वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गणधर वलय
==पूजन==
।।दैगम्बर गुरू हमारे।।
दुःसह नरक पतन दुख से डर,
‘जो…वन’ राह निहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ग्रीष्म दोपहर, चढ़ पर्वत पर,
सूर सामने ठाड़े ।।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
खड़े योग तरु मूल साध कर,
बिजुरि देख घन कारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ओढ़ शीत ऋतु धीरज कम्बल,
चतु-पथ आन पधारे ।।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
इत्याह्वानन
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्निधिकरणं
पुष्पांजलि क्षिपामि ।
दर-दर भटक भटक अब स्वामी,
आप शरण में आये ।
यह निर्मल गंगा का पानी,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
स्वारथ भरी देख दुनिया यह,
आप शरण में आये ।
वन-नन्दन चन्दन घिस सविनय,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
जगत् ‘जगत’ रह सकता सुनकर,
आप शरण में आये ।
अनटूटे कण अक्षत चुनकर,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
सुन आस्तीन साँप अपने ही,
आप शरण में आये ।
पुष्प महकते चम्पा-जूही,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
देख भूख माँ नागिन इतनी,
आप शरण में आये ।
भोग कीमती गिनती जितनी,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दीपक तले देख अंधियारा,
आप शरण में आये ।
दीप जगमगाता घृत वाला,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
हवा हवाले हवा कपूरी,
आप शरण में आये ।
चन्दन-चूरी, अन कस्तूरी,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
फलता केला सार्थ अकेला,
आप शरण में आये ।
थाल विशाल नारियल भेला,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
बाद न विष ‘विष’यों में पहले,
आप शरण में आये ।
द्रव्य आप से दिव्य रुपहले,
आप चरण में लाये ।।
किरण आश-विश्वास अकेली,
आखिर एक सहारे ।
दैगम्बर गुरू हमारे ।।
ॐ ह्रूॅं श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
*दोहा*
पुण्य सातिशय मानिये,
दर्शन गुरु महाराज ।
चरणों से लग चालिये,
बनता बिगड़ा काम ।।
हमें नरकों में ना जाना ।
जिन्होंने अबकी यह ठाना ।।
त्रस्त जय, जनम, मरण, ओ ‘री ।
हंस मत प्रीत अमिट जोड़ी ।।१।।
क्षण क्षणी घन बिजुरी जैसे ।
विष विषय-जर रुपये पैसे ।।
ओंस मानिन्द जिन्दगानी ।
चले वन, लिये आँख पानी ।।२।।
समित, व्रत, गुप्ति केत लहरे ।
सतत श्रुत रत, उतरे गहरे ।
निरत जप तप विशुद्धि पाने ।
नाम सिद्धों में लिखवाने ।।३।।
मल पटल आभूषण धारी ।
दिगम्बर निष्पृह अविकारी ।।
कर्म बन्धन गिर हिल चाला ।
विनिर्गत मोह मदिर हाला ।।४।।
शिला संतप्त सूर्य रश्मी ।
लू लपट खो आई नरमी ।।
गिर शिखर पाँव पाँव आते ।
खड़े रवि सन्मुख हो जाते ।।५।।
ज्ञान अमरित धारा फूॅंटी ।
देह तर क्षमा जल अनूठी ।।
छत्र संतोष पुण्य काया ।
नाम सहजो सहिष्णु आया ।।६।।
कण्ठ शिखि से काले काले ।
भ्रमर कज्जल प्रतिछवि वाले ।।
घन सघन गर्जन विकराला ।
वायु शीतल मूसल धारा ।।७।।
ले दिखे इन्द्र धनुष अपना ।
देख तापस ऐसा गगना ।।
तरु तले बैठ चले देखा ।
मेंटने श्याह कर्म लेखा ।।८।।
धार जल मनु बाणन बरसा ।
सहर्षित सहन विघन सहसा ।।
धीर ! पर हेत दृग् भिजोते ।
चरित से विचलित कम होते ।।९।।
बर्फ रस्ते रस्ते छाई ।
पात तरु मनु शामत आई ।।
शब्द हा ! साँय साँय भारी ।
ठण्ड खा शुष्क देह सारी ।।१०।।
लगा राखा अंकुश मन पे ।
धीर कम्बल ओढ़ा तन पे ।।
खड़े चौराहे निशि ठण्डी ।।
गुजर चाली धन ! शिव पंथी ।।११।।
योग त्रय धारक बड़भागी ।
निराकुल सुख इक अनुरागी ।।
हेत सुमरण सु…मरण कीना ।
जाग भी’तर संध्या तीना ।।१२।।
*दोहा*
कर दर्शन गुरुदेव के,
धन्य नैन जुग आज ।
रुको रुको मैं हूँ यहाँ,
दे मंजिल आवाज ।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं श्री गणधर भगवन्
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
==विधान प्रारंभ==
इन्द्रिय गोपन सीखा कछुआ ।
जिनके वश में आया मनुआ ।।
