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नया नजरिया

नया नजरिया-; 141से152

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

(१४१)
इसने मुझे दबाया है
उसने मुझे दबाया है
इस सोच के बोझ से
बस दबा जा रहा हूँ मैं
पर अपने दिल पर हाथ रख करके
इतना कब कह सका हूँ मैं
‘के कभी मैंने किसी को भी नहीं दबाया है
सच
जाने कैसी माया है

(१४२)
तराजू का हल्का पल्ला
आसमान छू चला
जाने फिर क्यूँ
राम जाने
जाने फिर क्यूँ
मैं अपनी नाक पर रक्खे
गुस्से का वजन उतारता नहीं हूँ

(१४३)
अपने पेट से निकले
नागिन ने निगले
किसका भरोसा
किसका विश्वास करूँ
अपने हाथों की ओट देकर के
आंधी तूफानों में बचाये चिराग
अपनी ही श्वास से बुझ चले

(१४४)
बगैर जोड़े, दुश्मन बेजोड़ जुड़ चले
दिल के सच्चे
कच्चे दोस्तों को भी
मैं जोड़ करके तोडूॅं
तो क्यूॅं तोडूॅं
बगैर जोड़े, दुश्मन जब बेजोड़ जुड़ चले

(१४५)
मैं अपने पंजों के बल पर
खड़ा होता नहीं हूँ
मैं अपनी गर्दन को कुछ ऊँचा
उठाता नहीं हूँ
बस सिर्फ कहता हूँ
‘के दुनिया में ऐसे कई लोग हैं
जो नीचे जमीन पर खड़े खड़े ही
वो ऊँचा आसमान छूते हैं
जाने क्यूॅं
मैं अपने पंजों के बल पर
खड़ा होता नहीं हूँ

(१४६)
मैंने एक उड़ान भरी थी
मेरे अपने दोस्त बोले
जा छू आ आसमान
फिजाओं में दुश्मनों ने विष घोले
‘के चींटी के पर निकल आयें
बस मैंने तो एक उड़ान भरी थी

(१४७)
हे भगवान् !
मुझे दोस्ती निभाना आ जाये
दोस्त बनाना तो बड़ा आसान है
फूलों की खुशबू लेने के समान
पर फूलों को मुस्कान देना
हैं और किसके नाम
सिवाय एक बागवान
हे भगवान् !

(१४८)
दुश्मन एक से एक ग्यारा होते हैं
जिस दिन से सुना है मैंने
उस छिन से
सच्ची
और पक्की दोस्ती को चुना है मैंने

(१४९)
किसी शख्स ने मुझे
दी हो आवाज
कहकरके धोखेबाज
वह आज
आज-तक आया नहीं है
और कल कभी आता नहीं है
‘के किसी दोस्त ने
मुझे कह करके चालबाज
दी हो आवाज
थेक्स भगवन् !

(१५०)
बेमतलब
बगैर स्वारथ साधे
वृक्षों ने तान रक्खे हैं छाते
मैं छाव में रहूॅं
और मेरा दोस्त धूप में रहे
ऐसा न कभी हुआ है
और न कभी मैं होने दूॅंगा

(१५१)
मुझे कभी जो ठोकर लगती है
तो चींख मेरे दोस्त के मुख से आती है
सच सिवाय एक सच्चे दोस्त के
और कौन सुख दुख का साथी है

(१५२)
बचपन से ही देखता आक रहा हूँ
आँसू मेरे होते हैं
और आँखें मेरे अपने दोस्त की
भगवन् में तुमसे ही पूछता हूँ
क्या दो सच्चे दोस्त
दो अलग अलग माँ की कोख में
पले बढ़े
जुड़वा होते हैं

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