पूजन आचार्य श्री समय सागर जी
मुनि श्री निराकुल सागर जी द्वारा विरचित
सूरि समय सागर भगवन् की,
हम पूजन करने आये ।
चरणों में दृग-जल लाये ।।
दृढ़ निमित्त सम्यक् दर्शन की,
सूरि समय सागर भगवन् की,
हम पूजन करने आये ।
चरणों में दृग-जल लाये ।।स्थापना।।
चल तीरथ की ।
ध्रुव कीरत की ।
सुत श्री मति की ।
जल जैसी परिणति कंचन की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में घट जल लाये ।।जलं।।
प्रतिभारत की ।
निः स्वारथ की ।
शिव सारथ की ।
तन चन्दन सुंगध सुवरण की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में चन्दन लाये ।।चन्दनं।।
हंसा मत की ।
ध्वंसा मद की ।
वंशा यति की ।
धन्य सातिशय अक्षत पुन की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में अक्षत लाये ।।अक्षतं।।
धीरज धृत की ।
नीरज पथ की ।
दिग्गज भट की ।
यथा जात शिशु भांत सुमन की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में फुल्वा लाये ।।पुष्पं।।
समता धन की ।
मन पावन की ।
दृग सावन की ।
रस भी भीगे स्वर, व्यंजन की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में व्यंजन लाये ।।नैवेद्यं।।
दुख मोचन की ।
मनमोहन की ।
जग रोशन की ।
तले न तम धन ! दीपक मन की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में दीवा लाये ।।दीपं।।
विद्या शिख की ।
चन्दा नख की ।
जेता अख की ।
थम मन मृग कस्तूर मिलन की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में श्री फल लाये ।।धूपं।।
श्रेयस पथ की ।
तेजस मथ की ।
जै बस अथ की ।
सुन गिर गिरा नारियल पन की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में श्रीफल लाये ।।फलं।।
निर् आकुल की ।
वसुधा कुल की ।
मां आंचल की ।
चाह न शिव, न चाह सुरगन की ।
सूरि समय सागर भगवन् की ।
हम पूजन करने आये ।
चरणों में जल-फल लाये ।।अर्घं।।
जयमाला
दोहा
गुरु निस्पृह निज भांत हैं,
स्वारथ साधे लोक ।
हित सु…मरण आ दे चलें,
श्री गुरु चरणन ढ़ोक ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
सूरि समय सागर जश गाओ ।
मानव जीवन धन्य बनाओ ।।
मुखड़ा शरद पूर्णिमा चन्द्रा ।
सुत मल्लप्पा श्री मति नन्दा ।।
बढ़ सूरज तेजस्वी माथा ।
वीर, नन्त, विद्याधर भ्राता ।।
कण्ठ शंख, गज रेखा चरणा ।
भगिनी शान्ता और सुवरणा ।।
बाहर अन्दर ।
सत् शिव सुन्दर ।
मुखड़ा चन्दर ।
मन करता बस देखे जाओ ।
सूरि समय सागर जश गाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
सूरि समय सागर जश गाओ ।
मानव जीवन धन्य बनाओ ।।१।।
सीख भ्रात विद्या नवकारा ।
तज संसार सिन्धु जल खारा ।।
सात बदाम, काम भी भेंटा ।
लिया मन तरंगों को बैठा ।।
थपकी दे दे चांद सुलाते ।
सूरज उठे, प्रभाती गाते ।।
चल श्रुत मंदिर ।
शील समुन्दर ।
भींगा अन्तर् ।
ले जल लोचन चरण धुलाओ ।
सूरि समय सागर जश गाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
सूरि समय सागर जश गाओ ।
मानव जीवन धन्य बनाओ ।।२।।
क्रमशः इक इक कदम बढ़ाया ।
क्षुल्लक, एलक, मुनि पद पाया ।।
ज्ञान-ध्यान छू चाले फिर के ।
फिर आये कब गुमान फिरके ।।
गुरु भासा लख चर्या थारी ।
तुम निर्यापक पद अधिकारी ।।
गुण-गण आगर ।
निश-दिन जागर ।
कल शिव नागर ।
सादर श्रृद्धा सुमन भिंटाओ ।
सूरि समय सागर जश गाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
सूरि समय सागर जश गाओ ।
मानव जीवन धन्य बनाओ ।।३।।
शान्ति ,वीर, शिव गुरु-परिपाटी ।
ज्ञान ‘सिन्धु’ विद्या कर-पात्री ।।
पद-यात्री फिर नाम तुम्हारा ।
शिरोमणि अध्यातम धारा ।।
धरा गगन जयकारा गूँजा ।
तुम जैसा आचार्य न दूजा ।।
धर्म उजागर ।
ज्ञान दिवाकर ।
विद्या सागर ।
सहज ‘निरा-कुल’ बनने आओ ।
सूरि समय सागर जश गाओ ।।
आओ ‘री आओ ।
सखि ! आओ ‘री आओ ।।
सूरि समय सागर जश गाओ ।
मानव जीवन धन्य बनाओ ।।४।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा
गुरु गुरूर से लें बचा,
सही छांव ही दाब ।
हृदय कमल भवि ! खिल उठें,
सार्थक ‘सूर’ प्रभाव ।।
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