पूजन आचार्य श्री समय सागर जी
मुनि श्री निराकुल सागर जी द्वारा विरचित
लगे न डर काली रातों में ।
दिया हाथ क्या गुरु हाथों में ।।
गुरु देते आशीष न थकते ।
भेद धनी, निर्धन ना रखते ।।
चोट हमें लगती, गुरु चीखे ।
बिन अपने गुरु सपने फीके ।।
रहते माँ से साथ हमेशा ।
जैसे गुरु कोई ना वैसा ।।स्थापना।।
जिऊॅं जब तक करूॅं गुरु जी,
नित्य सेवा आपकी ।
भुला तुमको हुई भारी,
पालड़ी यह पाप की ।।
अश्रु जल क्या ? गुरु चरण में,
कम निछावर प्राण भी ।
गुरु कृपा मिलती दिखे,
दो वार स्वर्ग विमान भी ।।जलं।।
शून मैं तुम अंक, तुम बिन,
कहो हूँ किस काम का ।
फूल बिन खुशबू कहो क्या,
है नहीं बस नाम का ।।
गंध घट क्या ? गुरु चरण में,
कम निछावर प्राण भी ।
गुरु कृपा मिलती दिखे,
दो वार स्वर्ग विमान भी ।।चन्दनं।।
शुरु नहीं गुरु बिना जीवन,
साक्ष वेद पुराण हैं ।
मैं नहीं इकलव्य कहता,
मूर्ति गुरु भगवान हैं ।।
शालि धाँ क्या ? गुरु चरण में,
कम निछावर प्राण भी ।
गुरु कृपा मिलती दिखे,
दो वार स्वर्ग विमान भी ।।अक्षतं।।
गुरु पिता गुरुदेव माता,
गुरु बहिन भाई सखा ।
सिवा गुरु के मिटा सकता,
कौन किस्मत का लिखा ।।
पुष्प सुर क्या ? गुरु चरण में,
कम निछावर प्राण भी ।
गुरु कृपा मिलती दिखे,
दो वार स्वर्ग विमान भी ।।पुष्पं।।
रास्ते जब बन्द सब तब,
गुरु दिखाते राह हैं ।
माँ, महात्मा ले खड़े सिर,
आप और गुनाह हैं ।।
थाल चरु क्या ? गुरु चरण में,
कम निछावर प्राण भी ।
गुरु कृपा मिलती दिखे,
दो वार स्वर्ग विमान भी ।।नैवेद्यं।।
जा पतंग लगी गगन से,
हाथ श्री गुरु डोर दे ।
खे रहे गुरुदेव नैय्या,
क्यूं न भव जल छोर दे ।।
दीप घृत क्या ? गुरु चरण में,
कम निछावर प्राण भी ।
गुरु कृपा मिलती दिखे,
दो वार स्वर्ग विमान भी ।।दीपं।।
नजर गुरु ने क्या उठाई,
रोशनी इक छा गई ।
दिया क्या आशीष गुरु ने,
चमक चेहरे आ गई ।।
धूप दश क्या ? गुरु चरण में,
कम निछावर प्राण भी ।
गुरु कृपा मिलती दिखे,
दो वार स्वर्ग विमान भी ।।धूपं।।
पा कृपा कुम्हार गुरु लो,
बनी माटी गगरिया ।
दृष्टि गुरु शिल्पी पड़ी क्या,
बनी लाठी मुरलिया ।।
मधुर फल क्या ? गुरु चरण में,
कम निछावर प्राण भी ।
गुरु कृपा मिलती दिखे,
दो वार स्वर्ग विमान भी ।।फलं।।
नीर गंगा, मलय चन्दन ।
अछत अक्षत, फूल नंदन ।।
चारु चरु घृत दीप माला ।
धूप अर फल अर्घ्य न्यारा ।।
तुम चरण में भेंटता हूॅं ।
धन्य पुण्य समेटता हूँ ।।
समय सागर छटे सूरी ।
चाह वर शिव पटे दूरी ।।अर्घ्यं।।
जयमाला
*दोहा*
गुरु ब्रह्मा गुरु शंकरा,
गुरु विष्णू अवतार ।
परम ब्रह्म गुरुदेव ही,
वन्दन बारम्बार ।
लगाते पार भक्त खेवा ।
समय सागर जी गुरुदेवा ।।
शरद पूनम सुखदाई है ।
सदलगा जन्म बधाई है ।
खुश बड़ी श्री मति माई है ।
झील से नयन ।
सुरीले वयन ।
स्वर्ण सा वरण ।
बहाने नख शशि रत सेवा ।
समय सागर जी गुरुदेवा ।।१।।
लाल दा मल्लप्पा न्यारे ।
वीर, गिनि, नन्त भ्रात प्यारे ।
सुशान्ता स्वर्णा दृग तारे ।
वीर दिल नेक ।
तीर अभिलेख ।
पीर पर देख ।
बनी आखें गंगा रेवा ।
समय सागर जी गुरुदेवा ।।२।।
महावीरा व्रत ब्रह्मचारी ।
धन्य क्षुल्लक दीक्षा धारी ।
नैनगिर एलक दीवाली ।
कमण्डल पीछ ।
कमल बिच कीच ।
सजग जग बीच ।
द्रोण पट मुंचन स्वयमेवा ।
समय सागर जी गुरुदेवा ।।३।।
शान्ति फिर तुरिय ज्ञान सूरी ।
सूर विद्या फिर ध्रुव नूरी ।
कृपा गुरु अब मंशा पूरी ।
निराकुल नाम ।
निराकुल शाम ।
निराकुल धाम ।
मिले बस, अरज पद सदैवा ।
समय सागर जी गुरुदेवा ।।४।।
।।दोहा।।
गुरु जीवन में आ गये,
लागा सब कुछ हाथ ।।
मां रहती जब साथ में,
चिन्ता की क्या बात ।।
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