होते हैं लेकिन घर नर्क हो जाता है । हम भूल जाते है कि घर में भी भगवन आत्मा है, जिसने मुझे रचा, जन्म दिया और पाला । तीर्थंकरो ने सबसे पहले मोक्ष का नही गृहस्थ, सदगृहस्थ का उपदेश दिया । कौरव जैसे १०० बेटे वो गौरव नही दिला पाते जो एक तीर्थंकर दिला देते हैं । वो ओंकार, जो मोक्ष दिलाता है ।
“ संसार सबको मिलता है, संसार मे जीना क्या है सीख जाओ ।
भगवान बनना कठिन है पर श्रावक बनना सरल है सीख जाओ ॥
कामदेव बनना कठिन है पर, श्रेयांश राजा तो बन जाओ ।
चंदन बाला न बन सको तो, रानी चेलना तो बन जाओ ॥”
सोचो राजा श्रेणिक के जीवन में सती चेलना न आती तो क्या राजा श्रेणिक तीर्थंकर प्रकृति बंध कर पाते – कभी नही कर पाते । क्यों कि वो बौध्द मतावलम्बी थे । अभय कुमार को सन्मार्ग पर लगाया – सच्चा धर्म, सच्चे देव, सच्चे गुरू क्या हैं यह बतलाया । जिन्दगी से माँ की महानता, माँ के महत्व को निकाल दोगे तो क्या बचेगा ?
ये बुराई माँ की उपेक्षा आजकल अधिकतर घरो में है ।
पंचम काल का स्वर्ग है यदि-कि बुढ़ापे तक बेटे आज्ञाकारी बने ।
“बड़े खुशनसीब होते हैं वो जिनके जीवन में माँ होती है ।
बड़े बदनसीब होते हैं जिनके कारण – माँ रोया करती है ॥”
तीन बहुमूल्य रत्न माँ का प्यार, माँ की शिक्षा, माँ का बलिदान अपने सुख का । माँ का अनोखा प्यार, माँ जैसा प्यार जगत में कोई नही दे सकता । माँ का नहलाता माँ का प्यार है । आँख का मैल निकाले, शरीर का मैल निकालने पर काजल का टीका लगाना माँ का प्यार है । चोट लग जाने पर मन दुखित हो जाता है, इंजेक्शन लगाना माँ का प्यार है, कितना ही तूफान आये, शोर आये पर माँ की नींद नही खुलती । यदि बच्चे की गुनगुनाहट होती है तो नींद खुल जाती है । खुद मारे तो कोई बात नही यदि कोई दूसरा मारे या आँख उठाकर भी देखे तो सामने बचाने आ जाती है । मृगपति के आगे आ जाती है, बच्चे को बचाने की खातिर ।
सिंह ने गाय को पकडा
गायों का झुण्ड जंगल से शाम को अपने चरवाहे के साथ अपने-अपने घरो को लौट रहा था । एक गाय कुछ पीछे अकेली रह गई । जंगल में उस गाय को शेर ने पकड लिया उसका भक्षण करना चाहा । गाय ने कहाँ तुम मुझे खा लेना, मैं मना नही करती पर मुझे थोडे देर की मोहलत दे दो । मेरा बच्चा दिन भर का भूखा है, मेरी राह देखता होगा । मैं उसे अंतिम बार दूध पिला कर वापिस आ जाऊँगी । मैं वचन देती हूँ कि मैं शीघ्र ही वापिस आ जाऊँगी । शेर ने सोचा ये ज्यादा विनय कर रही है, ये मनुष्य नहीं जो वादे से मुकर जाये । ये वापिस आने का कह रही है तो वापस आयेगी । शेर बोला – ठीक है अपने बच्चे को दूध पिलाकर आओ । मैं इंतजार करूंगा ।गाय भारी मन से अपने बच्चे को दूध पिलाने जा रही है धीरे धीरे सिर झुकाये आँखो में आँसू कि अंतिम बार अपने बच्चे को दूध पिलाऊँगी । बछड़ा देखता है कि माँ आ रही है पर माँ जैसे उत्साह के साथ रोज दौड कर आती थी, मुझे अपने आँचल से लगाती थी । आज वो उत्साह नही, नजरे भीगी व नीची है क्या बात है । जैसे ही गाय आई उसने बछड़े से कहा तुम जल्दी दूध पिओ, मुझे जल्दी जाना है ।
बछड़े ने कहा- माँ क्या बात है रोज तुम जिस उत्साह से रोज आती थी मुझे अपने से लिपटकर प्यार करती थी पर आज क्या बात है ? आज तुम ऐसा क्यों कह रही हो, बताओ क्या बात है ?