णमो जिणाणं, णमो जिणाणं ।
मन्त्र मनोरथ पूर्ण प्रधानं ।।१।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो जिणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पलकें पल के लिये उघाड़ीं ।
कह निधियाँ निज भीतर सारीं ।।
णमो णमो रिसि ओहि जिणाणं ।
मन्त्र अक्ष संरक्ष प्रधानं ।।२।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो ओहि जिणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
स्वर्ग सुदूर, न शिव अभिलाषा ।
दृष्टि टिकाई इकटक नासा ।।
णमो णमो परमोहि जिणाणं ।
मन्त्र विघ्न विध्वंस प्रधानं ।।३।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो परमोहि जिणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पलक न बढ़ा कदम मन माने ।
पुद्गल, जीव समस्त पिछाने ।।
णमो णमो सव्वोहि जिणाणं ।
मन्त्र भीतरी ज्योति प्रधानं ।।४।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो सव्वोहि जिणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
ज्ञान अवधि मर्याद उलॉंघी ।
परिणति नितप्रति जागी जागी ।।
णमो णमो णंतोहि जिणाणं ।
मंत्र अपूरब शांति प्रधानं ।।५।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो अणंतोहि जिणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
यथा प्रकोष्ठ सुरक्षित धाना ।
तथा सुरक्षित समस्त ज्ञाना ।।
णमो कोट्ठ बुद्धीय जिणाणं ।
मंत्र कण्ठ सरसुती प्रधानं ।।६।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो कोट्ठ बुद्धीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
खसखस भॉंत बीज वट जैसे ।
जानें सहज बीज पद वैसे ।।
णमो बीय बुद्धीय जिणाणं ।
मन्त्र सिद्ध वच-रिद्ध प्रधानं ।।७।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो बीय बुद्धीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पद अक्षर समूह कहलाता ।
पद इक जान, सकल श्रुत ज्ञाता ।।
णमो पदनु सारीय जिणाणं ।
मन्त्र शोष स्वर दोष प्रधानं ।।८।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो पादानु सारीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
युगपत् सेन-चक्र बतयाये ।
इन्हें सहज सुनने में आये ।।
णमो सोद संभिण्ण जिणाणं ।
मंत्र हरण त्रुटि श्रवण प्रधानं ।।९।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं संभिण्ण सोदाराणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
काषायिक परिणत के त्यागी ।
बिन उपदेश स्वयं वैरागी ।।
णमो सयं बुद्धाय जिणाणं ।
मंत्र वंश मत हंस प्रधानं ।।१०।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो सयं बुद्धाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
मिला निमित्त एक भी काफी ।
झटपट राह विकट वन नापी ।।
णमो बुद्ध पत्तेय जिणाणं ।
मन्त्र साक्ष सिध दीक्ष प्रधानं ।।११।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो पत्तेय बुद्धाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अंजुल कर्ण देशना भींजे ।
चाले वन खुल्ले दृग् तीजे ।।
णमो बुद्ध बोहीय जिणाणं ।
मन्त्र छार सर भार प्रधानं ।।१२।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो बोहिय बुद्धाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
फौरन मन-औरन पढ़ लेते ।
शरणागत पनडुबिया खेते ।।
णमो णमो उजु मदिय जिणाणं ।
मन्त्र विहँस मन कलुष प्रधानं ।।१३।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो उजु मदीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
मन तरंग उठते ही मारी ।
मन भविष्य-पर पंथ विहारी ।।
णमो णमो मदि विउल जिणाणं ।
मन्त्र निराकुल मनस् प्रधानं ।।१४।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो विउल मदीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
लाँघ प्रलोभन विद्या घाटी ।
ग्यारह अंग पूर्व दश पाठी ।।
णमो णमो दस पुव्व जिणाणं ।
मन्त्र चोट मन खोट प्रधानं ।।१५।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो दस पुव्वीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
