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अद्भुत चालीसे

     चालीसा भारत 

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

 =चालीसा भारत=

शेर नहीं भारत है गैय्या  ।
बनकर गाय लगी तट नैय्या ।।

करता कभी न पहल लड़ाई ।
सिद्ध पढ़ाई, आखर-ढ़ाई ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
आँख-नीर लख पीर पराई ।।1।।

करके एक सवाया देता ।
और नाव काकी सा खेता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सतजुग, जुग-द्वापर, जुग त्रेता ।।2।।

विश्व गुरु दुनिया ने बोला ।
यूँ ही कहा न होगा भोला ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
नख शिख रंग बसन्ती चोला ।।3।।

सुबह शगुन चिड़िया सा चहके ।
सुबह सुमन बगिया सा महके ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सिन्धु मिले नदिया सा बह के ।।4।।

एक देवता लेख पुराणा ।
नेक देवता एक ठिकाना ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
जाने भव-बैतरण तराना ।।5।।

वसुधा कुटुम भावना भाता ।
न निश दिवस भी सुधा झिराता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
तज स्वारथ, कर्त्तव्य निभाता ।।6।।

नदी दूध घी, सोन चिरैय्या ।
मही मरण लय-पौन खिवैय्या ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
घनी बरगदी मीठी छैय्या ।।7।।

कामधेन ऋषि मुनि परिपाटी ।
गगन न सदन, रहे जुड़ माटी ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
चश्मा किसी, किसी की लाठी ।।8।।

नाम श्याम तिल चेहरे गोरे ।
कर निन्दा-पर रबर न घोरे ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
पड़े न फिरके तोरे-मोरे ।।9।।

सीधा साधा, भोला भाला ।
स्याह शरबरी धुरुव सितारा ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
स्वर्ग नजारा, पवर्ग द्वारा ।।10।।

जैसा बाहर भीतर वैसा ।
स्वाभिमान पहले, फिर पैसा ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
हाथ मिलाने खड़ा हमेशा ।।11।।

वृत्ति गोचरी सन्तन प्यारी ।
गो धूली बेला मन हारी ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सुखी, गो-मुखी जप बलिहारी ।।12।।

भूल चूक पर क्षमा मॅंगाता ।
फूँक फूँक कर कदम उठाता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
टूक टूक, पर काम बनाता ।।13।।

नहीं मचाता छीना-झपटी ।
कह न सका है कोई कपटी ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
ऊपर दूध तैरती पपटी ।।14।।

नाम मात्र न पैना नख है ।
मन नव जनमे शिशु माफिक है ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
वचन काय मन से सात्विक है ।।15।।

निशि जल्दी सपनों से भींजे ।
उठ सूरज की चादर खींचे ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
पिछलग्गू बन लगे न पीछे ।।16।।

खाना मोटा, मोटा पहने ।
पहने लाज शरम के गहने ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
भी’तर लखन रेख क्या कहने ।।17।।

बिष-किट’ को ना हाथ लगाता ।
‘विष-ले-री’ सुन पीछे आता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
नहीं स्वप्न भी बिस्-की नाता ।।18।।

सुने ‘पाप-सी’ हट जाता है ।
‘मैं-रण्डा’ सुन कट जाता है ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सुन ‘थम-सब’ झट-थम जाता है ।।19।।

मैंगी ‘पड़े न मॅंहगी’ डरता।
सुने बेक-री पीछे हटता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
फास्ट न, फूड पास्ट मुख करता ।।20।।

सर माथे सर पंच फैसला ।
भीतर आँख, बुलन्द हौंसला ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
निकले ‘पर’ तज दिया घौंसला ।।21।।

पुष्ट पृष्ठ-पल डील-डौल से ।
‘कोश दूर’ मण्डूक तोल से ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
‘बचे न राख’ सुदूर खौल से ।।22।।

मान लक्ष-मन रेख न लाँघे ।
समझ हाथ तौहीन न माँगे ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
चले बुजुर्गों को कर आगे ।।23।।

कहे राम फिर पहले सीता ।
आसाँ सी परिभाषा गीता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
खा लेता गम, गुस्सा पीता ।।24।।

खोले फेर चाबिंयाँ ताले ।
‘जिओ और जीने दो’ पाले ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
मकड़ हस्र लख चुने न जाले ।।25।।

मजा तीन दो पाँच न लेता ।
बस रामायण वॉंच न लेता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
आँख दिखाने काँच न लेता ।।26।।

रखे सहजता जितनी बनती ।
सिंह मुख खोल सीखता गिनती ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
परहित करे हृदय से विनती ।।27।।

‘लायर’ अर्थ समझ, सरपंचा ।
इक ऊपर इक चौदह कंचा ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सत्, सुन्दर, शिव, विष्णु, विरंचा ।।28।।

पर-सेवा सुगंध हाथों में ।
करुणा झील शान्त आँखों में ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
अनेकान्त झलके बातों में ।।29।।

पहिन लजाये मलमल ढ़ाका ।
अतिथि खिलाये, करके फाका ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
साँझ चुकाये, लेके जाका ।।30।।

न्याय, लिये दृग्-मूँद तराजू ।
श्रवण कुमार, पिता-माँ बाजू ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
दाने मूॅंगफली इक काजू ।।31।।

जाने भी’तर नाक निधी है ।
चले न चालें, चाल सधी है ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सहज मान्य अभिलेख विधी है ।।32।।

लक्ष्य भेदते चित्रित काना ।
ताना एक दूसरा बाना ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
वचन निभाने मर-मिट जाना ।।33।।

पर्वत एक नाम गोवर्धन ।
नाम गुपाल गुसाईं भगवन् ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
जन जन मनहर गुशीर्ष चन्दन ।।34।।

गोपुर द्वार बड़े फबते हैं ।
गो खुर बतलाते रस्ते हैं ।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
Go…तम गौतम ज्यों रटते हैं ।।35।।

गोरख-धन्धे दूर दूर है ।
धन्धा गो-रख दूर-दूर है ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
भूमि गोचरी नूर सूर है ।।36।।

गोमुख बही धार गंगा माँ ।
गो पर्याय सप्त भंगा माँ ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
गो रस पान पहलवाँ गामा ।।37।।

प्रायश्चित गोदान अहिंसा ।
श्रुत वत्सल गो वत्स प्रशंसा ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
गोपि, गोप अध्यातम हंसा ।।38।।

जन्नते-सुकूँ माँ गोदी में ।
सुनता ऊँचा, बोले धीमे ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
तर अगुलियाँ सभी गो-घी में ।।39।।

कहूॅं कहाँ तक छोर न आता ।
आते-आते क्षितिज छकाता ।।
‘सहज-निराकुल’ गो सा भारत ।
कहते-कहते मौन सुहाता ।।40।।

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