गाय ने कहा कोई बात नही तुम जल्दी से दूध पिओ ।
बछड़े ने कहा नही माँ जब तक तुम नही बताओगी क्या बात है, तब तक मैं दूध नही
पिऊँगा । जरूर कोई बात है । तुम्हें उस दूध की सौगंध जो तुमने मुझे पिलाया था,
बताओं माँ बताओ ।
गाय ने सारी घटना बता दी कहाँ मैं वचन दे कर आयी हूँ । मुझे जाना है ।
बछड़े ने कहा – ऐसा नही हो सकता, मेरे रहते शेर तुम्हारा भक्षण करें, कदापि नहीं, ऐसा कभी नही होगा ।
गाय ने कहा – नहीं तुम यही रहो मैं जाती हूँ ।
बछड़े ने कहा नही माँ तुम यहीं रूको मैं जाती हूँ ।
दोनो एक दूसरे का पीछे करते जंगल की और जा रहे है । शरे देखता है, अरे ये
गाय के साथ बछड़ा, एक के साथ एक फ्री, मजा आ जायेगा । बछड़े का ताजा ताजा मांस मिल जायेगा । बछड़े ने कहा हे वनराज तुम्हें मेरी माँ से पहले मेरा भक्षण करना है । गाय ने बछड़े को पीछे करते हुये कहाँ नहीं वनराज तुम्हे पहले मुझे खाना है । मेरे रहते मेरे बच्चे को नहीं छू सकते, ये अभी नादान है । बछड़ा ने माँ को पीछे किया और उनके आगे आ गया । दोनो एक दूसरे को पीछे कर आगे आ जाते ।
शेर ने देखा दोनो एक दूसरे को बचाने में लगे है । कभी गाय आगे, कभी बछड़ा । दोनो का एक दूसरे पर समर्पण देखा और शेर ने कहा- तुम माँ बेटे का एक दूसरे के प्रति समर्पण ममत्व भाव देख कर मेरा मन भर गया । और मैं तुम दोनों को अभयदान देता हूँ । ऐसी निस्वार्थी वात्सल्य भावना मैंने अभी तक नहीं देखी ।
बड़े अभागे होते हैं वे लोग, जिनके गाल पर माँ के चाँटे नही पड़े । बड़े अभागे वो
जो अनाथ की मुहर लगवा लेते है ।
“कभी पुचकारती कभी दुत्कारती, कभी दुलारती है माँ ।
कभी सहलाती कभी सुलाती, कभी फटकारती है माँ ॥
माँ के पैरों में जन्नत, मार में प्यार, गोद में जन्नत का सुख है ।
खुद गीले मे सोये, बच्चे को सूखे मे सुलाये, ममता की देवी का सुख है ॥”
माँ की चरण धुली मिल जाये तो माथे से जरूर लगाना बंधुओं ।
“माँ के उपकारो को कोई चुका ना पायेगा ।
कौन है जो सूरज के व्यर्थ दीपक जलायेगा? ॥”
कहते हैं मंदिर में चंदन लगाने वाला, गन्दोधक लगाने वाला यदि माँ बाप को दुत्कारता है तो वो बेकार है । माँ की चरण धूली गन्धोदक से कम नहीं । मंदिर में पूजा करने वालों, माँ बाप को दुत्कारते हो, भगवान को तो पोछते हो, माँ बाप को आँसू देते हो । विचार करो एक समय वह था जब भावज (भाभी) को माँ का दर्जा दिया जाता था – रामायण का प्रसंग-सीता हरण के पश्चात –
राम वृक्षों से, लक्ष्मण से पूछते हैं,ये कुण्डल सीता के हैं, ये हार सीता के हैं, ये पायल सीता के हैं, कंघन सीता के है ?
नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले ।
नूपुराण्यैव जानामि नित्यं पादाभिवन्दनात ॥
हाँ भैया नुपुर सीता भावज के हैं मैं रोज चरणों की वन्दना करता था । ये है माँ के प्रति श्रद्धा कभी आँख उठाकर नहीं देखा । माँ के हाथ की सूखी रोटी भी पकवान सी लगती है, उसमें पानी भी जूस जैसे लगता है । कहा है-
“रास्ता चलना सही चाहे फेर हो, काम करना सही चाहे देर हों ।
भोजन करना माँ के हाथ का, चाहे जहर हो, सलाह लेना भाई से, चाहे बैर हो ॥”
आज स्थिति खराब होती जा रही है । एक बुढ़ी अम्मा (माँ) थी जिसके सिर से पति का साया उठ चुका था उसके दो बेटे थे । उसने अपने पति की पेंशन से गुजारा कर बच्चों को पाल पोसकर बड़ा किया । बडा बेटा चाहता था माँ की सारी पेंशन मुझे मिले । छोटा बेटा भी चाहता था कि माँ की सारी पेंशन मुझे मिले । बड़ा बेटा भी चाहता है, छोटा बेटा भी चाहता है । दौलत सभी चाहते हैं – माँ बाप को नहीं चाहते कि ये मेरे हो जाये । माँ बाप पर कोई अधिकार नही चाहता, मेरे हो । निर्णय हुआ – पेंशन आधी आधी बांटी जायेगी, १५ दिन बड़े बेटे के यहाँ, १५ दिन छोटे बेटे के यहाँ रहेगी ।
बुढापे में माता पिता का सपना तब टूट जाता है
जब दौलत के साथ माता पिता का बटवारा हो जाता है ।
एक माँ दो बेटों को पाल कर बड़ा कर सकती है । पर दो बेटे माँ का बँटवारा कर पालते हैं । क्या एक बेटा ऐसा नही जो कह सके कि मुझे दौलत नही माँ चाहिये । मुझे पेंशन नही माँ ही मेरी दौलत है । दीवार पिक्चर… मेरे पास मकान, बँगला, गाडी हैं तुम्हारे पास क्या हैं ? दूसरे ने कहा मेरे पास मेरी माँ हैं । स्थिति खराब – निकम्मी संतान स्वार्थ सिध्दकर माँ बाप को भूल जाती है । इस देश में वो बेटे भी थे- श्रवणकुमार-
वो श्रवण कुमार जिसका नाम माता पिता की सेवा-करने में सबसे पहिले याद किया जाता है । जिसने अंधे माँ बाप को डोली बनावर खुद उठाकर तीर्थयात्रा करवाई ।
नारायणकृष्ण – नारायण कृष्ण जन्म देने वाली माँ के साथ-साथ-पालन करने वाली माँ को भी सम्मान देते थे वंदना किया करते थे । बेटी पिता से पूछती थी कि आप जगत के नाथ हैं ऋषभदेव हैं, प्रजापालक, प्रजापति, जगतश्रेष्ठ है क्या आपको भी कभी किसी के सामने कभी माथा झुकाना पड़ेगा ? ऋषभदेव कहते हैं – हाँ बेटियों जहाँ तुम्हारा विवाह, जिसके साथ होगा उनके आगे मुझे भी अपना माथा झुकाना पड़ेगा । ब्राह्मी सुन्दरी दोनों ने आजीवन विवाह न करने का संकल्प ले लिया । आज तो वह स्थिति नहीं रह गई । आज तो माँ – बाप को अपमानित करती है उनका सिर झुकवाती है, समाज में रहने योग्य नही छोडती ।
“बेटी जब घर से भाग जाती है, माता पिता की दशा का विचार करो ।
शर्म से आँखे झुक जाती हैं, लगता है कि पानी में डूब मरो ॥
सारी समाज में थू-थू होती, हृदय छलनी हो जाता है ।
जिन्दगी वीरान हो जाती है, घर मरघट बन जाता है ॥”
माँ बाप बेटियों से क्या चाहते हैं ?