देख पीर-पर दृग् झिर आये ।
सिन्धु पूर्व चौदह तिर आये ।।
णमो चौद्-दस, पुव्व जिणाणं ।
मंत्र बिन्दु भव-सिन्धु प्रधानं ।।१६।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो चउदस पुव्वीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
विद् निमित्त स्वर, व्यंजन, सुपना ।
लक्षण, अंग, भौम, छिन, गगना ।।
णमो णिमित अट्-ठंग जिणाणं ।
मन्त्र सुप्त भय सप्त प्रधानं ।।१७।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं अट्ठंग णिमित्त कुसलाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
काम-रूप, वशि, अणिमा, महिमा ।
ईश, प्राप्ति, प्राकाम्यरु लघिमा ।।
णमो इड्ढि वीउव्व जिणाणं ।
मंत्र हस्तगत इष्ट प्रधानं ।।१८।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं विउव्व इड्ढिपत्ताणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जात पक्ष-माँ, कुल पित पक्षा ।
सद्या तप विद्या अध्यक्षा ।।
णमो पत्त विज्जाय जिणाणं ।
मंत्र सद्य विद् विद्य प्रधानं ।।१९।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो विज्जा हराणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
बीज, पुष्प, फल, नभ, जल जंघा ।
श्रेणिन्, तन्तु गमन सानन्दा ।।
णमो चारणा इड्ढि जिणाणं ।
मंत्र विवर्धक विभव प्रधानं ।।२०।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो चारणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
विनय, औत्पत्तिक, परिणामी ।
नाम कर्मजा प्रज्ञा स्वामी ।।
णमो समण पण्णाय जिणाणं ।
मन्त्र सर्व कल्याण प्रधानं ।।२१।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो पण्णा समणाणंं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
घेर मानुषोत्तरन पहाड़ा ।
मन वांछित आकाश विहारा ।।
णमो गमण आगास जिणाणं ।
मन्त्र पंथ निष्कण्ट प्रधानं ।।२२।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो आगास गामीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जिन्हें एक विरदावलि गाली ।
वचन निकल मुख, जाय न खाली ।।
णमो आसीविस सव्व जिणाणं ।
मन्त्र भूल उन्मूल प्रधानं ।।२३।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो आसी विसाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जैसा सोच उठाते आंखें ।
लाज देवता आकर राखें ।।
णमो दिट्ठिविस सव्व जिणाणं ।
मन्त्र हृदय दृग् सदय प्रधानं ।।२४।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो दिट्ठि विसाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
कमश: एक उवास बढ़ाते ।
प्रण जीवन पर्यन्त निभाते ।।
णमो णमो तव उग्ग जिणाणं ।
मन्त्र नन्त बलवन्त प्रधानं ।।२५।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो उग्ग तवाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
भॉंत दूज शशि तेज विकासा ।
बेला, तेला यदपि उपासा ।।
णमो णमो तव दित्त जिणाणं ।
मन्त ओज तेजस्व प्रधानं ।।२६।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो दित्त तवाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
लुप्त तप्त लोहा जल-धारा ।
विगत निहार यदपि आहारा ।।
णमो णमो तव तत्त जिणाणं ।
मन्त्र जुदा गद-क्षुधा प्रधानं ।।२७।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो तत्त तवाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
रिद्धि सिद्धि विद्या सब जेतीं ।
ढ़ोक चरण में आकर देतीं ।।
णमो णमो तव महा जिणाणं ।
मन्त्र छार गत-चार प्रधानं ।।२८।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो महा तवाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
यथा शक्ति तप तपते बारा ।
योग, अभ्र, तरु, आतप धारा ।।
णमो णमो तव घोर जिणाणं ।
मन्त्र मूर्ति जग-कीर्ति प्रधानं ।।२९।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो घोर तवाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
सार्थ नाम’ गुन’ लाख चुरासी ।
शगुन सातिशय पुन अधिशासी ।।
णमो णमो गुण घोर जिणाणं ।
मन्त्र सातिशय पुण्य प्रधानं ।।३०।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो घोर गुणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
‘सहजो’ शंख फूॅंकते नासा ।
‘गिर’ गिर पड़ता वशि बल श्वासा ।।
णमो परक्कम घोर जिणाणं ।
मन्त्र आश विश्वास प्रधानं ।।३१।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो घोर गुण परक्कमाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
ब्रह्म बाढ़ नव राखन वारे ।
ईति-भीति-हर तारण हारे ।।
णमो घोर गुण बंभ जिणाणं ।
मन्त्र रक्ष प्रण ब्रह्म प्रधानं ।।३२।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो घोर गुण बंभयारिणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पर्श मात्र जिनका हो जाता ।
नामो-निशाँ व्याधि खो जाता ।।
णमो आम ओसही जिणाणं ।
मन्त्र चूर सिर शूल प्रधानं ।।३३।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो आमोसहि पत्ताणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
खेल पर्श जिनका हो जाता ।
नामो-निशाँ व्याधि खो जाता ।।
णमो खेल ओसही जिणाणं ।
मन्त्र चूर रद शूल प्रधानं ।।३४।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो खेलोसहि पत्ताणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल्ल पर्श जिनका हो जाता ।
नामो-निशाँ व्याधि खो जाता ।।
णमो जल्ल ओसही जिणाणं ।
मन्त्र चूर उर शूल प्रधानं ।।३५।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो जल्लोसहि पत्ताणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
विट्ठ पर्श जिनका हो जाता ।
नामो-निशाँ व्याधि खो जाता ।।
णमो विट्ठ ओसही जिणाणं ।
मन्त्र चूर कुछि शूल प्रधानं ।।३६।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो विट्ठोसहि पत्ताणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
सर्व पर्श जिनका हो जाता ।
नामो-निशाँ व्याधि खो जाता ।।
णमो सव्व ओसही जिणाणं ।
मन्त्र चूर मन शूल प्रधानं ।।३७।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो सव्वोसहि पत्ताणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
निशि दिन श्रुत मंथन में लागे ।
पर, न खेद मनबल बड़भागे ।।
णमो णमो मण बलिय जिणाणं ।
मन्त्र तन्त्र मन शान्त प्रधानं ।।३८।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो मण बलीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
निशि दिन श्रुत वाचन में लागे ।
पर, न खेद वचबल बड़भागे ।।
णमो णमो वच बलिय जिणाणं ।
मन्त्र तन्त्र वच क्षान्त प्रधानं ।।३९।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं श्री णमो वच बलीणं
गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
निशि दिन श्रुत साधन में लागे ।
पर, न खेद तनबल बड़भागे ।।
णमो णमो बल काय जिणाणं ।
मन्त्र तन्त्र तन कान्त प्रधानं ।।४०।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो काय बलीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अंजुली पुट में आया विष भी ।
बदल क्षीर में जाता झट ही ।।
णमो खीर रस सविय जिणाणं ।
मन्त्र अरिंजय विरद प्रधानं ।।४१।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो खीर सवीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अंजुली पुट में आया विष भी ।
‘फिर’ गौ’ घृत में जाता झट ही ।।
णमो सप्पि रस सविय जिणाणं ।
मन्त्र निरंजन विरद प्रधानं ।।४२।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो सप्पि सवीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अंजुली पुट में आया विष भी ।
‘फिर मधुरस में जाता झट ही ।।
णमो महुर रस सविय जिणाणं ।
मन्त्र अनुत्तर विरद प्रधानं ।।४३।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो महुर सवीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अंजुली पुट में आया विष भी ।
बदल अमृत में जाता झट ही ।।
णमो अमिय रस सविय जिणाणं ।
मन्त्र स्वानुभव विरद प्रधानं ।।४४।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो अमिय सवीणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
साधु महानस जिस आहारा ।
जीमे सहज चक्र-बल सारा ।।
णमो महानस अछर जिणाणं ।
मन्त्र हान अपमान प्रधानं ।।४५।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो अख्खीण महानसाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
वर्धमान चारित अधिकारी ।
दया, क्षमा, करुणा अवतारी ।।
णमो वड्ढमाणीय जिणाणं ।
मन्त्र भिन्न जल कमल प्रधानं ।।४६।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो वड्ढमाणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
चलते फिरते सिद्ध सरीखे ।
जब देखा तब भीतर दीखे ।।
णमो सिद्ध आ-यदण जिणाणं ।
मन्त्र सार्थ सिद्धार्थ प्रधानं ।।४७।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो सव्व सिद्धा-य-दणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
धार कटार अडिग बढ़ चाले ।
सहज-निराकुल भोले भाले ।।
णमो महदि महवीर जिणाणं ।
मन्त्र तीर भव-नीर प्रधानं ।।४८।।
ॐ ह्रूॅं अर्हं णमो महदि महावीर जिणाणं
श्री गणधर भगवन्
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
==जयमाला==
दोहा
देह नगन दे देशना,
जग विरागता सार ।
जे धरती के देवता,
वन्दन बारम्बार ।।
दर्शन साधु बलिहारी ।
करुणा दया अवतारी ।।
मरना जनमना आवर्त ।
दुख संत्रस्त नारक गर्त ।।
परिणति श्याह संहारी ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।१।।
बुद-बुद-नीर जीवन लेख ।
क्षणिक विभूत बिजुरी, मेघ ।।
जो’वन राह दृग्-धारी ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।२।।
धृत व्रत समित गुप्त विभूत ।
नित स्वाध्याय, डूब अनूठ ।।
तापस इक निरतचारी ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।३।।
‘गुण’-मण पटल-मल अनुस्यूत ।
बन्धन कर्म शिथली भूत ।।
निर-हंकार ब्रम-चारी ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।४।।
शिल सन्तप्त उन्मुख सूर ।
चढ़ गिरि शिखर सन्मुख सूर ।।
तप संप्रीत विस्तारी ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।५।।
तर सन्तोष ‘शोष कषाय’ ।
सिञ्चित क्षमा जल, पुन काय ।।
अमरित ज्ञान आहा’री ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।६।।
कज्जल-भ्रमर कण्ठ-मयूर ।
धन ! धनु-इन्द्र गर्जन भूर ।।
तरु तल योग निशिकारी ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।७।।
ताड़ित धार जल मनु बाण ।
दुख भवभीत, धीरज वान् ।।
नृसिंह ! सहिष्णु ! अविकारी ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।८।।
हो स्वर साँय-साँय कराल ।
डगडग बिछ चला हिम जाल ।।
शोषित यष्टि तन सारी ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।९।।
चाले ओढ़ कम्बल धीर ।
रातरि शिशिर नग्न शरीर ।।
थित चतुपथ गुजर चाली ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।१०।।
इमि त्रय योग धार भदन्त !
जप-तप हेत परमानन्द ।।
दे लिख नाम सरना’री ।
दर्शन साधु बलिहारी ।।११।।
*दोहा*
पनडुबी मोक्ष विठार लो,
मोर न ज्यादा भार ।
‘सहज-निराकुल’ लो बना,
हो विनती स्वीकार ।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
*आरती*
जय-जयकारा, जय-जयकारा ।
लिये स्वर्ण दीपक घृत वाला ।।
करूँ आरती जय गुरुदेवा ।
दुख निवारती श्री गुरु सेवा ।।
पहली आरति ग्रीष्म दुपारी ।
सूर्य आग बरसाता भारी ।।
चढ़ पहाड़ शिल तप्त निहारा ।
जय-जयकारा, जय-जयकारा ।
लिये स्वर्ण दीपक घृत वाला ।।
करूँ आरती जय गुरुदेवा ।
दुख निवारती श्री गुरु सेवा ।।
दूजी आरति वरषा वासा ।
बिजली देख मेघ काला सा ।।
वृक्ष तले आ आसन माड़ा ।
जय-जयकारा, जय-जयकारा ।
लिये स्वर्ण दीपक घृत वाला ।।
करूँ आरती जय गुरुदेवा ।
दुख निवारती श्री गुरु सेवा ।।
तीजी, आरति ठण्ड करारी ।
सायं साँय कर मारुत चाली ।।
लुभा रहा तब जिन्हें चुराहा ।
जय-जयकारा, जय-जयकारा ।
लिये स्वर्ण दीपक घृत वाला ।।
करूँ आरती जय गुरुदेवा ।
दुख निवारती श्री गुरु सेवा ।।
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